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Home हिंदी कानून क्या कहता है

इलाहाबाद HC ने अंतरधार्मिक लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से किया इनकार, कहा- SC ऐसे रिलेशनशिप को बढ़ावा नही देता

Team VFMI by Team VFMI
June 27, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Domestic Violence Act: Allahabad High Court

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इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले एक अंतर-धार्मिक कपल (inter-faith couple in live-in relationship) को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने यह फैसला यह तर्क देते हुए दिया कि सुप्रीम कोर्ट लिव-इन रिलेशनशिप को बढ़ावा नहीं देता है, भले ही उसने ऐसे रिलेशनशिप को एक सामाजिक वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया हो।

क्या है पूरा मामला?

बार एंड बेंच के मुताबिक, अदालत 29 वर्षीय एक हिंदू महिला और 30 वर्षीय मुस्लिम शख्स द्वारा दायर सुरक्षा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। कपल ने दावा किया था कि पुलिस उन्हें परेशान कर रही है। साथ ही कपल ने अदालत को यह भी बताया कि महिला की मां ने लिव-इन रिलेशनशिप को अस्वीकार कर दिया था और उनके खिलाफ FIR दर्ज कराई थी।

कपल ने तर्क दिया कि किसी भी व्यक्ति को उनके निजी जीवन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और फिर भी वे पुलिस से उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। इसलिए, उन्होंने लता सिंह बनाम यूपी राज्य (2006) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले द्वारा स्थापित मिसाल का हवाला देते हुए अदालत से सुरक्षा का अनुरोध किया।

हाई कोर्ट

जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस नरेंद्र कुमार जौहरी की पीठ ने कहा कि कानून परंपरागत रूप से शादी के पक्ष में रहा है और जब सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मामलों में लिव-इन रिलेशनशिप पर टिप्पणी की तो उसका भारतीय पारिवारिक जीवन के ताने-बाने को उजागर करने का कोई इरादा नहीं था। अदालत ने कहा कि हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की उपर्युक्त टिप्पणियों को ऐसे संबंधों को बढ़ावा देने वाला नहीं माना जा सकता है। कानून परंपरागत रूप से विवाह के पक्ष में पक्षपाती रहा है। यह शादी संस्था को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए विवाहित व्यक्तियों के लिए कई अधिकार और विशेषाधिकार सुरक्षित रखता है। सुप्रीम कोर्ट बस एक सामाजिक वास्तविकता को स्वीकार कर रहा है और उसका भारतीय पारिवारिक जीवन के ताने-बाने को उजागर करने का कोई इरादा नहीं है।

पीठ ने आगे कहा कि हाई कोर्टों का रिट क्षेत्राधिकार, एक असाधारण क्षेत्राधिकार होने के कारण, निजी पक्षों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए नहीं है। कोर्ट ने कहा कि, “हमारा मानना है कि यह एक सामाजिक समस्या है जिसे भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के उल्लंघन की आड़ में रिट कोर्ट के हस्तक्षेप से नहीं बल्कि सामाजिक रूप से उखाड़ा जा सकता है, जब तक कि संदेह से परे उत्पीड़न साबित न हो जाए।”

अदालत ने कहा कि न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता इस मामले में FIR दायर कर सकते हैं, यदि उन्हें अपने रिश्तेदारों से उत्पीड़न के कारण अपने जीवन को कोई खतरा है। कोर्ट ने कहा कि अगर माता-पिता या रिश्तेदारों को पता चलता है कि उनका बेटा या बेटी कम उम्र में या उनकी इच्छा के खिलाफ शादी के लिए भाग गए हैं, तो वे समान कदम उठाने के लिए स्वतंत्र हैं।

कोर्ट ने कहा कि यह मामला उचित प्राधिकारी द्वारा उनकी उम्र और अन्य आवश्यक पहलुओं के सत्यापन के बिना उनके आचरण पर हाई कोर्ट की मुहर और हस्ताक्षर प्राप्त करने का एक घुमावदार तरीका प्रतीत होता है। इसके साथ ही कोर्ट ने कपल को सुरक्षा देने की मांग वाली उनकी याचिका खारिज कर दी।

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