सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार 3 जुलाई को उस जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें विवाहित पुरुषों की खुदकुशी मामलों की जांच के लिए ‘राष्ट्रीय पुरुष आयोग (National Commission for Men)’ के गठन की मांग की गई थी। बार एंड बेंच के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि याचिका एकतरफा तस्वीर पेश करती है। बेंच ने सवाल किया, “किसी के प्रति अनुचित सहानुभूति का प्रश्न ही नहीं उठता। आप बस एकतरफा तस्वीर पेश करना चाहते हैं। क्या आप हमें शादी के तुरंत बाद मरने वाली युवा लड़कियों का डेटा दे सकते हैं?”
शीर्ष अदालत ने कहा कि आपराधिक कानून ऐसी स्थितियों का ख्याल रखता है और लोग उपचार के प्रति लापरवाह नहीं होते हैं। कोर्ट ने कहा, “कोई भी खुदकुशी नहीं करना चाहता, यह व्यक्तिगत मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है। आपराधिक कानून सावधानी बरतता है, इलाज नहीं करता।”
याचिकाकर्ता की मांग
याचिका में घरेलू हिंसा का शिकार होने के बाद खुदकुशी करने की सोच रहे विवाहित पुरुषों के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता वकील महेश कुमार तिवारी ने केंद्र सरकार से इस संबंध में पुरुषों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग बनाने की अपील की थी। विवाहित पुरुषों की आत्महत्याओं और उनके खिलाफ घरेलू हिंसा की जांच के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को निर्देश देने की भी मांग की गई।
तिवारी ने अपील की थी कि भारत के विधि आयोग को इस मुद्दे का अध्ययन करना चाहिए और उक्त आयोग के निर्माण के लिए एक रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए। याचिकाकर्ता ने वैवाहिक तनाव के कारण विवाहित पुरुषों के बीच आत्महत्या की घटनाओं को दिखाने के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर भरोसा किया।
याचिका में कहा गया था कि इसलिए, पुलिस को इस संबंध में पुरुषों द्वारा दायर शिकायतों को स्वीकार करना चाहिए और कानून बनने तक इसे राज्य मानवाधिकार आयोगों को भेजना चाहिए। वकील ने भारत में आकस्मिक मौतों पर 2021 में प्रकाशित राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा था कि साल 2021 में देश भर में 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या किया। इसमें से 81,063 विवाहित पुरुष थे और 28,680 विवाहित महिलाएं शामिल थी।
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