कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत आवेदन दायर करने पर मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा उसे दिए गए भरण-पोषण और मुआवजे की राशि को कम करने के अपीलीय अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली एक महिला द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस राजेंद्र बादामीकर की सिंगल जज पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता-पत्नी अपनी शादी से पहले काम कर रही थी और इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि वह अब काम करने में असमर्थ क्यों है।
क्या है पूरा मामला?
महिला और बच्चे ने सत्र अदालत के उस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें महिला को दिए जाने वाले गुजारा भत्ते को 10,000 रुपये से घटाकर 5,000 रुपये और मुआवजे को 3,00,000 रुपये से घटाकर 2,00,000 रुपये कर दिया गया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि पति द्वारा दिया गया मुआवजा बहुत कम है। अपीलीय अदालत ने बिना किसी उचित कारण के गुजारा भत्ता कम कर दिया है।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि अपीलीय अदालत ने बच्चे को गुजारा भत्ता देने के आदेश की पुष्टि कर दी है। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता पत्नी अपनी सास और अविवाहित ननद के साथ रहने को तैयार नहीं थी। प्रोविजन स्टोर चलाने वाले पति पर अपनी मां और अविवाहित बहन की देखभाल की जिम्मेदारी थी। कोर्ट ने कहा, “उसे (पत्नी को) बेकार बैठकर अपने पति से संपूर्ण भरण-पोषण की मांग नहीं करनी चाहिए। वह अपनी आजीविका को पूरा करने के लिए कुछ प्रयास करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है और वह अपने पति से केवल सहायक भरण-पोषण की मांग कर सकती है।”
अदालत ने कहा, “उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए और याचिकाकर्ता नंबर 1 के आचरण पर विचार करते हुए प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा 10,000 रुपये से घटाकर 5,000 रुपये करने के दिए गए भरण-पोषण के आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। जहां तक मुआवज़े की राशि का संबंध है, इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि किस आधार पर मुआवजे की मात्रा निर्धारित की गई थी। हालांकि, इसे चुनौती नहीं दी गई और उक्त आदेश में हस्तक्षेप करने का सवाल ही नहीं उठता।” इसके साथ ही कोर्ट ने महिला की याचिका खारिज कर दी।
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