पांच साल में दूसरी बार गुजरात हाई कोर्ट (Gujarat High Court) एक ऐसे व्यक्ति के बचाव में आया है, जो अपनी प्रेमिका से बलात्कार के आरोपों का सामना कर रहा है। महिला आरोप लगा रही है कि शख्स ने शादी का झूठा वादा कर छह साल तक उसके साथ दुष्कर्म किया। लेकिन अदालत ने शख्स को अगस्त 2018 में गुजरात विश्वविद्यालय पुलिस स्टेशन में दर्ज बलात्कार के मामले से बरी कर दिया। इससे पहले, उसने मई 2018 में सूरत के महिधरपुरा पुलिस स्टेशन में दर्ज बलात्कार की शिकायत को रद्द कर दिया था।
क्या है पूरा मामला?
टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) के मुताबिक, यह मामला एक विवाहित पुरुष और एक विवाहित महिला का है जो दो बच्चों की मां है। छह साल तक चले उनके रिश्ते के चलते महिला ने अपने पति से तलाक ले लिया। इस बीच दोनों में रिश्ता जल्द ही खराब हो गया और महिला ने सूरत के महिधरपुरा पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज करा दी। जब पुरुष ने एफआईआर को रद्द करने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो महिला ने इस पर सहमति जताई और हाई कोर्ट ने शिकायत को खारिज कर दिया।
हालांकि, बाद में महिला ने अहमदाबाद में एक और शिकायत दर्ज कराई। उस व्यक्ति की खारिज करने की याचिका पर हाई कोर्ट द्वारा विचार नहीं किया गया, और उसने शहर सत्र अदालत में मामले से मुक्ति की असफल मांग की। उन्होंने दूसरे मामले में आरोपमुक्त करने के लिए हाई कोर्ट से इस तर्क के साथ संपर्क किया कि महिला तलाकशुदा थी और उसने अपने पति और बच्चों को छोड़ दिया था। उन्होंने कहा कि उन्होंने छह साल तक सहमति से यौन संबंध बनाए। इस दौरान वे विभिन्न शहरों और पर्यटन स्थलों पर गए।
महिला ने जोर देकर कहा कि इस मामले में मुकदमा चलना चाहिए और उसने पहली शिकायत को रद्द करने के लिए केवल इसलिए सहमति दी थी क्योंकि पुरुष ने उसे आश्वासन दिया था कि वह उससे शादी करेगा। चूंकि वह उसके साथ रिश्ते में बना रहा और अपना वादा तोड़ दिया, इसलिए उसने दूसरी FIR दर्ज कराई। महिला ने कहा कि उसकी सहमति को दूषित माना जाना चाहिए, क्योंकि उसने यह गलत धारणा के तहत दी थी कि वह उससे शादी करेगा।
हाई कोर्ट
हालांकि, हाई कोर्ट ने महिला की दलील को मानने से इनकार कर दिया और कहा कि जब रिश्ता शुरू हुआ था तब वह शादीशुदा थी और इसलिए शादी के वादे का कोई सवाल ही नहीं है। अदालत ने कहा कि यह केवल एक्सट्रामैरिटल अफेयर था और वह इसके फायदे और नुकसान को अच्छी तरह से जानती थी। इसके साथ ही अहमदाबाद में दर्ज मामले से शख्स को बरी करते हुए जस्टिस गीता गोपी ने कहा, “यह मानने का भी कोई आधार नहीं है कि उसने दोषी मानसिकता का अपराध किया है। मामला सहमति से सेक्स का है।”
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