कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि एक पति का डायबिटीज रोगी होना उसकी अलग हो रही पत्नी को गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी से बचने का आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट ने पति से कहा कि डायबिटीज को नियंत्रित किया जा सकता है। यह पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण के भुगतान से बचने का बहाना नहीं हो सकता है।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यक्ति द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने उसे अपनी अलग रह रही पत्नी को मासिक भरण-पोषण के रूप में 10,000 रुपये देने का निर्देश था। पति ने कहा कि वह समय-समय पर उक्त राशि का भुगतान करने में सक्षम नहीं है, क्योंकि यह बहुत अधिक है। आगे यह भी तर्क दिया गया कि पत्नी कार्यरत है और इसलिए उसे किसी भी भरण-पोषण की आवश्यकता नहीं है। हालांकि विवाह से पैदा हुए नाबालिग बेटे की कस्टडी उसके पास है।
हाई कोर्ट
जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की पीठ ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि वह डायबिटीज और संबंधित बीमारियों से पीड़ित है, इसलिए वह पिछले तीन वर्षों से अपने नाबालिग बच्चे के पालन-पोषण के लिए मासिक भरण-पोषण राशि का भुगतान करने में सक्षम नहीं है। पीठ ने कहा, “दुनिया भर में लोगों का एक बड़ा वर्ग ऐसी बीमारियों से पीड़ित है और यह सब प्रबंधनीय या उपचार योग्य हैं। याचिकाकर्ता का मामला यह नहीं है कि उचित मेडिकल देखभाल से इसका इलाज नहीं किया जा सकता है।”
यह देखते हुए कि पति द्वारा यह साबित नहीं किया गया है कि पत्नी के पास अपने और बच्चे के लिए आजीविका का साधन है, कोर्ट ने कहा कि यह शायद ही दोहराने की जरूरत है कि कानून, धर्म और न्याय के अनुसार अपने आश्रित परिवार की देखभाल करने के लिए एक सक्षम व्यक्ति की आवश्यकता होती है। इसलिए संसद ने सीआरपीसी 1973 की धारा 125,घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005, हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 24 आदि, जैसे कई कानून बनाए हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने पति की याचिका को तुरंत खारिज कर दिया।
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