दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में फैसला सुनाया कि विवाह का अपूरणीय टूटना तलाक मांगने का आधार नहीं है। फैमिली कोर्ट्स को अपने विचारों को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत वैधानिक प्रावधानों तक सख्ती से सीमित रखना चाहिए। लाइव लॉ के मुताबिक, अदालत ने विवाह टूटने के सिद्धांत पर चर्चा करते हुए कहा कि शादी का अपूरणीय टूटना अधिनियम के तहत तलाक देने का आधार नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
दिल्ली हाई कोर्ट ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की मांग करने वाली पति की याचिका स्वीकार करते हुए फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए उपरोक्त टिप्पणी की। फैमिली कोर्ट ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग करने वाली पत्नी के जवाबी दावे को भी खारिज कर दिया था। दोनों पक्षकार 11 साल से अधिक समय से अलग-अलग रह रहे थे।
हाई कोर्ट
जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विकास महाजन की खंडपीठ ने यह देखा कि रिश्ता इतना खराब हो गया है कि उसे सुधारा नहीं जा सका। विवादित आदेश रद्द करते हुए खंडपीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने माना कि पति द्वारा कथित क्रूरता साबित नहीं हुई। हालांकि, वैवाहिक संबंध से इनकार के आधार पर तलाक दिया गया। अदालत ने शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन मामले में सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम फैसले का हवाला देते हुए कहा कि शादी के अपूरणीय टूटने के आधार पर तलाक देने की शक्ति का प्रयोग सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोनों पक्षकारों को पूर्ण न्याय देने के लिए संविधान के आर्टिकल 142 के तहत किया जाता है।
खंडपीठ ने कहा, ”ऐसी शक्ति फैमिली कोर्ट को तो छोड़ ही दें, हाईकोर्ट में भी निहित नहीं है।” अदालत के आदेश में आगे कहा गया, “फैमिली कोर्ट को अपने विचारों को अधिनियम के अनुसार सख्ती से तलाक देने के प्रावधान के मापदंडों तक सीमित रखना होगा। अपूरणीय विवाह विच्छेद अधिनियम में कोई आधार नहीं है।”
हाईकोर्ट ने कहा कि उक्त आधार स्पष्ट रूप से प्रतिवादी के लिए उपलब्ध नहीं है। फैमिली कोर्ट ने यह निष्कर्ष देकर गलती की कि अपीलकर्ता द्वारा वैवाहिक संबंध से इनकार किया गया। प्रतिवादी के वैवाहिक संबंध से इनकार करने के आरोप अस्पष्ट और बिना किसी विवरण के हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता ने उन्हें शादी के बाद से केवल 30-35 बार (लगभग) वैवाहिक संबंधों का आनंद लेने की अनुमति दी थी। इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि कभी भी पूर्ण इनकार नहीं किया गया था।
इसके अलावा, खंडपीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने केवल इस तथ्य पर विचार किया कि दोनों पक्षकार 11 साल तक अलग-अलग रहे और शादी टूटने के आधार पर तलाक दे दिया। इसमें कहा गया कि शक्तियों का ऐसा प्रयोग फैमिली कोर्ट को नहीं दिया गया।
पीठ ने कहा कि यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विवेकाधीन शक्तियों के प्रयोग पर विचार करते समय कई कारकों को ध्यान में रखता है और अवधि की लंबी अवधि उनमें से केवल एक है। इसलिए हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि क्रूरता और शादी टूटने के आधार पर पति को तलाक देने का फैमिली कोर्ट का आदेश टिकाऊ नहीं है।
Join our Facebook Group or follow us on social media by clicking on the icons below
If you find value in our work, you may choose to donate to Voice For Men Foundation via Milaap OR via UPI: voiceformenindia@hdfcbank (80G tax exemption applicable)