इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में कहा कि लव अफेयर के दौरान किसी लड़के और लड़की के बीच लंबे समय तक बना शारीरिक संबंध रेप के दायरे में नहीं आता है, भले ही पुरुष किसी कारण से महिला से शादी करने से इनकार कर दे। हाईकोर्ट ने ये ऐतिहासिक टिप्पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें रेप के आरोपी ने अपने खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की थी। इसके साथ ही अदालत ने संत कबीर नगर के युवक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
क्या है पूरा मामला?
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, याचिकाकर्ता के खिलाफ उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले के महिला थाने में बलात्कार का आरोप लगाते हुए एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। 16 मार्च, 2020 को उसके खिलाफ चार्जशीट दायर किया गया था। मामले के तथ्यों के अनुसार, पीड़ित लड़की (जो वयस्क है) गोरखपुर गई, जहां उसकी बहन की शादी हुई थी और आवेदक उससे पहली बार यहीं मिला था। इसके बाद पीड़िता जब भी अपनी बहन के घर गोरखपुर जाती थी तो वह उससे मिलती थी। इन मुलाकातों के दौरान उनमें प्यार हो गया और आवेदक पीड़िता के घर आने-जाने लगा।
जैसे-जैसे दोनों के बीच बंधन मजबूत होता गया, लड़की और उसके माता-पिता ने पैसे की व्यवस्था करके याचिकाकर्ता को सऊदी अरब भेज दिया। जब याचिकाकर्ता सऊदी अरब से वापस आया तो लड़की और उसके परिवार के सदस्यों ने उस पर शादी करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। जब याचिकाकर्ता लड़के ने लड़की से शादी करने से इनकार कर दिया, तो उसके परिवार ने यह आरोप लगाते हुए FIR दर्ज कराई कि याचिकाकर्ता ने पीड़िता की इच्छा के विरुद्ध शादी के वादे के तहत उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
हाई कोर्ट
युवक की याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता ने याचिकाकर्ता के खिलाफ न्यायिक मजिस्ट्रेट, संत कबीर नगर सत्र अदालत के समक्ष लंबित IPC की धारा 376 (बलात्कार) और अन्य धाराओं के तहत लंबित चार्जशीट, समन आदेश और आपराधिक मामले की पूरी कार्यवाही को रद्द कर दिया। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि आरोपी और पीड़िता के बीच लंबे समय से संबंध थे। पीड़िता के साथ-साथ उसके परिवार वालों को भी इस रिश्ते के बारे में पता था। इसलिए इस तरह के रिश्ते के टूटने के बाद इसे दुष्कर्म नहीं माना जा सकता।
हाई कोर्ट ने कहा, “इस अदालत का विचार है कि यह मानते हुए भी कि आवेदक के खिलाफ लगाए गए सभी आरोप आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 (हाई कोर्ट की अंतर्निहित शक्तियां) के तहत मामले को रद्द करने के आवेदन पर विचार करने के उद्देश्य से सही हैं। कोर्ट ने कहा कि मामले में धारा 376 (बलात्कार) के तहत कोई अपराध स्थापित नहीं होता है, क्योंकि दोनों पक्षों के बीच संबंध सहमति की प्रकृति का था और जिसे परिवार की भी मंजूरी थी।
अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच बाद के घटनाक्रम के बाद ही आवेदक ने लड़की से शादी करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला, “चूंकि, पार्टियों के बीच संबंध लंबे समय से थे और पीड़िता के साथ-साथ उसके परिवार के सदस्यों को भी रिश्ते के परिणामों के बारे में पता था, इसलिए बाद में इस तरह के रिश्ते का उल्लंघन बलात्कार के अपराध की कैटेगरी में नहीं आएगा।”
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