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Home हिंदी कानून क्या कहता है

‘पूरी तरह टूट जाने के बाद भी शादी को बनाए रखना क्रूरता के समान है’, केरल HC ने 38 साल पुरानी शादी को किया खत्म

Team VFMI by Team VFMI
October 2, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Kerala High Court Dissolves 38 Yrs Old Marriage, Says Retaining Marriage Even After Irretrievable Break Down Amounts To Cruelty

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केरल हाई कोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में खुद हस्तक्षेप करते हुए पिछले 38 वर्षों से चली आ रही शादी को खत्म करने का फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि जो विवाह पूरी तरह से टूट गया है, उसे बनाए रखना दोनों पक्षों के प्रति क्रूरता के समान होगा। कोर्ट ने कहा कि इससे कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा। अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार अपरिवर्तनीय रूप से टूटने के बावजूद पक्षों को एक साथ रखना दोनों पक्षों के प्रति क्रूरता होगी।

क्या है पूरा मामला?

हाईकोर्ट ने पति की अपील के बाद यह फैसला सुनाया। पति ने केरल के एक फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। पति ने दावा किया था कि शादी पूरी तरह से टूट गई है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि उनकी पत्नी और दो बच्चों ने उनकी उपेक्षा की है। उन्हें अपने बेटे की शादी में भी आमंत्रित नहीं किया गया है। हालांकि, प्रतिवादी ने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार किया और कहा कि शादी में मामूली झगड़े को क्रूरता के रूप में नहीं माना जा सकता है। फैमिली कोर्ट ने आरोपों को तलाक देने के लिए किसी भी मानसिक या शारीरिक क्रूरता के रूप में नहीं पाया और याचिका खारिज कर दी। इसके बाद पति ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाई कोर्ट

हाई कोर्ट ने कहा कि 38 साल पुरानी शादी को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा, “विवाह को बनाए रखना दोनों पक्षों के लिए क्रूरता है। इससे कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।” इसके साथ ही अदालत ने दोनों पक्षों के बीच विवाह को समाप्त कर दिया। लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस ए. मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले पर ध्यान दिया, जिसमें कहा गया था कि विवाह के अपूरणीय टूटने के बावजूद पक्षकारों को एक साथ रखना दोनों पक्षों के लिए क्रूरता के समान है।

पीठ ने कहा कि अब 38 साल पुरानी शादी को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता। अदालत द्वारा यह भी ध्यान दिया गया कि अपीलकर्ता अकेला रह रहा है। समर घोष बनाम जया घोष (2007) और बीना एमएस बनाम शिनो जी बाबू (2022) में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा करते हुए अदालत ने यह फैसला सुनाया, “…शादी को बरकरार रखना दोनों पक्षों के लिए क्रूरता है और इससे कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।” इस प्रकार कोर्ट ने पति की अपील को स्वीकार कर लिया और दोनों पक्षों के बीच विवाह को समाप्त कर दिया।

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