इलाहाबाद हाई कोर्ट ( Allahabad High Court) ने हाल ही में एक तलाक के खिलाफ दायर एक याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पति या पत्नी के खिलाफ झूठी शिकायत करना और ससुराल वालों के खिलाफ फर्जी आरोप लगाना मानसिक क्रूरता के बराबर है। साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह के अपूरणीय टूटने को तलाक का कानूनी आधार बनाया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जब यह अच्छी तरह से समझ में आ जाए कि पति-पत्नी के बीच संबंध सुधारने की अब कोई भी गुंजाइश नहीं बची है। ऐसी स्थिति में तलाक देने में देरी करने से दोनों पक्षों का नुकसान होगा। हिंदू मैरिज एक्ट में इस संबंध में कोई कानून न होने के कारण अदालतें विवाह के अपूरणीय टूटने को आधार बनाकर तलाक का आदेश नहीं दे सकती हैं।
क्या है पूरा मामला?
जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस राजेंद्र कुमार-चतुर्थ की खंडपीठ ने गायत्री महापात्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए उपरोक्त आदेश पारित किया। वादी अपीलकर्ता/पत्नी और प्रतिवादी/पति के बीच 10.06.1990 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी हुई थी। पति एक IPS अधिकारी है, जबकि पत्नी के पास MBBS की डिग्री है।
वादी और प्रतिवादी के बीच विवाद उनके बेटे के जन्म से पहले ही उत्पन्न हो गए थे, जिसके कारण विभिन्न घटनाएं हुईं। अंततः पति ने क्रूरता के अधार पर तलाक के लिए फैमिली कोर्ट मेरठ में हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13 के तहत मामला दायर किया। आईपीएस अधिकारी असित कुमार पांडा की ओर से दाखिल तलाक की अर्जी स्वीकार करने के मेरठ फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी ने पुनरीक्षण याचिका दाखिल किया था।
हाई कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में विवाह के अपूरणीय टूटने को तलाक आधार नहीं माना गया है। लेकिन परिस्थितियों में हो रहे बदलाव और ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए जहां वैवाहिक संबंध वास्तव में मृत हो रहे हैं। जब तक इस परिकल्पना को व्यवहार में नहीं लाया जाता, तलाक नहीं दिया जा सकता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि निस्संदेह अदालतों को पूरी गंभीरता के साथ विवाह संबंध बचाने का प्रयास करना चाहिए। इसके बावजूद अगर लगता है कि संबंध सुधारे नहीं जा सकते हैं तो तलाक देने में देरी नहीं की जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में किसी कानून के अभाव में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मुनेश कक्कड़ केस में कहा है कि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए विवाह के अपूरणीय टूटने को आधार बनाकर तलाक का आदेश दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने नवीन कोहली केस में भी केंद्र सरकार से अनुशंसा की है कि हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन लाकर विवाह के अपूरणीय टूटने को तलाक का आधार बनाया जाए। समर कोहली केस में सुप्रीम कोर्ट ने लॉ कमीशन की 71वीं रिपोर्ट का जिक्र किया है। पूरी तरह निष्प्रभावी हो चुके विवाह को तलाक का आधार बनाया जाए।
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