बिहार (Bihar) से जनवरी 2020 में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया था, जहां एक पति और उसके माता-पिता ने पत्नी की हत्या के आरोप में बिना किसी जुर्म के छह महीने जेल में बिताए। हैरानी की बात यह है कि कुछ दिनों बाद वह महिला जिंदा ससुरालवालों के घर लौट आई। बाद में पुलिस थाने को महिला के जिंदा लौटने की सूचना मिलने के बाद पति और उसके परिवार को बरी कर दिया गया।
क्या है पूरा मामला?
– बिहार के सुपौल सदर थाना क्षेत्र के तेलवा में 26 मई 2018 को अज्ञात महिला का शव मिला था।
– शव खेत से बरामद होने के एक दिन बाद सोनिया देवी (लापता महिला) के माता-पिता ने उसके पति और ससुरालवालों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करवाया था। पिता ने दावा किया था कि जो शव बरामद हुआ है वह उसकी बेटी की है।
– लिखित शिकायत पर कार्रवाई करते हुए पुलिस तुरंत हरकत में आई और जेल गए सभी आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया था।
– शिकायत के तुरंत बाद उसके पति रंजीत पासवान, ससुर विष्णुदेव पासवान और उसकी सास गीता देवी को गिरफ्तार कर लिया गया। इतना ही नहीं 28 मई, 2018 (शव मिलने के 2 दिनों के भीतर) को सभी को जेल भी भेज दिया गया।
– पुलिस ने अपनी जांच रिपोर्ट में मृत महिला को सोनिया होने की पुष्टि की और जांच रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी।
– बाद में शव को अंतिम संस्कार के लिए सोनिया के माता-पिता के पास भेज दिया गया।
– जांच रिपोर्ट के आधार पर स्थानीय अदालत ने भी आरोपियों को जमानत देने से इनकार कर दिया।
– मामले ने तब दिलचस्प मोड़ ले लिया जब लापता महिला ने छह महीने बाद दिल्ली से ससुरालवालों को बुलाकर कहा कि उसे मानव तस्करों ने बहका दिया था और अब वब घर लौटना चाहती है।
– इसके बाद, उसके ससुराल वाले उसे दिल्ली से लाए और अदालत के सामने यह दिखाने के लिए पेश किया कि कैसे पुलिस ने एक फर्जी मामले में निर्दोष लोगों को जेल भेज दिया था, जबकि पुलिस द्वारा मृत घोषित महिला जीवित है।
– 5 माह 20 दिन जेल में रहने के बाद हाईकोर्ट एवं जिला जज ने महिला की हत्या के दोषी पति और उसके माता-पिता को जमानत दे दी।
– सभी को उनके जमानत बांड दायित्वों से भी मुक्त कर दिया गया।
पीड़ित पक्ष को मुआवजा देने का निर्देश
इस मामले ने बिहार पुलिस की जांच प्रक्रिया पर कई सवाल खड़े किए गए थे। कोर्ट ने स्थानीय पुलिस पर भी कुछ तीखी टिप्पणियां की थीं। कोर्ट ने इसे ब्लैक स्पॉट बताते हुए मामले में पुलिस विभाग को मुआवजा योजना के तहत पीड़ित पक्ष को छह लाख रुपये का भुगतान करने का भी आदेश दिया था। अदालत ने यह भी सुझाव दिया था कि पुलिस चाहे तो जांचकर्ता (जांच अधिकारी) की सैलरी से यह राशि काट सकती है।
एडीजे III रविरंजन मिश्रा की अदालत ने इस मामले में 23 दिसंबर 2019 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने जहां इस मामले में आरोपी को साढ़े पांच महीने तक न्यायिक हिरासत में रखना गैरकानूनी माना। वहीं, अपने आदेश में यह भी कहा था कि जिंदा शख्स की मौत के संबंध में दाखिल चार्जशीट पूरी तरह से जांचकर्ता की लापरवाही की वजह से है।
अदालत ने कहा कि पुलिस उस मृत महिला की वास्तविक पहचान करने में सक्षम नहीं थी, जिसका शव मिला था। आज तक दूसरा मामला (जिस महिला की लाश मिली थी) भी लंबित है। इस मामले में पीड़ितों की ओर से न्यायिक लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अनिल कुमार सिंह ने कहा कि वह इस मामले को हाईकोर्ट ले जाएंगे।
उन्होंने कहा कि मामले में अदालत की टिप्पणी कुछ पुलिसकर्मियों की कार्यशैली को पूरी तरह से उजागर करती है, जो महिला के माता-पिता के कहने पर ही हरकत में आ गए। सिंह ने यह भी कहा कि यह एक अकेला मामला नहीं है, बल्कि जिले में ऐसे कई मामले मौजूद हैं। कार्यकर्ता ने मामले से जुड़े जांच अधिकारी और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की भी मांग की है।
हालांकि, अनिल मामले को आगे ले जाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि पीड़ित पक्ष ने अदालत के फैसले के बाद कानून में विश्वास व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि पासवान और परिवार को लग रहा है कि देर ही सहीं लेकिन उन्हें न्याय मिला है। हालांकि उन्होंने कहा कि थोड़ी देर हो चुकी है।
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