बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने 3 जनवरी, 2022 को अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में अपनी सास को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत दे दी। कोर्ट को यह आरोप मनगढ़ंत लग रहा था, क्योंकि यह पेश किया गया था कि आदमी और उसकी पत्नी दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ तलाक और घरेलू हिंसा की कार्यवाही शुरू की थी। महिला के मुताबिक, दामाद ने बेटी की शादी से पहले और बाद में उसके साथ कई दुष्कर्म किया।
क्या है पूरा मामला?
जस्टिस सारंग वी कोतवाल (Justice Sarang V Kotwal) की एकल-जज पीठ उल्हासनगर में दर्ज FIR के संबंध में व्यक्ति द्वारा दायर पूर्व-गिरफ्तारी जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत केस दर्ज किया था। यह आरोप लगाया गया था कि घटनाएं 2019 और 2020 में हुई थीं। बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि एक महिला के लिए अपनी बेटी को ऐसे पुरुष से शादी करने की इजाजत देना असंभव है, जिसने उसे पहले यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया था।
सास द्वारा लगाए गए आरोप
शख्स की सास द्वारा दायर FIR में कहा गया है कि 2017 में, जब वह उल्हासनगर के एक अपार्टमेंट में अपने पति और दो बेटियों के साथ रहती थी। वह व्यक्ति, जो उस इमारत का सचिव था, अक्सर उनसे मिलने आता था। उसने आरोप लगाया कि 2018 की शुरुआत में, उसने उसके साथ शारीरिक रूप से करीब आने की कोशिश की और विरोध करने पर उसने उसे बदनाम करने की धमकी दी।
इसके बाद, उसकी बेटी उसी आदमी के साथ रिश्ते में थी और परिवार ने जून 2018 में उनकी शादी कर दी। दंपति को जुलाई 2019 में एक बेटा हुआ। महिला ने आरोप लगाया कि फरवरी, 2020 में उसके दामाद ने जब वह अकेली थी तो उसके साथ जबरदस्ती की। जब उसने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, तो उसने कथित तौर पर उसका यौन उत्पीड़न किया। दिसंबर 2020 में, दंपति में लड़ाई हुई और पत्नी उल्हासनगर में अपने माता-पिता के पास लौट आई। इसके बाद महिला ने अपने परिवार को सारी कहानी बताई और उसके द्वारा दामाद के खिलाफ FIR दर्ज कराई गई।
आरोपित (दामाद) की दलीलें
वहीं, आरोपित व्यक्ति के वकील डिंपल जोशी, कृष्णा खत्री और हीरल जोशी ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता की बेटी के साथ लड़ने और उसे छोड़ने के बाद ही उसके खिलाफ आरोप लगाए गए थे। उन्होंने कहा कि उस व्यक्ति ने मार्च 2021 में तलाक की कार्यवाही शुरू की थी, जबकि उसकी पत्नी ने उसी साल नवंबर में घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (2005) के तहत कार्यवाही शुरू की थी, और वर्तमान FIR आवेदक पर दबाव बनाने और उसे झूठा फंसाने के लिए दर्ज की गई थी।
बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश
जस्टिस कोतवाल ने कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप उनकी सत्यता के बारे में विश्वास को प्रेरित नहीं करते हैं। FIR में बताया गया है कि कैसे आवेदक ने फरवरी 2019 के महीने में महिला के साथ दुर्व्यवहार किया और फिर भी उसने स्वेच्छा से आवेदक को अपनी बेटी से शादी करने की अनुमति दे दी। यह आचरण अपने आप में अप्राकृतिक है।
अदालत ने आगे कहा कि आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) के तहत अपराध के आरोप भी एक पूरक बयान के माध्यम से एक विलंबित चरण में लगाए जाते हैं। इस स्तर पर, अभियोजन की कहानी के बारे में पर्याप्त संदेह पैदा किया जाता है। हाई कोर्ट ने इसके आधार पर व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी की स्थिति में 30,000 रुपये के निजी मुचलके पर जमानत पर रिहा करने का निर्देश दे दिया।
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