बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में तलाक के एक मामले में ट्रांसफर याचिका की अनुमति देते हुए कहा है कि एक महिला को अकेले यात्रा करने में न केवल शारीरिक बल्कि भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक असुविधा पर भी विचार करना होगा। अदालत ने तलाक के मामले को नासिक के फैमिली कोर्ट से पुणे फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर करने की अनुमति देते हुए कहा कि केस के ट्रांसफर मामलों में पत्नी की सुविधा को प्राथमिकता दी जाएगी।
क्या है पूरा मामला?
verdictum.in की रिपोर्ट के मुताबिक, पत्नी (आवेदक) द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 24 के तहत हाई कोर्ट में आवेदन दायर किया गया था, जिसमें पति (प्रतिवादी) द्वारा नासिक के फैमिली कोर्ट में शुरू की गई तलाक की कार्यवाही को पुणे के फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की गई थी। कपल ने फरवरी 2019 में नासिक में शादी की थी। अक्टूबर 2022 में वैवाहिक मुद्दों के कारण पत्नी वैवाहिक घर छोड़कर पुणे चली गई। इसके बाद 23 फरवरी, 2023 को पति ने नासिक में तलाक की याचिका दायर की, जिसके बारे में पत्नी को 6 अप्रैल, 2023 तक पता नहीं था।
पत्नी ने अपने वकील के माध्यम से अप्रैल 2023 में पति को एक नोटिस जारी किया, जिसमें वैवाहिक गलतियां करने का आरोप लगाया गया। महिला ने कहा कि कुछ शर्तों के साथ आपसी सहमति से तलाक लें। पति ने मई 2023 में नोटिस का जवाब दिया। चूंकि पत्नी को तलाक की याचिका के लिए समन नहीं मिला था, वह स्थिति को सत्यापित करने के लिए जून 2023 में नासिक गई और याचिका की एक कॉपी प्राप्त की।
वकील एच.पी. व्यास पत्नी की ओर से उपस्थित हुए, जबकि वकील वर्षा पिचाया पति की ओर से उपस्थित हुईं। पत्नी के वकील द्वारा प्रस्तुत किया गया था कि वह एक महिला वादी होने के नाते पुणे में अपने माता-पिता के साथ रहने और अपने पिता के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के कारण अदालती कार्यवाही के लिए अकेले यात्रा नहीं कर सकती है। वहीं, पति के वकील ने ट्रांसफर का विरोध करते हुए तर्क दिया कि यात्रा के कारण असुविधा का पत्नी का दावा अमान्य है, क्योंकि उसने जून 2023 में नासिक की यात्रा की थी। वकील ने यह भी कहा कि पति को घबराहट के दौरे भी आते हैं और उसका इलाज चल रहा है। इसलिए वह पुणे यात्रा नहीं कर सकता।
हाई कोर्ट
जस्टिस अभय आहूजा की खंडपीठ ने कहा कि एक महिला के लिए अदालत में कार्यवाही के लिए अकेले यात्रा करना, वह भी वहां जहां उसे किसी भी परिवार के सदस्य के बिना जाना है, निश्चित रूप से चिंता का विषय होगा। यह यात्रा न केवल शारीरिक असुविधा का कारण बनेगा, बल्कि भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक असुविधा भी होती है। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, ट्रांसफर मामलों में पत्नी की सुविधा पर विचार किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रतिवादी भी घबराहट और चिंता से गुजर रहा होगा, जैसा कि दलील में बताया गया है। हालांकि, जैसा कि रजनी किशोर परदेशी के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने देखा था कि इस प्रकार के मामलों में यह पत्नी की सुविधा है जिसे पति की सुविधा से अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए।” अदालत ने कहा कि पत्नी के परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है जो उसके पिता की स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए अदालती कार्यवाही के लिए उसके साथ नासिक जा सके।
कोर्ट ने कहा कि भले ही पत्नी ने एक बार नासिक की यात्रा की हो, लेकिन ऐसे मामलों में उसके परिवार का मार्गदर्शन और समर्थन महत्वपूर्ण है। पीठ ने आगे कहा कि यह सच है कि प्रतिवादी 2014 से घबराहट/चिंता के हमलों से पीड़ित हो सकता है और उसका इलाज भी चल रहा है। हालांकि, यह माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई फैसलों में तय किया गया कानून है, जहां माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय समाज में वर्तमान सामाजिक-आर्थिक प्रतिमान पर विचार करते हुए माना है कि ट्रांसफर पर विचार करते समय पत्नी की सुविधा को देखा जाना चाहिए।
अदालत ने पति की स्वास्थ्य स्थिति को स्वीकार करते हुए कहा कि हालांकि, प्रतिवादी पति की स्वास्थ्य स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट किया जाता है कि वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से फैमिली कोर्ट, पुणे के समक्ष पेश होने के लिए स्वतंत्र होगा। उक्त फैमिली कोर्ट में उन तारीखों पर इस संबंध में आवेदन किया गया है, जहां उसकी भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है। इसके साथ ही तलाक की कार्यवाही को पुणे के फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर करने का आदेश दिया गया।
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