बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने 3 साल के बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट पर पिता का नाम सही करने में नवी मुंबई नगर निगम (Navi Mumbai Municipal Corporation) की अनिच्छा पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए नगर निकाय को बर्थ सर्टिफिकेट में महिला के पूर्व पति के नाम को तुरंत बच्चे के जैविक पिता के नाम से बदलने का निर्देश दिया।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, इस मामले में तथ्य बेहद अजीबोगरीब हैं। याचिकाकर्ता मां ने 2017 में मिस्टर P से शादी से पहले इस्लाम से हिंदू धर्म अपना लिया था। अपने मतभेदों के कारण जून 2018 में कपल अलग हो गए और आपसी सहमति से तलाक के लिए दायर किया। हालांकि, फरवरी 2021 में तलाक होने से पहले महिला अन्य मिस्टर R (काल्पनिक नाम) के साथ रिश्ते में आई और गर्भवती हो गई। उसने एक बच्चे को जन्म दिया। जैसा कि होना था, उसकी डिलीवरी के समय उसके पति मिस्टर P उसे अस्पताल ले गए और अनजाने में उसका नाम अस्पताल के रिकॉर्ड और बर्थ सर्टिफिकेट में ‘पति’ और ‘बच्चे के पिता’ के रूप में दर्ज किया गया।
जब महिला को बर्थ सर्टिफिकेट में यह त्रुटि दिखी तो उसने पिता का नाम बदलने के लिए निगम से संपर्क किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। निगम ने उन्हें बताया कि पिता का नाम बदलने का कोई प्रावधान नहीं है। फिर उसने CBD, बेलापुर में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी से संपर्क किया। मजिस्ट्रेट ने अप्रैल, 2023 में आदेश पारित किया, लेकिन राहत देने से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता के वकील उदय वारुनजिकर ने एबीसी बनाम राज्य (एनसीटी ऑफ दिल्ली) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब भी कोई एकल माता-पिता या अविवाहित मां बर्थ सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करती है तो एकमात्र शर्त यह होनी चाहिए कि उसे हलफनामा प्रस्तुत करना होगा। उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के 2018 के फैसले का भी हवाला दिया, जिसने बर्थ सर्टिफिकेट से शुक्राणु दाता का नाम हटाने की अविवाहित मां की याचिका को अनुमति दे दी थी।
हाई कोर्ट
हाईकोर्ट ने कहा कि नवी मुंबई नगर निगम और जेएमएफसी द्वारा इन मामले कानूनों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। जस्टिस जीएस पटेल और जस्टिस कमल खाता ने एनएमएमसी और मजिस्ट्रेट के समक्ष मां के असफल प्रयासों के बारे में कहा, “हम स्वीकार करते हैं कि हम नगर निगम और इस मामले में जेएमएफसी के दृष्टिकोण को समझने में असमर्थ हैं।”
अदालत ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा घोषित बाध्यकारी कानून है। नगर निगम को यह कहने की आजादी नहीं है कि ‘कोई कानून नहीं है।’ वास्तव में एक कानून है। कोर्ट ने इसके साथ ही एनएमएमसी को बच्चे के लिए उसके जैविक पिता के नाम के साथ एक नया बर्थ सर्टिफिकेट जारी करने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट ने कहा कि इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हमें नियम को पूर्ण बनाने और नवी मुंबई नगर निगम को तुरंत V के नाम पर उसके पिता का नाम दिखाते हुए बर्थ सर्टिफिकेट जारी करने का निर्देश देने में कोई हिचकिचाहट नहीं है।
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