बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच (Nagpur bench of Bombay High Court) ने हाल ही में अपने एक ताजा आदेश में नौ साल के बच्चे से बात करने के बाद पिता को उसकी कस्टडी सौंपने पर अंतरिम रोक लगा दी। फैमिली कोर्ट ने गर्मी की छुट्टियों के दौरान हर महीने के तीसरे शनिवार को उस व्यक्ति को उसके बेटे की कस्टडी दी थी।
फैमिली कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए जस्टिस रोहित देव ने प्रतिवादी पिता को नोटिस जारी कर अगली तारीख तक जवाब देने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि मैंने बच्चे के साथ उसकी मां और उसके वकील की मौजूदगी के बातचीत की है।
क्या है पूरा मामला?
मां ने वकील प्रकाश, सुरभि नायडू और जोसेफ बास्टियन के माध्यम से फैमिली कोर्ट के आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मां ने कहा था कि निचली अदालत का आदेश गलत परिसरों और अनुमानों पर आधारित था। उनके अनुसार, लड़के की कस्टडी के आवेदन पर फैमिली कोर्ट को विचार नहीं करना चाहिए था, क्योंकि लड़के के जन्म के तुरंत बाद पति ने उन दोनों को छोड़ दिया था।
उसने कहा कि प्रतिवादी उन्हें रखरखाव का भुगतान करने के लिए भी अनिच्छुक थे। इसके बजाय, उन्होंने हाई कोर्ट में फैमिली कोर्ट के आदेशों को चुनौती दी, जिसने उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया। इसके बाद, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां पति और पत्नी दोनों को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया गया, जिसमें उनके आय स्रोतों और उनके स्वामित्व वाली संपत्ति का उल्लेख किया गया था।
SC ने पति को 13 लाख रुपये भुगतान करने का दिया था आदेश
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने 2020 में पति की याचिका का निपटारा करते हुए उसे 12 सप्ताह के भीतर 13 लाख रुपये से अधिक की बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था। हालांकि, उन्होंने आदेश का पालन नहीं किया।
महिला के वकीलों ने बताया कि पिता ने नाबालिग बेटे की पढ़ाई का खर्च उठाने तक की जहमत नहीं उठाई। वह घर, जहां वह एक आलीशान इलाके में रहता था, एक प्रमुख बिल्डर को बेच दिया गया था और उसके द्वारा नए भवन में एक पेंटहाउस रखा गया था।
पति के पासपोर्ट का हवाला देते हुए वकीलों ने दिखाया कि वह एक शानदार जीवन शैली जी रहा था और वन्यजीव पर्यटन और फोटोग्राफी की आड़ में कई देशों की यात्रा की थी। उन्होंने कहा कि अच्छी तरह से संपन्न होने और पर्याप्त पैसे होने के बावजूद, उसने जानबूझकर अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी और दायित्व से किनारा कर लिया है। उन्होंने लड़के की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की भी परवाह नहीं की।
फैमिली कोर्ट के आदेश का विरोध
फैमिली कोर्ट के आदेशों का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि फैमिली कोर्ट के जज का यह कर्तव्य है कि वह नाबालिग बेटे की इच्छाओं का पता लगाने के लिए उसका इंटरव्यू करें। वकीलों ने कहा कि बेटे की अनुपस्थिति में आदेश शुरू से ही शून्य था, और स्पष्ट रूप से यह रद्द करने के योग्य था।
वकीलों ने बताया कि पति के आवेदन में पत्नी द्वारा बेटे के दिमाग में जहर घोलने या उसे पढ़ाने का कोई प्रयास करने का कोई आरोप नहीं था, और वह अपनी राय बनाने एवं व्यक्त करने के लिए पर्याप्त बुद्धिमान था।
Join our Facebook Group or follow us on social media by clicking on the icons below
If you find value in our work, you may choose to donate to Voice For Men Foundation via Milaap OR via UPI: voiceformenindia@hdfcbank (80G tax exemption applicable)