दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के एक मामले में संबंधित पक्षों के बीच समझौते के बाद FIR रद्द कर दी है। शिकायतकर्ता के यह कहने के बाद कि उसने स्वेच्छा से आरोपी के साथ सभी विवादों को सुलझा लिया है, जस्टिस सौरभ बनर्जी ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं और पॉक्सो अधिनियम की धारा 8/12 के तहत आरोपी के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया।
POCSO मामले को रद्द करते हुए दिल्ली कोर्ट ने आरोपी के पिता को राष्ट्रीय राजधानी के 10 सरकारी स्कूलों में टीचरों के लिए आर्थोपेडिक डॉक्टरों द्वारा फ्री हेल्थ चेकअप की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है। जस्टिस सौरभ बनर्जी ने वर्तमान में इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कार्यरत आरोपी के पिता से टीचरों के लिए फ्री हेल्थ चेकअप प्रदान करने के लिए उक्त एसोसिएशन से जुड़े ऑर्थोपेडिक सर्जन या डॉक्टरों की व्यवस्था करने को कहा।
क्या है पूरा मामला?
पीडि़ता ने कहा कि वह याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही आगे नहीं बढ़ाना चाहती हैं और FIR रद्द करने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। शिकायतकर्ता ने पुष्टि की कि 16 फरवरी को दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हुआ था। उसने अदालत को बताया कि वह आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही नहीं करना चाहती और उसे एफआईआर रद्द करने पर कोई आपत्ति नहीं है।
हाई कोर्ट
फैसले के हिस्से के रूप में अदालत ने आरोपी के पिता को दिल्ली के 10 सरकारी स्कूलों में टीचरों के लिए आर्थोपेडिक डॉक्टरों द्वारा फ्री हेल्थ चेकअप की व्यवस्था करने का निर्देश दिया। आरोपी के पिता इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी हैं। अदालत ने कहा कि FIR पार्टियों और उनके परिवारों के बीच गलतफहमी और व्यक्तिगत द्वेष के कारण दर्ज की गई थी और एक स्वैच्छिक समझौता हो गया है।
जस्टिस बनर्जी ने कहा, “वर्तमान मामले में शामिल तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते समय, न्यायालय को इसमें कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों के लिए यदि वह दोषी ठहराया जाता है तो गंभीर दंड से जुड़े जघन्य अपराध शामिल हैं।”
अदालत ने जज ने कहा कि FIR जारी रखना व्यर्थ होगा, क्योंकि आरोपी को दोषी ठहराए जाने की संभावना बहुत कम है। कोर्ट ने भी आरोपों की गंभीरता को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि इसमें शामिल पक्ष युवा व्यक्ति थे जो अपनी पढ़ाई और भावी करियर की तलाश में थे।
दिल्ली हाई कोर्ट ने आगे कहा, “मौजूदा परिस्थितियों में प्राथमिकी को जारी रखना व्यर्थ की कवायद होगी, क्योंकि मौजूदा तथ्यात्मक मैट्रिक्स को देखते हुए, याचिकाकर्ता को दोषी ठहराए जाने की संभावना बहुत कम है।” जस्टिस बनर्जी ने सरकारी स्कूलों में आर्थोपेडिक डॉक्टरों द्वारा मुफ्त जांच प्रदान करने की नेक सेवाएं प्रदान करने के लिए आरोपी के पिता की भी सराहना की।
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