दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि पति या पत्नी द्वारा जान-बूझकर सेक्स से इनकार करना क्रूरता के बराबर है। इसके साथ ही ऐसे कपल के लिए तलाक को बरकरार रखा, जिनकी शादी मुश्किल से 35 दिनों तक चली थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने कपल को फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक के फैसलो को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया है।
क्या है पूरा मामला?
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, कपल ने 2004 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी की थी। शादी के कुछ दिनों बाद ही पत्नी अपने माता-पिता के घर वापस चली गई और फिर ससुराल वापस नहीं लौटी। बाद में पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। फैमिली कोर्ट ने तलाक की मंजूरी दे दी थी। तलाक देने के फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी ने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।
हाई कोर्ट
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने तलाक देने के फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि “सेक्स के बिना शादी एक अभिशाप है।” अदालत ने कहा कि यौन संबंधों में निराशा से ज्यादा घातक शादी के लिए कुछ भी नहीं है। कोर्ट ने पाया कि पत्नी के विरोध के कारण विवाह टूटने के कगार पर आई, जिसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसे दहेज के लिए परेशान किया गया था, लेकिन बिना कोई “ठोस सबूत” दिए। पीठ ने कहा, इसे क्रूरता भी कहा जा सकता है।
पीठ ने कहा कि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि 18 साल से अधिक की अवधि में इस तरह का अभाव मानसिक क्रूरता के समान है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि फैमिली कोर्ट ने “सही निष्कर्ष निकाला” कि हालांकि परित्याग का आधार साबित नहीं हुआ है, लेकिन पति के प्रति पत्नी का आचरण क्रूरता के समान है, जो उसे तलाक की डिक्री का हकदार बनाता है।
पीठ ने कहा, “दहेज उत्पीड़न के आरोप लगाने के परिणामस्वरूप FIR दर्ज की गई और उसके बाद की सुनवाई को केवल क्रूरता का कार्य कहा जा सकता है, जब अपीलकर्ता दहेज की मांग की एक भी घटना को साबित करने में विफल रहा है।”
अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न कृत्यों पर बात की है जो मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आ सकते हैं। अदालत ने कहा कि ऐसा ही एक उदाहरण बिना किसी शारीरिक अक्षमता या वैध कारण के काफी समय तक संभोग करने से इनकार करने का एकतरफा निर्णय था।
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