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Home हिंदी कानून क्या कहता है

अविवाहित पार्टनरशिप और समलैंगिक संबंधों को भी परिवार कहा जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

Team VFMI by Team VFMI
September 5, 2022
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Familial Relationships May Take Form Of Domestic, Unmarried Partnerships or Queer Relationships: Supreme Court

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक हालिया आदेश में कहा है कि पारिवारिक संबंध घरेलू, अविवाहित सहजीवन या समलैंगिक रिश्ते के रूप में भी हो सकते हैं। साथ ही शीर्ष अदालत ने उल्लेख किया कि एक इकाई के तौर पर परिवार की असामान्य अभिव्यक्ति उतनी ही वास्तविक है जितनी कि परिवार को लेकर पारंपरिक व्यवस्था, तथा यह भी कानून के तहत सुरक्षा का हकदार है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून और समाज दोनों में परिवार की अवधारणा की प्रमुख समझ यह है कि इसमें एक मां और एक पिता (जो संबंध समय के साथ स्थिर रहते हैं) और उनके बच्चों के साथ एक एकल, अपरिवर्तनीय इकाई होती है।

क्या है पूरा मामला?

शीर्ष अदालत ने बीते दिनों एक फैसले में उपरोक्त टिप्पणी की थी कि एक कामकाजी महिला को उसके जैविक बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश के वैधानिक अधिकार से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उसके पति की पिछली शादी से दो बच्चे हैं और उसने उनमें से एक की देखभाल के लिए छुट्टी का लाभ उठाया था।

अदालत ने कहा था कि मातृत्व अवकाश देने का उद्देश्य महिलाओं को कार्यस्थल में अन्य लोगों के साथ शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना है, लेकिन यह बात भी कड़वा सच है कि इस तरह के प्रावधानों के बावजूद महिलाएं बच्चे के जन्म पर अपना कार्यस्थल छोड़ने के लिए मजबूर हैं। चूंकि उन्हें अवकाश सहित अन्य सुविधाजनक उपाय नहीं दिए जाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट

पीटीआई के मुताबिक, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने एक आदेश में कहा कि यह धारणा दोनों की उपेक्षा करती है, कई परिस्थितियां जो किसी के पारिवारिक ढांचे में बदलाव ला सकती हैं, और यह तथ्य कि कई परिवार इस अपेक्षा के अनुरूप नहीं हैं। पारिवारिक संबंध घरेलू, अविवाहित सहजीवन या समलैंगिक संबंधों का रूप ले सकते हैं।

शीर्ष अदालत की टिप्पणियां इसलिए काफी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि कार्यकर्ता 2018 में समलैंगिकता को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपराध की कैटेगरी से बाहर करने के बाद एलजीबीटी के लोगों के विवाह और ‘सिविल यूनियन’ को मान्यता देने के साथ-साथ लिव-इन जोड़ों को गोद लेने की अनुमति देने के मुद्दे को उठा रहे हैं।

अपने विस्तृत फैसले में कोर्ट ने कहा है कि कई कारणों से सिंगल माता-पिता का परिवार हो सकता है और यह स्थिति पति या पत्नी में से किसी की मृत्यु हो जाने, उनके अलग-अलग रहने या तलाक लेने के कारण हो सकती है। शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि इसी तरह, बच्चों के अभिभावक और देखभाल करने वाले (जो परंपरागत रूप से मां और पिता की भूमिका निभाते हैं) पुनर्विवाह, गोद लेने या दत्तक के साथ बदल सकते हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि कि प्रेम और परिवारों की ये अभिव्यक्तियां विशिष्ट नहीं हो सकती हैं, लेकिन वे अपनी पारंपरिक व्यवस्था की तरह ही वास्तविक हैं और परिवार इकाई की ऐसी असामान्य अभिव्यक्तियां न केवल कानून के तहत सुरक्षा के लिए बल्कि सामाजिक कल्याण कानून के तहत उपलब्ध लाभों के लिए भी समान रूप से योग्य हैं। पीठ की तरफ से फैसला लिखने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जब तक वर्तमान मामले में एक उद्देश्यपूर्ण व्याख्या नहीं अपनाई जाती, तब तक मातृत्व अवकाश देने का उद्देश्य और मंशा विफल हो जाएगी।

कोर्ट की अहम टिप्पणियां

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘1972 के नियमों के तहत मातृत्व अवकाश देने का उद्देश्य महिलाओं को कार्यस्थल पर बने रहने में सुविधा प्रदान करना है. इस तरह के प्रावधानों के लिए यह एक कठोर वास्तविकता है कि अगर उन्हें छुट्टी और अन्य सुविधाएं नहीं दी जाती हैं तो कई महिलाएं सामाजिक परिस्थितियों के मद्देनजर बच्चे के जन्म पर काम छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगी।

पीठ ने कहा कि कोई भी नियोक्ता बच्चे के जन्म को रोजगार के उद्देश्य से अलग नहीं मान सकता है और बच्चे के जन्म को रोजगार के संदर्भ में जीवन की एक प्राकृतिक घटना के रूप में माना जाना चाहिए। इसलिए, मातृत्व अवकाश के प्रावधानों को उस परिप्रेक्ष्य में माना जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले के तथ्यों से संकेत मिलता है कि अपीलकर्ता (पेशे से नर्स) के पति की पहले भी शादी हुई थी, जो उसकी पत्नी की मृत्यु के परिणामस्वरूप समाप्त हो गया था, जिसके बाद उसने महिला शादी की। पीठ ने कहा कि तथ्य यह है कि अपीलकर्ता के पति की पहली शादी से दो बच्चे थे, इसलिए अपीलकर्ता अपने एकमात्र जैविक बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश का लाभ उठाने की हकदार नहीं होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तथ्य यह है कि उसे पहले की शादी से अपने जीवनसाथी से पैदा हुए दो जैविक बच्चों के संबंध में बाल देखभाल के लिए छुट्टी दी गई थी, यह एक ऐसा मामला हो सकता है जिस पर संबंधित समय पर अधिकारियों द्वारा उदार रुख अपनाया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले के तथ्य भी संकेत देते हैं कि अपीलकर्ता के परिवार की संरचना तब बदल गई, जब उसने अपनी पिछली शादी से अपने पति के जैविक बच्चों के संबंध में अभिभावक की भूमिका निभाई।

Familial Relationships May Take Form Of Domestic, Unmarried Partnerships Or Queer Relationships | Supreme Court

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