दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) की दो जजों की बेंच ने 11 मई को मैरिटल रेप (Marital Rape) मामले में विभाजित फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अपवाद के खिलाफ दायर याचिकाओं पर बंटा हुआ फैसला दिया है। आपको बता दें कि यह अपवाद पत्नी के साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाने पर पति को बलात्कार के अपराध से छूट देता है। धारा 375 का अपवाद 2, पति का अपनी पत्नी के साथ (अगर पत्नी की उम्र 15 साल से अधिक हो) जबरन सेक्स अपराध नहीं मानता है।
लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस राजीव शकधर ने अपने फैसले में माना कि मैरिटल रेप के अपराध से पति को छूट असंवैधानिक है। इसलिए उन्होंने 375 के अपवाद 2, 376 B IPC को आर्टिकल 14 के उल्लंघन में माना और रद्द कर दिया गया। जस्टिस शकधर ने कहा कि जहां तक पति का सहमति के बिना पत्नी के साथ संभोग का सवाल है, यह आर्टिकल 14 का उल्लंघन है और इसलिए इसे रद्द किया जाता है।
हालांकि, जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि वह जस्टिस शकधर से सहमत नहीं हैं। उन्होंने माना कि धारा 375 का अपवाद 2 संविधान का उल्लंघन नहीं करता है। यह विवेकपूर्ण अंतर और उचित वर्गीकरण पर आधारित है। अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
मेन वेलफेयर ट्रस्ट (वैवाहिक बलात्कार जनहित याचिका में हस्तक्षेप करने वाले) का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील जे साई दीपक द्वारा पोस्ट किए गए पूरे 393-पेज दिल्ली हाई कोर्ट स्प्लिट फैसले को नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ा जा सकता है।
दिल्ली हाई कोर्ट (खुशबू सैफी बनाम भारत संघ) के इस विभाजित फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की गई है। बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ताओं में से एक खुशबू सैफी ने अपने वकील कॉलिन गोंजाल्विस के माध्यम से हाई कोर्ट के समक्ष दायर की गई अपील दायर की है। अपीलकर्ता ने जस्टिस राजीव शकधर के फैसले का समर्थन किया है, जबकि जस्टिस सी हरिशंकर की राय को चुनौती दी है।
यह ध्यान रखना दिलचस्प होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले में फैसला सुनाएगा, क्योंकि उसी शीर्ष अदालत ने नवंबर 2018 में एक याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 375 को इस आधार पर रद्द करने की मांग की गई थी कि यह जेंडर न्यूट्रल नहीं है।
भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट मामले से निपटने के लिए उपयुक्त फोरम है और उन्होंने सुझाव दिया था कि यदि आवश्यक हो तो संसद कानून में संशोधन कर सकती है। क्रिमिनल जस्टिस सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए गोगोई ने कहा कि हम इस स्तर पर हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। संसद को इस मुद्दे पर फैसला लेना है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (जो बलात्कार को परिभाषित करती है) कहती है कि यह एक पुरुष है जो बलात्कार का कार्य करता है और यह एक महिला है जो पीड़ित है। नीचे दी गई याचिका 2018 में इस धारा को चुनौती देते हुए दायर की गई थी, क्योंकि याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि धारा 375 यह नहीं मानती है कि पुरुष और महिला दोनों पीड़ित और साथ ही बलात्कार के अपराधी भी हो सकते हैं।
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https://mensdayout.com/supreme-court-not-the-forum-to-amend-laws-cji-ranjan-gogoi-had-refused-petition-to-make-rape-laws-gender-neutral-2018/
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