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Home हिंदी कानून क्या कहता है

बेटियों को 18 साल की उम्र तक ही गुजारा भत्ता देने का नियम बनाया गया है, शादी तक नहीं: कर्नाटक हाई कोर्ट

Team VFMI by Team VFMI
September 7, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Karnataka HC lets couple seek divorce in less than a year of marriage

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कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान घरेलू हिंसा रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए कहा है कि पिता अपनी बेटियों को केवल 18 साल की आयु तक ही गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य हैं, न कि उनकी शादी तक…। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों के वित्तीय रखरखाव की जिम्मेदारी साझा करती हैं।

क्या है पूरा मामला?

Newsable.asianetnews.com के मुताबिक, हाई कोर्ट का यह निर्णय एक महिला द्वारा दायर आपराधिक समीक्षा याचिका की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें सत्र अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी। सत्र अदालत के आदेश में उसके पति को पत्नी और उसकी दो बेटियों के लिए मामूली राशि का भरण-पोषण प्रदान करने का निर्देश दिया गया था। शुरुआत में सत्र न्यायालय ने प्रति बेटी 5,000 रुपये मासिक भरण-पोषण का आदेश दिया, जिसे बाद में सत्र न्यायालय ने घटाकर 4,000 रुपये कर दिया।

हाई कोर्ट

हाई कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा रोकथाम अधिनियम के तहत अविवाहित महिलाएं और बच्चे शादी तक भरण-पोषण के पात्र नहीं हैं। अदालत ने कहा कि केवल 18 साल से कम आयु के व्यक्ति ही इस तरह के समर्थन का दावा कर सकते हैं।

इसके अलावा, हाई कोर्ट ने हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20(3) का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि अगर बेटियां वयस्क होने के बाद भी अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं तो वे अपने पिता से भरण-पोषण की मांग कर सकती हैं।

इस विशिष्ट मामले में (जहां माता-पिता दोनों टीचर के रूप में काम करते थे) अदालत ने फैसला सुनाया कि बच्चों के भरण-पोषण के लिए केवल पिता ही जिम्मेदार नहीं था। मां ने यह जिम्मेदारी साझा की। हाई कोर्ट ने सत्र अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि यदि अतिरिक्त भरण-पोषण की आवश्यकता है, तो बेटियां हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम के तहत इसे आगे बढ़ा सकती हैं।

बेंगलुरु के रवि गौड़ा और उमा से जुड़ा यह मामला IPC की धारा 498A के तहत उमा द्वारा दायर क्रूरता और घरेलू हिंसा की शिकायत से उपजा है। मामला अभी भी अदालत में लंबित है और उमा ने अपने और अपने बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगा है।

जबकि अदालत ने भरण-पोषण आदेश को बरकरार रखा, लेकिन किसी भी तरह से कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग न करने के महत्व पर भी जोर दिया। यह भी कहा गया कि एक अलग घर उपलब्ध कराया जाना चाहिए और रखरखाव के लिए 10 लाख रुपये देने का आदेश दिया गया।

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