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Home हिंदी कानून क्या कहता है

हिंदू मैरिज एक्ट बेमेल शादी को तलाक के आधार के रूप में मान्यता नहीं देता, इससे कपल्स को कष्ट सहना पड़ता है: दिल्ली हाई कोर्ट

Team VFMI by Team VFMI
September 12, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Hindu Marriage Act Still Does Not Recognise Irretrievable Breakdown in Marriage As Grounds for Divorce

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दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने 5 सितंबर, 2023 के अपने आदेश में एक मृत विवाह को भंग कर दिया, जहां कपल 15 साल से अलग रह रहे थे। हालांकि इसके बावजूद महिला ने तलाक के लिए सहमति नहीं दी। हाई कोर्ट ने इस पर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट में विवाहित कपल के बेमेल होने को तलाक के आधार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है, जिससे ऐसे कपल्स को “कटु संबंधों” के साथ जीना पड़ता है, जिसमें से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता। कोर्ट ने कहा कि कपल अभी भी ‘दोष’ आधारित सिद्धांत का पालन करता है।

क्या है पूरा मामला?

कपल की शादी अप्रैल 2006 में हुई थी। कपल के घर जनवरी 2007 में एक बेटे का जन्म हुआ। वैवाहिक विवादों के कारण पत्नी ने दिसंबर 2008 में बेटे के साथ अपने पति का घर छोड़ दिया। इसके बाद, महिला ने पति और उसके परिवार के खिलाफ IPC की धारा 498-A सहित कई मामले दर्ज किए। लगभग 15 सालों से साथ नहीं रहने के बावजूद, महिला ने 2020 में फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसने पति को तलाक दे दिया।

पति का तर्क

पति के अनुसार, उसकी पत्नी उसके और उसके परिवार के सदस्यों के प्रति आक्रामक, झगड़ालू एवं हिंसक स्वभाव की थी। वह अक्सर उसे या परिवार के सदस्यों को बताए बिना वैवाहिक घर छोड़ देती थी और जब भी वे स्पष्टीकरण मांगते थे, तो वह झगड़ा करती थी। जब भी पति के रिश्तेदार उसके घर आते थे तो वह उनके साथ दुर्व्यवहार करती थी। पति की तरफ से आगे यह भी दावा किया गया कि अपीलकर्ता/पत्नी ने बार-बार अनुरोध करने के बावजूद अपने व्यवहार में सुधार नहीं किया और अपनी जिद पर अड़ी रही। बाद में उसने घरेलू काम करने से इनकार कर दिया। फिर दिनांक 8 दिसंबर 2008 को प्रतिवादी से झगड़ा होने के बाद वह अपने मायके चली गई। इसके अलगे दिन 9 दिसंबर 2008 की सुबह अपीलकर्ता के माता-पिता और भाई सहित तीन अन्य अज्ञात व्यक्तियों के साथ प्रतिवादी के घर आए और प्रतिवादी एवं उसके परिवार के सदस्यों के साथ मारपीट करने के बाद उनके आभूषण और अन्य मूल्यवान सामान छीन लिया।

पत्नी का तर्क

प्रतिशोध में अपीलकर्ता ने प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ महिला अपराध (CAW) सेल में शिकायत दर्ज की लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया। बाद में नवंबर 2010 में उन्होंने साकेत कोर्ट के समक्ष घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 के तहत एक शिकायत मामला दायर किया, जिसे मई 2011 में उन्होंने वापस ले लिया।

इसके अतिरिक्त, अपीलकर्ता पत्नी ने CrPC की धारा 125 के तहत एक याचिका भी दायर की, जिसमें प्रतिवादी को अंतरिम रखरखाव के रूप में प्रति माह 3,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया है, जिसे वह नियमित रूप से भुगतान कर रहा है और उक्त याचिका अभी भी विचाराधीन है।

इसके बाद, प्रतिवादी/पति ने अपीलकर्ता/पत्नी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ CrPC की धारा 156(3) के तहत शिकायत दर्ज की, लेकिन पार्टियों के बीच समझौते के बाद 27.06.2011 को इसे वापस ले लिया गया।

2016 में अपीलकर्ता ने फिर से CAW सेल में शिकायत दर्ज की थी और प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ IPC की धारा 498A/406/34 के तहत एक FIR भी दर्ज की गई थी। अपीलकर्ता पत्नी ने यह कहते हुए तलाक की याचिका का विरोध किया कि उसे दहेज के कारण परेशान किया गया और बेरहमी से पीटा गया।

फैमिली कोर्ट, साकेत (दिल्ली)

फरवरी 2020 में फैमिली कोर्ट ने पाया कि हालांकि प्रतिवादी/याचिकाकर्ता की गवाही के अनुसार उनकी शादी शुरुआत में बहुत अच्छी थी, लेकिन उसने अपनी गवाही में विभिन्न घटनाओं को साबित किया है जो स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि अपीलकर्ता/पत्नी द्वारा उसके साथ क्रूरता की गई थी।

यह भी देखा गया कि केवल IPC की धारा 498A के तहत मामला दर्ज होने से प्रतिवादी/पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि पूरे तथ्यों को समग्र रूप में देखा जाना चाहिए और प्रत्येक घटना पर अलग से विचार नहीं किया जा सकता है।

अपीलकर्ता/पत्नी द्वारा प्रतिवादी/पति पर कुछ समय तक निरंतर क्रूरता की गई थी। इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रतिवादी क्रूरता के आधार पर अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) (ia) के तहत तलाक का हकदार था। फैमिली कोर्ट के इस आदेश को पत्नी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

हाई कोर्ट का फैसला

जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत तलाक केवल एडल्ट्री, क्रूरता, परित्याग आदि के आधार पर दिया जाता है। तलाक के लिए विवाह के अपूरणीय टूटने को मान्यता नहीं दी गई है। पीठ ने आगे कहा कि पुराने हिंदू कानून के तहत विवाह को एक संस्कार माना जाता था और तलाक की कोई अवधारणा नहीं थी। इतना कहने के बाद, पीठ ने कहा कि “सामाजिक लोकाचार में अभूतपूर्व बदलाव के बावजूद” हिंदू मैरिज एक्ट केवल “दोष सिद्धांत” पर तलाक के आधार को मान्यता देता है।

अदालत ने कहा कि जब तक कि विपरीत पक्ष की गलती (एडल्ट्री, क्रूरता, परित्याग की धारा 13 के तहत निर्दिष्ट अन्य आधार) नहीं दिखाई जाती, कोई तलाक नहीं दिया जा सकता। समय बीतने के साथ, अनुभव से पता चला है कि कई बार असंगति और स्वभावगत मतभेदों के कारण शादियाँ नहीं चल पाती हैं, जिसके लिए किसी भी पक्ष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

हालांकि, केवल दोष सिद्धांत ही प्रचलित है ये पार्टियां आने वाले वर्षों के लिए एक-दूसरे के साथ केवल इसलिए युद्ध करती रहती हैं क्योंकि उनके पास इस रिश्ते से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। जबकि ‘विवाह के अपूरणीय विघटन’ को एक आधार के रूप में पेश करने के लिए कई बहसें आयोजित की गई हैं, लेकिन यह कानून की मंजूरी और सहमति को पूरा नहीं कर पाया है।

हाई कोर्ट ने कहा कि अदालतें हिंदू मैरिज एक्ट के तहत परिभाषित सीमाओं से बंधी हैं और जब तक दूसरे पति या पत्नी की गलती नहीं दिखाई जाती, “दोनों पक्षों को कटु संबंध झेलने के लिए छोड़ दिया जाता है और बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता है”। फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने विवाह को भंग कर दिया और पति को तलाक दे दिया।

दोनों पक्ष 15 वर्षों से अलग-अलग रह रहे थे और उनके बीच सुलह की कोई संभावना नहीं थी। महिला द्वारा झूठे आरोपों, पुलिस रिपोर्टों और आपराधिक मुकदमे से जुड़ा लंबा अलगाव मानसिक क्रूरता का स्रोत बन गया था। अदालत ने कहा कि इस रिश्ते को जारी रखने या पारिवारिक अदालत के आदेश को संशोधित करने पर कोई भी जोर केवल दोनों पक्षों पर और अधिक क्रूरता पैदा करेगा।

कोर्ट ने कहा कि विवाह में एक साथ रहना कोई अपरिवर्तनीय कार्य नहीं है। लेकिन विवाह दो पक्षों के बीच का बंधन है और यदि यह बंधन किसी भी परिस्थिति में काम नहीं कर रहा है, तो हमें स्थिति की अनिवार्यता को स्थगित करने का कोई उद्देश्य नहीं दिखता है।

वॉयस फॉर मेन इंडिया का तर्क:- वर्तमान में केवल भारत के सुप्रीम कोर्ट के पास संविधान के आर्टिकल- 142 के तहत विवाह को भंग करने की शक्ति है, भले ही एक पति या पत्नी लगातार इसका विरोध करते हों। इससे हाई कोर्ट और फैमिली कोर्ट शक्तिहीन हो जाते हैं, जहां जज भले ही इन अहंकार की लड़ाइयों को समाप्त करना चाहें, लेकिन वे कानून से बंधे हैं।

READ ORDER | Hindu Marriage Act Does Not Recognise Irretrievable Breakdown In Marriage As Grounds For Divorce Leaving Parties To Suffer: Delhi High Court

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