हाल ही में गौहाटी हाई कोर्ट (Gauhati High Court) ने कहा कि भले ही पति के पास भुगतान करने का कोई साधन नहीं है, या उसके पास नौकरी नहीं है, फिर भी उसे अपनी पत्नी का भरण-पोषण करना पड़ता है।
क्या है पूरा मामला?
जस्टिस मालाश्री नंदी की पीठ फैमिली कोर्ट द्वारा पारित फैसले और आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता को प्रतिवादी नंबर 2 को 3,000 रुपये और उसकी बेटी के लिए 2,000 रुपये भरण पोषण मासिक भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। इस मामले में निचली अदालत के समक्ष पत्नी/प्रतिवादी नंबर 2 ने CrPC की धारा 125 के तहत एक आवेदन दिया था। यह कहते हुए कि उसकी शादी मुस्लिम शरीयत कानून के अनुसार संशोधनवादी से हुई थी। शादी के बाद वह अपने पति के घर गई और अपना वैवाहिक दायित्व निभाया।
एक बेटी (जिसका नाम रिफा सानिया प्रोधानी है) का जन्म बिना विवाह के हुआ था। वर्ष 2019 में उसके पति एवं घरवालों ने उससे एक लाख रुपये की मांग की और दहेज की पूर्ति न करने के कारण, उसे अपनी बेटी के साथ ससुराल से निकाल दिया गया था। कोई विकल्प न पाकर उसने अपनी बेटी के साथ अपने माता-पिता के घर में शरण ली।
प्रतिवादी/पत्नी को अपने और अपनी बेटी के लिए 5,000 रुपये के रखरखाव भत्ते की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर करने के लिए मजबूर किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी और बेटी को 5,000 रुपये प्रति माह के हिसाब से मासिक रखरखाव का भुगतान करे। पीठ के समक्ष विचार के लिए मुद्दा यह था कि फैमिली कोर्ट द्वारा पारित निर्णय में हस्तक्षेप की आवश्यकता है या नहीं?
हाई कोर्ट का आदेश
हाईकोर्ट ने पाया कि प्रत्येक याचिका में आम तौर पर पति द्वारा यह दलील दी जाती है कि उसके पास भुगतान करने के साधन नहीं हैं, या उसके पास नौकरी नहीं है या उसका कारोबार अच्छा नहीं चल रहा है। इस मामले में भी पुनरीक्षणवादी की ओर से यह निवेदन किया गया है कि वह एक दिहाड़ी मजदूर है और उसे अपने माता-पिता, बहन और भाई का भरण-पोषण करना पड़ता है। उसने कहा कि वह महीने भर के लिए अपनी पत्नी और बेटी के भरण-पोषण के रूप में 5,000/- रुपये प्रति माह की राशि का भुगतान करने की स्थिति में नहीं है।
पीठ ने आगे कहा कि इस तरह की दलीलों के संबंध में न्यायिक प्रतिक्रिया हमेशा बहुत स्पष्ट रही है कि अपनी पत्नी और बेटी को रखरखाव का भुगतान करना पति की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है। ऐसे आधार पर पति अपने दायित्व से मुक्त नहीं होता है।
हाईकोर्ट ने पाया कि धारा 125 CrPC एक सामाजिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अधिनियमित किया गया है और इसका उद्देश्य आवारागर्दी और विनाश को रोकना है और परित्यक्त या तलाकशुदा पत्नी, नाबालिग बच्चों और बीमार माता-पिता को भोजन, कपड़े और आश्रय और किसी के जीवन की न्यूनतम जरूरतों के मामले में त्वरित उपाय प्रदान करना है।
पीठ ने चतुर्भुज बनाम सीता बाई के मामले का उल्लेख किया जहां सुप्रीम कोर्ट ने यह विचार व्यक्त किया कि धारा 125 सामाजिक न्याय का एक उपाय है और विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए अधिनियमित किया गया है और यह मौलिक अधिकारों और प्राकृतिक कर्तव्यों को प्रभावी बनाता है। पुरुष अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता का भरण-पोषण तब करे जब वे अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हों।
हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट का दृष्टिकोण पूरी तरह से न्यायोचित और कानूनी है और आक्षेपित फैसले और आदेश में कोई सामग्री अवैधता या अनियमितता नहीं है। उपरोक्त के मद्देनजर, पीठ ने पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता/पति को निर्देश दिया कि वह प्रतिवादी/पत्नी को 3000 रुपये प्रति माह और बेटी को 2000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण के तौर पर दे।
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