कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में एक फैसले में कहा है कि वैवाहिक मामले में किसी तीसरे पक्ष के मोबाइल टावर लोकेशन का खुलासा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, क्योंकि यह उस व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा, जो कार्यवाही में पक्षकार नहीं है। लाइव लॉ वेबसाइट के अनुसार, जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा कि एक नागरिक को अपने परिवार, विवाह और अन्य आकस्मिक संबंधों की निजता की रक्षा करने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि सूचनात्मक निजता भी निजता के अधिकार का एक अभिन्न अंग है।
क्या है पूरा मामला?
हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की तरफ से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसने 23 फरवरी, 2019 को एक फैमिली कोर्ट द्वारा पारित उस आदेश को रद्द करने की मांग की थी, जिसमें एक वैवाहिक मामले में फैसला करने के लिए उसके टावर लोकेशन के डिटेल्स की मांग की गई थी।
इस वैवाहिक मामले में पत्नी ने क्रूरता के आधार पर शादी को रद्द करने की मांग कर रखी है। उक्त कार्यवाही में पति के एक आवेदन दायर किया था जिसमें पत्नी और उसके कथित प्रेमी के कॉल डिटेल रिकॉर्ड की मांग की गई थी। उसका आरोप है कि उसकी पत्नी के उस व्यक्ति के साथ ”अवैध” संबंध हैं, जो हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता है।
फैमिली कोर्ट
आवेदन की अनुमति देते हुए, फैमिली कोर्ट ने कहा था कि पति ”कॉल, SMS चैट के माध्यम से की गई बातचीत के डिटेल्स” की मांग नहीं कर रहा है, बल्कि कानून के अनुसार मामले में फैसला करने के लिए केवल टॉवर लोकेशन का डिटेल्स मांग रहा है।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि तीसरे पक्ष की निजता का पति की इस कथित दलील के आधार पर उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि वह याचिकाकर्ता और पत्नी के बीच अवैध संबंध साबित करना चाहता है। यह सत्य है कि निजता का अधिकार भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत देश के नागरिकों को दिए गए जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार में निहित है। यह ‘अकेला रहने’ का अधिकार है।
यह देखते हुए कि पति का इरादा केवल अपनी पत्नी की ओर से कथित एडल्ट्री को साबित करना है, अदालत ने कहा कि तीसरे पक्ष के टावर डिटेल्स को ऐसे कारणों से प्रकट करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अदालत ने कहा कि यह निस्संदेह याचिकाकर्ता के निजता के अधिकार का उल्लंघन करेगा, जो एक पक्षकार नहीं है, जिसे नोटिस जारी नहीं किया गया है और जिसे अपने बचाव में दलील देने की भी अनुमति नहीं है। इसलिए, पति और पत्नी के बीच चल रही कार्यवाही से अवगत कराए बिना याचिकाकर्ता के टावर डिटेल्स की अनुमति देना कानून के विपरीत होगा, वो भी केवल पति के इस आरोप पर कि पत्नी का याचिकाकर्ता के साथ अवैध संबंध है।
पति की इस दलील को खारिज करते हुए कि पत्नी ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती नहीं दी है, पीठ ने कहा कि आदेश के लिए उसकी ”स्वीकृति” का याचिकाकर्ता के उक्त आदेश को रद्द करने की मांग करने के अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अपने फैसले के आखिरी में हाई कोर्ट ने कहा कि पत्नी (जो वैसे भी कार्यवाही में एक पक्षकार है) ने तलाक का मामला दायर किया है, उसकी स्वीकृति या अन्यथा, याचिकाकर्ता को बाध्य नहीं कर सकती है। वहीं, पति की दलील की सहायता के लिए याचिकाकर्ता के टावर डिटेल्स को समन करने या संबंधित न्यायालय के समक्ष लाने की अनुमति देने के लिए कोई अधिकार/वारंट नहीं है, जिसने कोई केस भी दायर नहीं किया है।
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