धारा 498A भारत में सबसे कठोर कानूनों में से एक है, जहां पत्नी की शिकायत पर एक आदमी और उसके पूरे परिवार (करीबी/दूर के रिश्तेदार) को जेल हो सकती है। इस बीच, एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने हालिया आदेश में दोहराया है कि ‘पत्नी द्वारा दहेज उत्पीड़न के सर्वव्यापी आरोपों के आधार पर पति के रिश्तेदारों को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498 ए के तहत क्रूरता के अपराध के लिए मुकदमा चलाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।’
क्या है मामला?
शिकायतकर्ता तरन्नुम अख्तर (सोनी) की शादी 18.09.17 को मोहम्मद इकराम से हुई थी। यहां अपीलकर्ता शिकायतकर्ता के ससुराल वाले हैं। 11.12.17 को उक्त प्रतिवादी ने शुरू में अपने पति और अपीलकर्ताओं के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, पूर्णिया के न्यायालय में दहेज और उत्पीड़न की मांग का आरोप लगाते हुए एक आपराधिक शिकायत दर्ज की। तत्पश्चात, जब समन जारी करने के चरण में आदेश पारित करने के लिए फाइल को अनुमंडल न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट, पूर्णिया के समक्ष रखा गया, तो एल.डी. मजिस्ट्रेट ने निष्कर्ष निकाला कि भौतिक साक्ष्यों के अवलोकन पर ससुराल वालों के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनाया गया था और उनके खिलाफ लगाए गए आरोप प्रकृति में विशिष्ट नहीं थे।
हालांकि उक्त अदालत ने पति मो. इकराम के खिलाफ धारा 498ए, 323 आईपीसी के तहत अपराध का संज्ञान लेते हुए समन जारी किया। यह विवाद अंततः सुलझ गया और पत्नी ससुराल वापस आ गई। तत्पश्चात 01.04.19 को पत्नी ने अपने पति मो. इकराम एवं अपीलार्थी के विरुद्ध धारा 34, 323, 379, 354, 498ए के साथ पठित धारा 34 आईपीसी के तहत FIR दर्ज करने के लिए एक अन्य लिखित शिकायत दी। शिकायत में अन्य बातों के साथ-साथ आरोप लगाया गया है कि सभी आरोपी प्रतिवादी पत्नी पर दहेज के रूप में कार खरीदने के लिए दबाव बना रहे थे और मांगें पूरी नहीं होने पर जबरन उसका गर्भ गिराने की धमकी दी।
FIR रद्द कराने हाई कोर्ट पहुंचे थे ससुराल वाले
शीर्ष अदालत पटना हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें ससुराल वालों के खिलाफ धारा 341 (गलत संयम), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 379 (चोरी), 354 (महिला की लज्जा भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल) और आईपीसी की धारा 498ए (एक महिला के पति का पति या रिश्तेदार उसके साथ क्रूरता करता है) के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
महिला के पति और उसके रिश्तेदार (ससुरालवालों) के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज किया गया था। एफआईआर और कानूनी कार्रवाई खारिज करने के लिए पति और उसके रिश्तेदारों ने पटना हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। हाई कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में पति के रिश्तेदारों यानी महिला के ससुरालियों ने अर्जी दाखिल कर क्रिमिनल केस खारिज करने की गुहार लगाई। याचिका में कहा गया कि उन्हें प्रताड़ित करने के लिए यह केस दर्ज किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि दहेज प्रताड़ना का कानून महिलाओं को दहेज प्रताड़ना से बचाने के लिए बनया गया है। लेकिन, यह भी सही है कि हाल के सालों में विवाहिक विवाद काफी बढ़े हैं। शादी के संबंध में कई मामले में काफी तनाव देखने को मिला है। इस कारण इस बात की प्रवृत्ति बढ़ी है कि अपना स्कोर सेटल करने के लिए पति के रिश्तेदारों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना कानून का इस्तेमाल टूल की तरह हो रहा है।
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न मामलों में यह माना है कि एक आपराधिक मुकदमे के कारण अंततः बरी हो जाने पर भी गंभीर चोट लगती है और इसलिए इस तरह की कवायद को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सामान्य और सर्वव्यापी आरोप उस स्थिति में प्रकट नहीं हो सकते हैं जहां शिकायतकर्ता के पति के रिश्तेदारों को मुकदमे से गुजरना पड़ता है।
प्रासंगिक रूप से शीर्ष न्यायालय ने पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ व्यक्तिगत हिसाब-किताब का निपटान करने के लिए धारा 498A को नियोजित करने की प्रवृत्ति पर भी अपनी चिंता व्यक्त की। पीठ ने कहा कि हाल के दिनों में, देश में वैवाहिक मुकदमों में काफी वृद्धि हुई है और विवाह की संस्था को लेकर पहले से कहीं अधिक अब और अधिक असंतोष और घर्षण है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वे सभी सामान्य आरोप थे।
498ए के दुरुपयोग पर जताई चिंता
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि सभी आरोपियों ने उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया और उसे गर्भ गिराने की धमकी दी। इसके अलावा, यहां किसी भी अपीलकर्ता के खिलाफ कोई विशिष्ट और विशिष्ट आरोप नहीं लगाया गया है, अर्थात, किसी भी अपीलकर्ता को उनके खिलाफ लगाए गए सामान्य आरोपों को आगे बढ़ाने में कोई विशिष्ट भूमिका नहीं दी गई है। अदालत ने यह भी कहा कि उसने पहले भी कई मौकों पर धारा 498ए आईपीसी के दुरुपयोग और पति के रिश्तेदारों को वैवाहिक विवादों में फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है।
कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवाद के दौरान लगाए गए सामान्य सर्वव्यापक आरोपों के माध्यम से झूठे निहितार्थ, यदि अनियंत्रित छोड़ दिया जाता है, तो इसका परिणाम कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसने यह भी नोट किया कि कैसे शीर्ष अदालत ने कई मौकों पर निचली अदालतों को पति के रिश्तेदारों और ससुराल वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की चेतावनी दी थी, जब उनके खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है। इसलिए, अदालत ने ससुराल वालों के खिलाफ FIR को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ स्पष्ट आरोपों की अनुपस्थिति में अभियोजन की अनुमति देना सरल होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति की अपील नहीं है। लेकिन, अन्य ससुरालियों ने अर्जी दाखिल की है। बेंच ने कहा कि हमारा मानना है कि आरोप जनरल और बहुप्रयोजन वाला है। इस तरह केस नहीं चलाया जा सकता है। हम इस मामले में क्रिमिनल कार्रवाई को खारिज करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ विशेष रोल तय नहीं है और जनरल एवं बहुप्रयोजन वाले आरोप के आधार पर आरोपी के खिलाफ केस नहीं चलाया जा सकता है।
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ARTICLE IN ENGLISH:
READ ORDER | Increased Tendency To Misuse 498A For Settling Personal Scores Against Husband, His Relatives: Supreme Court
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