सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 (1) (ia) के तहत शादी की ऐसी टूट कि उसमें सुधार संभव ना हो (अपूरणीय टूट या irretrievable breakdown) उस विवाह को विघटित करने के लिए “क्रूरता” के आधार के रूप में समझा जा सकता है। शीर्ष अदालत ने 26 अप्रैल के अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक अपरिवर्तनीय रूप से टूटा हुआ विवाह अपने आप में क्रूरता का प्रतीक है। हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13(1)(ia) के तहत शादी के विघटन का आधार हो सकता है।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जेबी पर्दीवाला की पीठ ने उपरोक्त टिप्पणी एक ऐसे मामले को निस्तारित करते हुए की, जिसमें एक कपल 25 साल से अलग रह रहा था। कपल ने 1994 में शादी की थी। कपल शादी के बमुश्किल चार साल तक पति-पत्नी के रूप में साथ रहे थे, उसके बाद वे अलग हो गए। उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ कई मामले दर्ज कराए थे।
फैमिली और हाई कोर्ट
फैमिली कोर्ट ने 2009 में क्रूरता के आधार पर पति की ओर से दायर शादी को भंग करने की याचिका स्वीकार कर ली। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने 2011 में तलाक के फैसले को पलट दिया। तलाक की डिक्री को पलटते हुए हाई कोर्ट ने कहा था कि पति या पत्नी के खिलाफ मामला दायर करना क्रूरता नहीं होगी। इससे नाराज होकर पति ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने पति की अपील पर विचार करते हुए कहा कि पिछले कुछ सालों में दोनों पक्षों के बीच संबंध कटु हो गए है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि विवाह में कोई बच्चा पैदा नहीं होता है। पीठ ने कहा कि शादी की अपूरणीय टूट अभी तक विवाह के विघटन का आधार नहीं है। हालांकि, इस आशय की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट ने नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली (2006) 4 SCC 558 में की थी।
भारतीय विधि आयोग ने अपनी 71वीं और 217वीं रिपोर्ट में सिफारिश की कि एक विवाह (जो वास्तव में टूट गया है) को कानून द्वारा मान्यता प्राप्त होने की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत विवाह की अपूरणीय टूट शादी विघटन का आधार नहीं हो सकता है। हालांकि यह क्रूरता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस विवाह की निरंतरता का अर्थ क्रूरता की निरंतरता होगी। कोर्ट ने कहा कि हमारी राय में एक वैवाहिक संबंध जो सालों से केवल अधिक कड़वा और कटु होता गया है, दोनों पक्षों पर क्रूरता के अलावा कुछ नहीं है। इस टूटे हुए विवाह को जीवित रखना दोनों पक्षों के साथ अन्याय करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि एक शादी जो अपूरणीय रूप से टूट गई है, हमारी राय में दोनों पक्षों के लिए क्रूरता है, क्योंकि ऐसे रिश्ते में प्रत्येक पक्ष दूसरे के साथ क्रूरता का व्यवहार कर रहा है। इसलिए, यह हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 (1) (ia) के तहत विवाह विघटन का आधार है।
सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि हाईकोर्ट के इस दृष्टिकोण से असहमति व्यक्त नहीं की कि केवल पति या पत्नी के खिलाफ मामला दर्ज करना क्रूरता की कैटेगरी में नहीं आएगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले के तथ्यों को देखते हुए, यह देखना होगा कि विवाह मरम्मत से परे टूट गया है।
पत्नी को 30 लाख रुपये मुआवजा देना का आदेश
अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि वर्तमान विवाह को समाप्त होना चाहिए, क्योंकि इसके जारी रखना, एक दूसरे के प्रति क्रूरता को मंजूरी देना होगा। कोर्ट ने पति की अपील को स्वीकार करते हुए उसे स्थायी भरण-पोषण के रूप में पत्नी को 30 लाख रुपये देने का निर्देश दिया।
आपको जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने इस सवाल पर फैसला सुरक्षित रखा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट विवाह की अपूरणीय टूट के आधार पर संविधान के आर्टिकल 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग कर विवाह को भंग कर सकता है?
पुरुषों के लिए समान अधिकारों के बारे में ब्लॉगिंग करना या जेंडर पक्षपाती कानूनों के बारे में लिखना अक्सर विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि कई लोग इसे महिला विरोधी मानते हैं। इस वजह है कि अधिकांश ब्रांड हमारे जैसे पोर्टल पर विज्ञापन देने से कतराते हैं।
इसलिए, हम दानदाताओं के रूप में आपके समर्थन की आशा करते हैं जो हमारे काम को समझते हैं और इस उद्देश्य को फैलाने के इस प्रयास में भागीदार बनने के इच्छुक हैं। मीडिया में एक तरफा जेंडर पक्षपाती नेगेटिव का मुकाबला करने के लिए हमारे काम का समर्थन करें।
हमें तत्काल दान करने के लिए, ऊपर "अभी दान करें" बटन पर क्लिक करें। बैंक ट्रांसफर के माध्यम से दान के संबंध में जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। click here.