Jhunjhunu Child Custody Case: पिछले हफ्ते राजस्थान की एक अदालत में एक पिता और बेटे के लगे लगकर रोने वाला बेहद भावुक और दिल को छू लेने वाला वीडियो खूब वायरल हुआ था। कोर्ट द्वारा नाबालिग बेटे की मर्जी के खिलाफ बच्चे की कस्टडी उसकी मां को सौंप दी गई। कोर्ट के इस फैसले ने पिता-पुत्र को अलग कर दिया था। इसके बाद पिता सदमे में बेहोश हो गया था।
वीडियो वायरल होने के बाद पिता की अब एडीजे कोर्ट में जीत हुई है। बेटे को पिता को सौंपने के आदेश दिए गए हैं। बेटे को उसकी इच्छा के खिलाफ चिड़ावा SDM कोर्ट ने मां के साथ भेज दिया था। इस फैसले के खिलाफ पिता ने अपने बेटे को पाने के लिए दोबारा एडीजे कोर्ट में अपील की थी।
क्या है पूरा मामला?
झज्जर (हरियाणा) के खपरवास निवासी प्रीत पचरंगिया (39) की शादी जनवरी 2015 में बेरला सूरजगढ़ (झुंझुनू) निवासी सुमन (28) से हुई थी। इस कपल को जुलाई 2016 में एक बेटा हुआ, जिसका नाम उन्होंने जतिन रखा। प्रीत सेना में था, जबकि सुमन हाउसवाइफ थी। जतिन अपने दादा सुल्तान सिंह की छाव में बड़ा हुआ, जब उसकी मां गांव में रह रही थीं। हालांकि, 2018 में हालात ने एक अलग मोड़ ले लिया, जब प्रीत और सुमन के बीच वैवाहिक विवाद शुरू हो गया।
पंचायत तक पहुंचा मामला
दंपति के मामले में हस्तक्षेप करते हुए स्थानीय पंचायत ने समझौता कराया, जहां दोनों एक बार फिर साथ रहने के लिए सहमत हो गए। 2019 में दंपति की एक बेटी हुई, जिसका नाम उन्होंने जिया रखा। हालांकि, यहां से हालात और खराब हो गए। फरवरी 2022 में सुमन ने सूरजगढ़ थाने में प्रीत और उसके परिवार के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज करा दी। इसके बाद सुमन जिया को अपने साथ लेकर अपने पैतृक घ चली ग, जबकि अपने 6 साल के बेटे जतिन को अपने पिता के साथ रहने के लिए छोड़ गई।
कोर्ट पहुंचा मामला
दहेज का मामला जब SDM कोर्ट पहुंचा तो सुमन ने जतिन की कस्टडी के लिए याचिका दायर कर दी। पिछले दिनों झुंझुनू के छिदवाड़ा में एसडीएम कोर्ट ने बच्चे के रोने और कोर्ट को यह बताने के बावजूद कि वह अपने पिता के साथ कैसे रहना चाहता है, बेटे की कस्टडी सुमन को सौंप दी। फैसले के बाद जतिन ने अपने पिता को गले लगाकर रोने लगा। उसने कहा कि मुझे मेरे पिता से अलग मत करो, मैं उनके साथ रहना चाहता हूं। हालांकि, कोर्ट के निर्देश पर पुलिस ने पिता-पुत्र को अलग कर दिया, जिसके बाद प्रीत कुछ देर के लिए बेहोश हो गया था।
पिता और पुत्र के बीच संबंध
प्रीत गलवान घाटी में गार्ड आर्मी की बटालियन 18 में तैनात था। हालांकि, पत्नी द्वारा वैवाहिक विवाद और दहेज मामले के बाद उन्होंने अपने बेटे की देखभाल के लिए अप्रैल 2022 में VRS ले लिया। बच्चा हमेशा अपने पिता और दादा के करीब रहता था। स्वतंत्र पत्रकार दीपिका भारद्वाज के साथ अपने विस्तृत इंटरव्यू में पिता ने कहा कि मैंने अकेले ही अपने बेटे की देखभाल की है। वह यहां हमारे साथ था, जबकि उसकी मां ने सालों से उसे देखने की जहमत नहीं उठाई थी। अब, अचानक वह दो साल बाद लौटी और मेरे बच्चे को लेकर चली गई। मेरा बेटा मेरे बिना खाना भी नहीं खाता। कृपया मुझे मेरे बच्चे से अलग न करें। मैं आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता हूं।
पिता के पक्ष में आया फैसला
इस फैसले के खिलाफ पिता ने अपने बेटे को पाने के लिए एडीजे कोर्ट में अपील की थी। प्रीत के वकील राजेश दल्ला ने तब समीक्षा के लिए याचिका दायर किया और बेटे की कस्टडी की मांग करते हुए एडीजे अदालत में अपील की है। मामले की सुनवाई शनिवार को झुंझुनू स्थित एडीजे कोर्ट में हुई, जहां एडीजे आशुतोष कुमावत ने पिता प्रीत सिंह के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने बच्चे के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए आदेश दिया कि बेटे को तत्काल प्रभाव से पिता को सौंप दिया जाए। बेटे की कस्टडी मिलते ही पिता की आंखों से एक फिर खुशी के आंसू झलक उठे।
पुरुषों अधिकार कार्यकर्ताओं ने किया हस्तक्षेप
पुरुष आयोग या पारिवारिक मामलों के लिए किसी अन्य तटस्थ प्लेटफॉर्म नहीं होने की वजह से यह मामला पुरुषों के अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा उठाया गया, जिन्होंने न्याय पाने के लिए पिता की सहायता की। ‘वॉयस फॉर मेन इंडिया’ के साथ बात करते हुए दीपिका भारद्वाज ने कहा कि मुझे घटना के बारे में दैनिक भास्कर की रिपोर्ट से पता चला। प्रीत सिंह के बेटे जतिन से बिछड़ते हुए और दोनों के रोने का वीडियो देखकर मेरा दिल रो पड़ा। मैंने तुरंत वकील की तलाश की और फिर प्रीत जी से संपर्क किया। फोन पर बात करने पर वह रो पड़े। मैंने उनसे कहा कि मैं आपको बच्चे को वापस पाने के लिए हर संभव कोशिश करूंगा।
प्रीत सिंह ने अपने बेटे से बात नहीं की थी, क्योंकि मां ने अनुमति नहीं दी थी। उसने निवेदन किया कि वह सिर्फ अपने बेटे को देखना चाहता है। उस रात, मैंने अपने सहयोगी केडी झा को साथ आने के लिए कहा और हम सुबह झुंझुनू के लिए निकल गए। हम CWC टीम, कलेक्टर झुंझुनू से मिले, जो पिता और पुत्र की बैठक की अनुमति देने के लिए SP को फोन करने के लिए तैयार थे। हम सब फिर बेरला गांव के लिए निकल पड़े, जहां प्रीत जी को आखिरकार जतिन से मिलने का मौका मिला।
उस कम समय में लड़के को स्पष्ट रूप से पढ़ाया जा चुका था। जब मैंने बच्चे से पूछा कि क्या उसने SDM से कहा कि वह अपने पिता के साथ रहना चाहता है, तो मां ने आकर मेरा फोन छीन लिया। ऐसे मामलों में क्या झूठ है और क्या सच है, यह तय करना कठिन है, लेकिन कार्रवाई बहुत कुछ बोलती है।हम समझ सकते हैं कि सिंह को दूसरे पक्ष द्वारा बच्चे का इस्तेमाल करके परेशान किया जा रहा था।
प्रीत सिंह के वकील राजेश दल्ला ने एसडीएम के आदेश के खिलाफ अपील की थी। मैंने सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलों में उनकी मदद की, जिनमें इस तरह के आदेशों को अवैध बताया गया है और पूरे समय उनके संपर्क में था। अंत में एडीजे ने आदेश पलट दिया और जतिन को उसके पिता को सौंप दिया गया।
उन्होंने कहा कि यह व्यक्तिगत जीत की तरह लग रहा है, क्योंकि मैंने प्रीत सिंह की आंखों में दर्द देखा। वह एक दयालु पिता हैं और अपने बेटे की असाधारण देखभाल कर रहे हैं, जिससे वह अपने साधनों से परे स्कूली शिक्षा दे रहा है।
मुझे वास्तव में खुशी है कि जज ने मामले के तथ्यों को देखा। हालांकि, मुझे आश्चर्य है कि SDM के खिलाफ सही कार्रवाई क्या होनी चाहिए, जिन्होंने इस तरह के एक अवैध आदेश को पारित किया था, शायद यह जानते हुए भी कि उनके पास ऐसा करने की कोई शक्ति नहीं है।
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