कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने अपने हालिया आदेश में नाबालिग लड़के के खिलाफ मामले में आगे की जांच पर रोक लगा दी है, जिस पर नाबालिग लड़की का कथित तौर पर यौन उत्पीड़न करने के लिए यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत आरोप लगाया गया है। लाइवलॉ की रिपोर्ट के अनुसार, लड़के ने पक्षकारों के बीच आपसी समझौता होने पर अभियोजन को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
क्या है पूरा मामला?
21 नवंबर, 2021 को नाबालिग लड़की के पिता द्वारा शिकायत दर्ज कराई गई थी कि उसकी नाबालिग बेटी कॉलेज से घर नहीं लौटी है। पुलिस ने आरोपियों और पीड़िता के फोन को ट्रेस कर उन्हें ट्रैक किया। आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376, 363 और पोक्सो की धारा 5 और 6 के तहत आरोप लगाए गए थे।
कोर्ट में याचिका
लाइवलॉ के अनुसार, याचिका में कहा गया कि आरोपी और पीड़िता दोनों नाबालिग हैं और दोनों अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। पूरा मामला दो किशोरों के इर्द-गिर्द घूमता है, जिनकी दोस्ती में खटास आ गई और वे कानूनी परिणामों में उलझ गए हैं। याचिका में आगे यह भी कहा गया है कि दोनों परिवारों के बुजुर्गों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद उन्होंने नाबालिग बच्चों के व्यापक हित में मामले को आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय लिया है। नाबालिग बच्चों ने भी अपने मतभेदों को सुलझा लिया है।
याचिका विजयलक्ष्मी बनाम राज्य के मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले पर निर्भर है, जिसमें इस आधार पर मामले को खारिज कर दिया गया था कि पॉक्सो एक्ट का इरादा किशोर लड़के को दंडित करना नहीं है, जो किशोर लड़की के साथ रिश्ते में है। यह तर्क दिया जाता है कि याचिकाकर्ता और पीड़िता अच्छे दोस्त थे और याचिकाकर्ता का नाबालिग पीड़िता का अपहरण करने या पॉक्सो एक्ट के तहत परिकल्पित कोई भी यौन अपराध करने का कोई इरादा नहीं था।
इसके अलावा, यह भी कहा गया कि पॉक्सो एक्ट का उद्देश्य किशोरों के बीच रोमांटिक रिलेशन को अपने दायरे में लाना नहीं है। फिर भी कई युवाओं पर कानून के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है और यह एक ऐसा उदाहरण है। यह भी कहा गया कि शिकायतकर्ता स्वयं मामले पर मुकदमा चलाने की इच्छा नहीं रखता है और इसकी अनुमति देना केवल न्याय के साथ खिलवाड़ होगा। मामले को जारी रखने की अनुमति देना नाबालिग लड़के के भविष्य को बर्बाद कर देगा। साथ ही व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन की उनकी भविष्य की संभावनाएं को भी खत्म कर देगा। याचिका में पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR को रद्द करने की मांग की गई है।
कर्नाटक हाई कोर्ट
जस्टिस एम नागप्रसन्ना (Justice M Nagaprasanna) की एकल पीठ ने दोनों पक्षों को सुना और मामले पर रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि 23.05.2022 तक मामले में आगे की जांच पर रोक रहेगी, जो आगे के आदेश पारित होने के परिणाम के अधीन होगी।
याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता की बेटी आज भी नाबालिग हैं, और एक रिश्ते में थे, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान अपराध दर्ज किया गया। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रतीक चंद्रमौली और विद्याश्री केएस ने प्रस्तुत किया कि पार्टियों ने इस मुद्दे को सुलझा लिया है और इस तरह के समझौते के कारण कार्यवाही को समाप्त करने की मांग की है।
हालांकि, अभियोजन पक्ष ने इस पर इस आधार पर आपत्ति जताई कि अपराध यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के तहत है और समझौता स्वीकार नहीं किया जा सकता है। जिसके बाद कोर्ट ने कहा कि इस पर विचार करने की आवश्यकता होगी और यह आगामी गर्मी की छुट्टियों के बाद ही हो सकता है।
ARTICLE IN ENGLISH:
पुरुषों के लिए समान अधिकारों के बारे में ब्लॉगिंग करना या जेंडर पक्षपाती कानूनों के बारे में लिखना अक्सर विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि कई लोग इसे महिला विरोधी मानते हैं। इस वजह है कि अधिकांश ब्रांड हमारे जैसे पोर्टल पर विज्ञापन देने से कतराते हैं।
इसलिए, हम दानदाताओं के रूप में आपके समर्थन की आशा करते हैं जो हमारे काम को समझते हैं और इस उद्देश्य को फैलाने के इस प्रयास में भागीदार बनने के इच्छुक हैं। मीडिया में एक तरफा जेंडर पक्षपाती नेगेटिव का मुकाबला करने के लिए हमारे काम का समर्थन करें।
हमें तत्काल दान करने के लिए, ऊपर "अभी दान करें" बटन पर क्लिक करें। बैंक ट्रांसफर के माध्यम से दान के संबंध में जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। click here.