मैरिटल रेप (Marital Rape) यानी पत्नी से जबरन शारीरिक संबंध बनाने को अपराध करार देने की मांग और इससे जुड़ी अन्य याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) 9 मई 2023 को सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह की गुहार पर मामले को 9 मई को सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त करते हुए इसे सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि वह इस मामले में जल्द अपना जवाब दाखिल करेंगे। शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर इस मामले में 15 फरवरी तक अपना पक्ष रखने को कहा था। इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने शीर्ष अदालत के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का जवाब तैयार है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले साल 11 मई को खंडित फैसला सुनाया था, जिसके खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील की गई थी। इसके अलावा और कई याचिकाएं दायर की गई थी। बता दें कि भारतीय कानून में फिलहाल मैरिटल रेप कानूनी तौर पर अपराध नहीं है। पिछले साल यानी 16 सितंबर 2022 को मेरिटल रेप अपराध है या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करने को तैयार हो गया था।
क्या है मैरिटल रेप विवाद?
दरअसल, पत्नी की बिना सहमति के अगर पति जबरन उसके साथ शारीरिक संबंध बनाता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है। हालांकि, भारतीय दंड संहिता (IPC) इसे अपराध नहीं मानती है। IPC की धारा 375 में रेप की परिभाषा दी गई है। धारा 375 के अपवाद में कहा गया है कि पति अगर अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध या किसी भी तरह का सेक्सुअल एक्ट करता है तो यह रेप नहीं है। हालांकि, अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम हो तो इसे रेप की कैटेगरी में रखा जाएगा। लेकिन साफ तौर पर मैरिटल रेप का जिक्र आईपीसी में नहीं है।
375 के अपवाद को चुनौती देते हुए मैरिटल रेप के अपराधीकरण की मांग करने वाली सुप्रीम कोर्ट में एक PIL दायर की गई है। पुरुष अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि 375 के अपवाद को अगर हटाया जाता है तो दोनों जेंडरों यानी महिला और पुरुष दोनों के लिए हटा दिया जाना चाहिए। नहीं तो पति या पत्नी पर मैरिटल रेप का आरोप लगाया जा सकता है। इसलिए, इसे जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए।
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