पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने हाल ही में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले पहले से शादीशुदा व्यक्तियों पर 2,500 रुपये का जुर्माना लगाया, जिन्होंने पुलिस सुरक्षा की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। साथ ही हाईकोर्ट ने विवाहित व्यक्तियों का लिव-इन रिलेशनशिप में रहने को ‘अवैध’ करार दिया। लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस आलोक जैन ने इसे ‘अवैध संबंध का क्लासिक मामला’ करार देते हुए दोहराया कि विवाहित व्यक्ति अपनी शादी के दौरान दूसरों के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकते।
क्या है पूरा मामला?
हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी कपल द्वारा अपने एक जीवनसाथी से पुलिस सुरक्षा की मांग करते हुए दायर याचिका पर आई। इस कपल के अपने-अपने जीवनसाथी से बच्चे भी थे। दिलचस्प बात यह है कि आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में लगभग इसी तर्ज पर एक आदेश पारित किया था।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि शादी से बाहर रहने की किसी की पसंद का मतलब यह नहीं है कि विवाहित व्यक्ति विवाह के दौरान दूसरों के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के लिए स्वतंत्र हैं, क्योंकि यह वैध कानूनी ढांचे का उल्लंघन होगा। अदालत ने कहा कि इस रिट याचिका को दाखिल करना एक तरह का मामला प्रतीत होता है। शादी की पवित्र संस्था के मानदंडों का उल्लंघन करने वाले याचिकाकर्ताओं के अवैध कार्य पर इस न्यायालय की मुहर और हस्ताक्षर करने के लिए उपकरण अपनाया गया।
जस्टिस जैन ने टिप्पणी करते हुए आगे कहा कि याचिका में बताई गई धमकी की धारणा अस्पष्ट लगती है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे उस व्यक्ति की पत्नी ने उसे ‘अवैध संबंध’ में पकड़ लिया था जिसे खतरा नहीं माना जा सकता। इस प्रकार याचिका में याचिकाकर्ताओं के ‘अवैध संबंध’ पकड़े जाने पर उसे छुपाने के लिए कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग पाया गया। अदालत ने यह माना कि इस तरह के खतरे की आशंका नहीं है।
यदि निजी उत्तरदाताओं के खिलाफ कपल की कोई वास्तविक शिकायत है, जो कथित तौर पर उनके लिव-इन रिलेशनशिप में हस्तक्षेप कर रहे हैं या यदि उनके जीवन को खतरा है तो वे CrPC की धारा 154 के तहत FIR दर्ज करने के लिए स्वतंत्र हैं। पुलिस या सक्षम न्यायालय के समक्ष CrPC की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन दायर करें या CrPC की धारा 200 के तहत शिकायत मामला दर्ज करें।
हालांकि, याचिकाकर्ताओं द्वारा उक्त उपाय का कोई भी लाभ नहीं उठाया गया और SSP, फिरोजपुर, पंजाब में केवल एक काल्पनिक प्रतिनिधित्व किया गया। इसके साथ ही अदालत ने इसे 2,500 रुपये के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया।
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