कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में एक विवाहित महिला द्वारा एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया, जिसमें शिकायत की गई थी कि उस शख्स ने उसे धोखा दिया, क्योंकि वह उससे शादी करने का अपना वादा पूरा करने में विफल रहा। इसके साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि एक विवाहित महिला यह दावा नहीं कर सकती कि शादी का वादा तोड़कर पुरुष ने उसे धोखा दिया है।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, याचिकाकर्ता पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A, 504, 507 और 417 के तहत आरोप लगाए गए थे। शिकायतकर्ता ने दावा किया था कि वह शादीशुदा है और उसकी एक बेटी भी है लेकिन उसके पति ने उन्हें छोड़ दिया। महिला ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने उसे आश्वासन दिया था कि वह उससे शादी करेगा। शिकायतकर्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने उसे शादी का आश्वासन देकर संबंध बनाने का लालच दिया और चूंकि उसने अपना वादा नहीं निभाया, इसलिए उसने शिकायत दर्ज कराई।
वहीं, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसने शिकायतकर्ता की तब मदद की जब उसे सख्त जरूरत थी। हालांकि, उसने उसे कभी आश्वासन नहीं दिया कि वह उससे शादी करेगा, क्योंकि शिकायतकर्ता पहले से ही शादीशुदा थी और उसका एक बच्चा भी था। इसके अलावा, जब तक वह शादी से बाहर नहीं आती, तब तक यह आरोप भी कायम नहीं रह सकता कि याचिकाकर्ता ने उससे शादी करने का वादा किया था।
हाईकोर्ट
रिकॉर्ड देखने पर पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता मलेशिया में था और वहां रहने के उद्देश्य से वह शिकायतकर्ता को पैसे भेजता था। इसलिए कोर्ट ने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया कि याचिकाकर्ता कभी भी शिकायतकर्ता का पति था। कोर्ट ने कहा कि अगर शिकायतकर्ता पहले से ही शादीशुदा है तो यह समझ में नहीं आता कि वह यह दावा कैसे कर सकती है कि याचिकाकर्ता उसका पति है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, “धोखाधड़ी का आरोप इस आधार पर लगाया जाता है कि याचिकाकर्ता ने शादी का वादा तोड़ा है। शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया कि वह पहले से ही शादीशुदा है और इस शादी से उसका एक बच्चा भी है। अगर वह पहले से शादीशुदा है तो शादी का वादा तोड़ने पर धोखा देने का सवाल ही नहीं उठता। इसलिए, उक्त अपराध भी याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं लगाया जा सकता है।”
अदालत ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता की आपत्ति यह नहीं बताती है कि उसने अपने पहले पति से तलाक का डिक्री हासिल कर लिया है। जब उक्त विवाह अभी भी चल रहा है, तो शायद ही यह कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता उसका पति है। महिला को मासिक रूप से कुछ राशि देने के पहलू पर पीठ ने कहा, “केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता की जरूरत के लिए कुछ समय के लिए कुछ पैसे भेजे हैं, यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता को दोनों (शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता) के बीच कानूनी बंधन के बिना उन्हें बनाए रखना है। इसके साथ ही कोर्ट ने शख्स के खिलाफ दायर शिकायत को खारिज कर दी।
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