बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने अपने एक हालिया आदेश में कहा है कि सेक्स के लिए शादी के वादे की धोखाधड़ी का कोई सबूत नहीं है तो लंबे रिश्ते के बाद किसी महिला से शादी करने से इनकार करना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 417 के तहत ‘धोखा’ नहीं माना जाएगा। इसके साथ ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने 22 साल बाद व्यक्ति को बरी कर दिया। हाई कोर्ट ने यह आदेश पिछले साल दिसंबर 2021 में दिया था।
जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई ने उपरोक्त आदेश देते हुए कहा कि उदाहरण के लिए इस मामले में दंपति ने तीन साल से अधिक समय तक यौन संबंध बनाए। अदालत ने कहा कि महिला की गवाही से यह संकेत नहीं मिला कि वह शादी के वादे के बारे में गलत धारणा पाले हुए थी। इसके अलावा, शुरू से ही उससे शादी नहीं करने के लिए व्यक्ति के इरादा का भी कोई सबूत नहीं है।
हाई कोर्ट ने कहा कि सबूत के अभाव में यह साबित करने के लिए कि अभियोक्ता ने तथ्य की गलत धारणा पर शारीरिक संबंध के लिए सहमति दी थी, जैसा कि आईपीसी की धारा 90 के तहत निर्धारित है, केवल शादी से इनकार करना आईपीसी की धारा 417 के तहत अपराध नहीं होगा। हालांकि, इस मामले में चौंकाने वाली बात यह है कि यह आदेश 22 साल बाद आया है।
क्या है पूरा मामला?
कथित पीड़िता ने 1996 में दर्ज एक एफआईआर (FIR) में आरोप लगाया कि आरोपी ने शादी के वादे के साथ उसके साथ यौन संबंध बनाए और बाद में उससे शादी करने से इनकार कर दिया। उसके बाद उस व्यक्ति पर आईपीसी की धारा 376 और धारा 417 के तहत रेप और धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया था। मुकदमे के बाद व्यक्ति को बलात्कार से बरी कर दिया गया, लेकिन धोखाधड़ी के लिए दंडित किया गया। इसके बाद उसने उक्त सजा के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की। राज्य सरकार ने उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के लागू नहीं होने का विरोध नहीं किया।
बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश
अदालत ने अपने वर्तमान आदेश में महेश्वर तिग्गा बनाम झारखंड राज्य, (2020) 10 एससीसी 108 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बहुत भरोसा किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 90 के तहत तथ्य की गलत धारणा के तहत दी गई सहमति कानून की नजर में सहमति नहीं है, लेकिन तथ्य की गलत धारणा अपराध के साथ निकटता में होनी चाहिए और इसे 4 साल की अवधि तक विस्तारित नहीं किया जा सकता।
इस प्रकार मामले को देखते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें उसे IPC की धारा 417 के तहत लड़की को धोखा देने के लिए दोषी ठहराया गया था और इस जुर्म में उसे एक साल की जेल की सजा के साथ 5,000 रुपये का जुर्माने का भी आदेश सुनाया गया था।
हाई कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य इंगित करता है कि अभियोक्ता और आरोपी एक-दूसरे को जानते थे। दोनों तीन साल से अधिक समय से यौन संबंध में लिप्त थे। PW1-अभियोजन पक्ष के सबूत से यह संकेत नहीं मिलता कि उसने तथ्य की गलत धारणा शादी के वादे परआरोपी के साथ यौन संबंध बनाए थे रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि संबंध स्थापना के बाद से आरोपी ने उससे शादी करने का इरादा नहीं किया था।
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