एक ऐसे मामले का निपटते करते हुए जहां एक नाबालिग लड़के का उसके ही पिता द्वारा यौन शोषण किया गया था, दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने एक अहम टिप्पणी में कहा कि यौन शोषण के ऐसे मामलों को वैवाहिक कलह के मामलों के रूप में नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित बच्चे को यौन शोषण के मामले में न्याय पाने का अपना व्यक्तिगत संवैधानिक अधिकार है। पिता द्वारा बेटे का यौन शोषण करने से जुड़ी FIR को रद्द करने से इनकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि पीड़ित को न्याय पाने के उसके अधिकार से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि आरोपित उसका असली पिता है।
क्या है पूरा मामला?
पिता पर अपने नाबालिग बेटे को गलत तरीके से छूने और 3 साल की अवधि के दौरान कई मौकों पर उसका यौन शोषण करने का आरोप लगाया गया था। आरोप था कि उसकी हरकतों के कारण नाबालिग बच्चे को रात में नींद नहीं आती थी और वह भावनात्मक अशांति का अनुभव करने लगा था। बच्चे की मां को इसका पता तब चला जब नाबालिग की स्थिति को देखते हुए उसने एक डॉक्टर से परामर्श किया। डॉक्टर ने बच्चे की मां को बताया कि नाबालिग के साथ उसके पिता ने छेड़छाड़ की है।
वहीं, आरोपित व्यक्ति ने FIR को झूठा और मनगढ़ंत करार दिया, क्योंकि उसकी पत्नी के साथ वैवाहिक रिश्ते ठीक नहीं है। पिता का तर्क था कि वैवाहिक कलह की वजह से उसकी पत्नी ने बेटे का इस्तेमाल अपने झूठे आरोप के लिए किया है। ऐसे में एफआईआर को रद्द कर दी जाए। याची ने पॉक्सो के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक निर्णय का हवाला दिया।
हाई कोर्ट
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि पीड़िता को न्याय पाने के अधिकार से केवल इसलिए वंचित करना बहुत अनुचित होगा, क्योंकि आरोपी उसका असली पिता है और उसके माता-पिता के बीच वैवाहिक कलह थी। अदालत ने इस प्रकार यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 10 और 12 के तहत पिता के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर भरोसा किया जिसमें POCSO अधिनियम के तहत एक FIR को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि पीड़ित लड़की ने अपनी मां द्वारा अपने पिता के खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों का स्पष्ट रूप से खंडन किया था।
हालांकि, याची की इस दलील से असहमत होते हुए पीठ ने कहा कि मामला उक्त फैसले के दायरे में नहीं आता, क्योंकि शीर्ष अदालत इस बात से संतुष्ट नहीं थी कि FIR में लगाए गए आरोप झूठे या प्रतिशोधी हो सकते हैं। नाबालिग बच्चे द्वारा पुलिस और मजिस्ट्रेट को दिए गए बयानों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने कहा कि अदालत का विचार है कि बच्चे ने बयान में यौन शोषण कैसे, कब और कहां किया गया इस संबंध में स्पष्ट जानकारी दी थी।
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि पीड़ित के बयान की सच्चाई ट्रायल के दौरान उसकी और अन्य गवाहों की गवाही दर्ज करने के दौरान स्पष्ट हो जाएगी। लेकिन, अगर FIR रद्द कर दी गई तो यह न्यायिक कार्यवाही का गला घोंटने और पीड़ित बच्चे को न्याय पाने के अवसर से वंचित करने के समान होगा। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि मामले में की गई टिप्पणियों का निचली अदालत में सुनवाई के दौरान मामले के गुण-दोष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही पिता की याचिका खारिज कर दी गई।
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