दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा कि विभिन्न परिस्थितियों के तहत एक नाबालिग बच्चे का पासपोर्ट जैविक पिता के नाम के बिना भी जारी किया जा सकता है। हालांकि, अदालत ने साफ किया कि इस तरह की राहत “प्रत्येक मामले के तथ्यों” पर निर्भर करती है। कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे मामलों में कोई कठोर नियम लागू नहीं किया जा सकता है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि 2020 का पासपोर्ट मैनुअल और पिछले साल 28 फरवरी को केंद्रीय विदेश मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक ज्ञापन यह मानते हैं कि विभिन्न परिस्थितियों में पासपोर्ट पिता के नाम के बिना भी जारी किए जा सकते हैं।
क्या है पूरा मामला?
नाबालिग बेटे और उसकी मां ने अपने पासपोर्ट से पिता का नाम हटाने और पिता के नाम का उल्लेख किए बिना नया पासपोर्ट फिर से जारी करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। नाबालिग और उसकी मां को राहत देते हुए अदालत ने भारत संघ (Union of India) की इस दलील को खारिज कर दिया कि OM केवल “एकल अविवाहित माता-पिता” पर लागू होगा।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि इस तरह की राहत पर विचार किया जाना चाहिए, जो प्रत्येक मामले में उभरती तथ्यात्मक स्थिति पर निर्भर करता है। कोई कठोर और तेज़ नियम लागू नहीं किया जा सकता है। माता-पिता के बीच वैवाहिक कलह के मामले में असंख्य स्थितियां हैं, जहां अधिकारियों द्वारा बच्चे के पासपोर्ट आवेदन पर विचार किया जा सकता है। जस्टिस सिंह ने यह भी कहा कि अजीबो-गरीब मामलों में जहां पिता का मां या बच्चे के साथ कोई संपर्क नहीं है, उसका नाम बच्चे के पासपोर्ट में शामिल करने की आवश्यकता नहीं है।
इस विषय पर विभिन्न प्राधिकरणों पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि नियमावली में लागू खंड भिन्न हो सकते हैं, उक्त निर्णयों के पीछे की भावना स्पष्ट है, अर्थात, कुछ परिस्थितियों में जैविक पिता का नाम हटाया जा सकता है और सरनेम भी बदला जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि पासपोर्ट नियमावली वैवाहिक कलह के मामलों में केवल कुछ स्थितियों पर विचार करती है, जहां अधिकारियों द्वारा एक बच्चे के पासपोर्ट आवेदन पर विचार किया जा सकता है।
फैसले को मिसाल के रूप में न मानें
हालांकि, आगे कहा कि स्थिति के तथ्य के आधार पर “लचीलेपन की आवश्यकता मौजूद है”, यह कहते हुए कि अदालत के आदेशों की गहन जांच और समझ की भी आवश्यकता हो सकती है। अदालत ने निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की कि एक नाबालिग बेटे के नाम के बिना उसके पिता के नाम के बिना एक नया पासपोर्ट जारी किया जाए, जिसने गर्भावस्था के दौरान ही अपनी मां को छोड़ दिया था। अदालत ने बेटे के पासपोर्ट से पिता का नाम हटाने का आदेश दिया, जबकि इस आदेश पर जोर दिया कि एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा।
अदालत ने आखिरी में कहा कि जहां कहीं भी ‘सिंगल पेरेंट’ शब्द का उल्लेख किया जाना है, पासपोर्ट अधिकारियों द्वारा इसका विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। अन्य खंडों में ‘सिंगल पेरेंट’ शब्द का प्रयोग किया गया है। हालांकि, केवल नाम प्रस्तुत करने से यह निष्कर्ष नहीं निकलता है कि पिता के नाम का उल्लेख अनिवार्य रूप से किया जाना है। यह प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
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