एशिया कप 2023 शुरू होने से पहले टीम इंडिया के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी (Mohammed Shami) की मुश्किलें बढ़ गई हैं। दरअसल उनकी पत्नी हसीन जहां (Hasin Jahan) के साथ अदालत में चल रहे घरेलू हिंसा विवाद मामले में कोर्ट ने शमी और उनके भाई मोहम्मद हसीब को 30 दिन के अंदर जमानत लेने का आदेश दिया है। शमी 30 अगस्त से शुरु हो रहे एशिया कप के प्रमुख गेंदबाज हैं। कोर्ट के आदेश के बाद अब दोनों भाइयों को 30 दिन के अंदर जमानत लेनी होगी। इस वजह से एशिया कप में उनकी कानूनी परेशानियां बढ़ सकती हैं।
एशिया कप के बाद टीम इंडिया वर्ल्ड कप से पहले ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे सीरीज खेलेगी। ‘आज तक’ की रिपोर्ट के मुताबिक, शमी को कोर्ट से 30 दिन के अंदर जमानत लेनी होगी। भारत के बड़े टूर्नामेंट से पहले शमी के लिए ये बड़ी मुश्किल साबित हो सकती है। जहां ने शमी और उनके परिवार के कुछ सदस्यों के खिलाफ 2018 में घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सेशन कोर्ट से कहा- एक महीने में करें फैसला
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल की एक सत्र अदालत को निर्देश दिया कि वह क्रिकेटर मोहम्मद शमी के खिलाफ दायर घरेलू हिंसा मामले में एक महीने के अंदर फैसला करे। यह याचिका शमी की अलग हो चुकी पत्नी हसीन जहां द्वारा दायर की गई है। पीटीआई के मुताबिक, चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ हसीन जहां की अपील पर सुनवाई कर रही थी। जहां ने इस याचिका में कलकत्ता हाईकोर्ट के 28 मार्च, 2023 के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें शमी के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट पर रोक संबंधी सत्र न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रखा गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय तेज गेंदबाज शमी के खिलाफ 8 मार्च, 2018 को जादवपुर थाने में भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत एक मामला दर्ज किया गया था। यह मामला अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीपुर (दक्षिण 24 परगना) के समक्ष लंबित है। पीठ ने यह भी गौर किया कि 29 अगस्त, 2019 को क्रिकेटर के खिलाफ अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था।
बाद में, शमी ने गिरफ्तारी वारंट के खिलाफ सत्र न्यायाधीश के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की और उन्होंने दो नवंबर, 2019 तक आपराधिक मामले में सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी। इसके बाद, कार्यवाही नहीं हुई और पिछले चार साल से मुकदमे पर रोक लगी हुई है।
पीठ ने कहा, “उपरोक्त पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, हम याचिकाकर्ता की शिकायत में आधार पाते हैं कि जब गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद पुनरीक्षण हुआ तो आगे की सभी कार्यवाही पर रोक जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है।”
शीर्ष अदालत ने आगे कहा, “तदनुसार, हम सत्र न्यायाधीश को आपराधिक पुनरीक्षण पर गौर करने और इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर मामले का निपटान करने का निर्देश देते हैं। यदि अत्यावश्यक कार्यों की वजह से सत्र न्यायाधीश ऐसा नहीं कर पाते हैं तो वह उपरोक्त मामले में लगाई गई रोक हटाने या संशोधित करने के लिए किसी भी आवेदन का उसी अवधि के भीतर अनिवार्य रूप से निपटान करेंगे।”
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