बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने दिसंबर 2019 में निचली अदालत के एक आदेश को बरकरार रखते हुए कहा था कि अगर कोई महिला यह साबित करने में विफल रहती है कि उसके खिलाफ एडल्ट्री के सभी आरोप गलत थे, तो वह भरण-पोषण की हकदार नहीं होगी। हाई कोर्ट ने एक गुजारा भत्ता अपील में आदेश पारित करते हुए यह बयान दिया था।
क्या है पूरा मामला?
कपल ने वर्ष 1980 में शादी की थी। हालांकि, पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक के लिए दायर किया, जिसमें कहा गया था कि उनकी पत्नी ने उन्हें साल 2,000 में धोखा दिया था। बाद में एडल्ट्री के आधार पर तलाक दे दिया गया। इसके बाद, पत्नी ने तलाक के आदेश को चुनौती दी और पति को निचली अदालत द्वारा पत्नी और उनके बेटे को भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।
2010 में अलग हुए कपल ने अलग-अलग अनुरोधों के साथ फिर से अदालत का दरवाजा खटखटाया। पत्नी ने भरण-पोषण की राशि बढ़ाने की अपील की थी, जबकि पति ने अनुरक्षण राशि को रद्द करने का अनुरोध करते हुए मजिस्ट्रेट की अदालत में एक काउंटर आवेदन दायर किया था। निचली अदालत ने महिला के पक्ष में उसे भरण पोषण राशि में वृद्धि करने का आदेश दिया। अदालत ने पति को पत्नी के लिए भुगतान की जाने वाली राशि का तीन गुना और बेटे के लिए लगभग आठ गुना अधिक भुगतान करने का भी निर्देश दिया।
2015 में मजिस्ट्रेट के आदेश से नाखुश व्यक्ति ने पुनर्विचार के लिए आवेदन किया, जिसे सांगली में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा अनुमति दी गई थी। निचली अदालत के जज ने अपने आदेश में कहा कि क्या महिला पर लगाया गया एडल्ट्री का आरोप सिद्ध हो गया था? साथ ही हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 125 की उप-धारा (4) के तहत वैधानिक प्रतिबंध के अनुसार तलाक दिया गया था? अगर हां, तो पत्नी रखरखाव के लिए हकदार नहीं है।
बॉम्बे हाई कोर्ट की टिप्पणियां
जस्टिस नितिन डब्ल्यू साम्ब्रे की पीठ महिला द्वारा दायर आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि अगर एडल्ट्री के आरोप साबित नहीं होता, तो महिला तलाक के बाद भरण-पोषण के अधिकार का दावा कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं था तो निचली अदालत का भरण-पोषण रद्द करने का आदेश वैध था।
जस्टिस साम्ब्रे की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि यदि ऐसी महिला के खिलाफ एडल्ट्री के आरोप साबित हो जाते हैं या पति के उसे भरण-पोषण के लिए तैयार होने के बावजूद, वह पत्नी के साथ रहने से इनकार करती है तो उसे भरण-पोषण के भुगतान से इनकार किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता के विशेष रूप से भरण-पोषण का दावा करने के अधिकार पर व्यक्त प्रतिबंध को ध्यान में रखते हुए 27 अप्रैल, 2000 को एडल्ट्री के आरोप के आधार पर तलाक का आदेश दिया गया था। हाई कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने ठीक ही माना है कि याचिकाकर्ता-पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं है।
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