कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि पत्नी अपने पति की मंजूरी लिए बिना कोई प्रॉपर्टी बेच सकती है, बशर्ते वह प्रॉपर्टी उसके नाम पर हो। हाई कोर्ट ने कहा कि यदि कोई पत्नी पति की मंजूरी के बिना अपने नाम पर मौजूद प्रॉपर्टी को बेचने का फैसला करती है, तो यह क्रूरता नहीं होगी। इसके साथ ही हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच के मुताबिक, जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस प्रसेनजीत बिस्वास की खंडपीठ क्रूरता और परित्याग के आधार पर अपने पति के पक्ष में तलाक देने के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ एक महिला द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। 2014 में ट्रायल कोर्ट ने माना था कि ऐसी धारणा है कि खरीदी गई जमीन का भुगतान पति द्वारा किया गया था, क्योंकि पत्नी के पास कोई आय नहीं थी।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों शिक्षित हैं और अगर पत्नी ने पति-प्रतिवादी से अनुमोदन या अनुमति के बिना अपने नाम पर मौजूद प्रॉपर्टी को बेचने का फैसला किया है, तो इसे क्रूरता नहीं माना जाएगा।” हाई कोर्ट ने कहा कि प्रॉपर्टी पत्नी के नाम पर है। अदालत ने कहा, “पत्नी को पति की प्रॉपर्टी नहीं माना जा सकता है और न ही उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने जीवन में कोई भी कार्य या चीज करने का निर्णय लेने के लिए पति से अनुमति ले।”
कोर्ट ने कहा कि अगर पति, पत्नी की मंजूरी के बिना प्रॉपर्टी बेच सकता है, तो पत्नी के नाम पर मौजूद प्रॉपर्टी भी उसकी अनुमति के बिना बेची जा सकती है। आदेश में कहा गया, “हमें लैंगिक असमानता की मानसिकता को खत्म करना होगा। इसलिए ट्रायल कोर्ट में जज का निष्कर्ष अस्वीकार्य और अस्थिर है।” न्यायालय ने यह भी कहा कि महिलाओं पर पुरुषों का प्रभुत्व वर्तमान समाज को स्वीकार्य नहीं है और न ही हमारे संविधान निर्माताओं ने कभी इस तरह की भावना पैदा की है।
हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के इस निष्कर्ष को भी खारिज कर दिया कि कपल शादी की शुरुआत से ही नाखुश था। अदालत ने कहा, “शादी के दो साल के भीतर दोनों पक्षों को बेटी का आशीर्वाद मिला और इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि शादी की शुरुआत से ही वे खुश नहीं थे।” पत्नी के खिलाफ परित्याग के आरोप को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष एक ही घर में लेकिन अलग-अलग कमरों में रह रहे हैं।
पत्नी के इस दावे को ध्यान में रखते हुए कि वह रिश्ते को बहाल करना चाहती थी, कोर्ट ने कहा कि भले ही कपल ने 2003 से सह-जीवन स्थापित नहीं किया है, लेकिन सबूत से पता चलता है कि पति का पत्नी के साथ सह-वास करने का कोई इरादा नहीं था। इसके साथ ही कोर्ट ने 2007 के मामले में तलाक की डिक्री को रद्द करते हुए कहा, “हमने पाया है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित फैसले और डिक्री को बरकरार नहीं रखा जा सकता है।”
Join our Facebook Group or follow us on social media by clicking on the icons below
If you find value in our work, you may choose to donate to Voice For Men Foundation via Milaap OR via UPI: voiceformenindia@hdfcbank (80G tax exemption applicable)