त्रिपुरा हाई कोर्ट (Tripura High Court) ने 4 जनवरी, 2022 को अपने आदेश में सुझाव दिया कि दोनों (माता-पिता जो वैवाहिक लड़ाई लड़ रहे थे) को बच्चों की कस्टडी साझा करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि माता-पिता के मुलाकात के अधिकार पर नहीं, बल्कि माता-पिता के साथ बच्चों के मुलाकात के अधिकार पर। अदालत ने कहा कि बच्चों को माता-पिता दोनों के प्यार और स्नेह से वंचित नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि माता-पिता बच्चों के जीवन में मेहमान नहीं हो सकते।
क्या है पूरा मामला?
याचिकाकर्ताओं (पत्नी और नाबालिग बच्चों) ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत त्रिपुरा हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी अगरतला, पश्चिम त्रिपुरा द्वारा पारित मार्च 2021 के आदेश को रद्द करने के लिए अधीक्षण की शक्ति का आह्वान किया गया था।
याचिकाकर्ता आगे प्रतिवादियों (पति/पिता और पति की मां) को याचिकाकर्ताओं को पति के आवास में आवासीय आवास प्रदान करने का निर्देश देना चाहते थे। पत्नी के अनुसार विवश परिस्थितियों में उसने किराए पर मकान लिया था और अपने नाबालिग बेटे एवं बेटी के साथ वहीं रह रही थी।
पत्नी के अनुसार उस पर किराए के मकान से किराया देने का बोझ था और वे भी बिना उचित फर्नीचर, बर्तन आदि के किराए के मकान में रह रहे थे। इस कारण याचिकाकर्ताओं ने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत मामला दर्ज कराया, जिसे विभिन्न राहतों की मांग करते हुए रजिस्टर्ड किया गया था। पति ने याचिकाकर्ताओं द्वारा की गई अंतरिम प्रार्थना को खारिज करने की अपील करते हुए तत्काल पुनरीक्षण याचिका दायर कर आपत्ति दर्ज की थी।
पत्नी द्वारा भरण-पोषण की मांग
याचिकाकर्ता पत्नी हाई कोर्ट से निर्देश चाहती थी कि वह उसे और उसके बच्चों को साझा वैवाहिक घर में एंट्री की अनुमति दे। पत्नी यह भी चाहती थी कि पति याचिकाकर्ता-पत्नी द्वारा किए गए अतिरिक्त खर्च के लिए 35,000 रुपये प्रति माह के भरण-पोषण के अलावा 20,000 रुपये प्रति माह का अतिरिक्त भरण-पोषण प्रदान करे।
त्रिपुरा हाई कोर्ट का आदेश
त्रिपुरा हाई कोर्ट के जस्टिस सुहानजीत ने नाबालिग बच्चों और संबंधित वकीलों की उपस्थिति में दोनों पक्षों को सुना। कोर्ट ने सुझाव दिया कि माता-पिता को बच्चों की कस्टडी को कपल के मुलाकात के अधिकार पर नहीं बल्कि बच्चों के बड़े हित में माता-पिता के साथ साझा करना चाहिए क्योंकि बच्चों को माता-पिता के प्यार और स्नेह से वंचित नहीं किया जा सकता है।
अदालत ने आगे कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि माता-पिता बच्चों के जीवन में मेहमान नहीं हो सकते। माता-पिता को अदालत, पुलिस स्टेशन, मॉल, मंदिर और माता-पिता के घर में कभी-कभी और समय-समय पर कुछ मिनटों के लिए बच्चों से मिलने की अनुमति देना बच्चों के प्रति उचित निर्णय नहीं हो सकता है।
कोर्ट ने कहा कि बच्चों को प्रत्येक माता-पिता के साथ पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, उन्हें जानने और उन्हें बेहतर ढंग से समझने के बजाय एक माता-पिता द्वारा दूसरे के खिलाफ पढ़ाया जाना चाहिए। उसी के मद्देनजर, अदालत को लगता है कि बच्चों को माता-पिता से मिलने और रहने का अधिकार दिया जाना चाहिए, लेकिन माता-पिता को बच्चे के पास नहीं जाना चाहिए।
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ARTICLE IN ENGLISH:
READ ORDER | Parents Cannot Be Guest In The Life Of Children; Tripura HC Orders Shared Parenting
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