‘गुज़ारा भत्ता’ यानी Alimony शब्द लैटिन शब्द ‘एलिमोनिया’ (Alimonia) से लिया गया है, जिसका अर्थ है जीविका। इस संदर्भ में यह एक भत्ते या धन की राशि का उल्लेख करता है, जो शादी भंग होने के बाद एक पत्नी को उसके भरण-पोषण के लिए पति भुगतान करता है। हालांकि, शिव कुमार (Shiv Kumar) की कहानी इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे गुजाता भत्ता से जुड़े कानून एक पति की शारीरिक स्थिति को भी नजरअंदाज कर देता है और उसे अपनी पूरी तरह से सक्षम पत्नी को एक राशि देने के लिए मजबूर किया जाता है।
कौन हैं शिव कुमार?
शिव कुमार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के कालकाजी इलाके में रहने वाले 43 वर्षीय अखबार वितरक एक विकलांग व्यक्ति हैं। शादी के आठ महीने के भीतर ही शिव के दुपहिया वाहन को एक बस ने टक्कर मार दी, जिससे उनके सिर में गंभीर चोटें आईं और वह लगभग एक साल तक बिस्तर पर पड़े रहे। जीवन के इस कठिन दौर में उन्होंने कमाई के सभी स्रोतों को खो दिया और अपने इलाज के लिए सेव किए हुए पैसों को भी खर्च कर दिया।
पत्नी का नहीं मिला साथ
इस आदमी के बुरे दिन तब और आ गए जब उसे अपनी पत्नी से भावनात्मक समर्थन मिलने के बजाय उनके संबंधों में खटास आ गई और पत्नी ने उनके और उनके परिवार के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कर दिया। उन्होंने कहा कि मेरी पत्नी ने मुझे दुर्घटना के दिन छोड़ दिया जब डॉक्टरों ने कहा कि मेरी हालत बेहद गंभीर थी और मैं जीवित नहीं रह सकता। हमें शुरू से ही कुछ समस्याएं थीं, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि मैं अपने माता-पिता, खासकर अपने बिस्तर पर पड़े पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की देखभाल करूं।
पुलिस ने की सुलह की कोशिश
शिव के खिलाफ कालकाजी पुलिस स्टेशन में मामले दर्ज किए गए थे। हालांकि, जब पुलिस ने व्यक्तिगत रूप से शिव की हालत देखी, तो उन्होंने पत्नी को सुलह करने और उसकी देखभाल करने के लिए कहा। आखिरकार, सबकुछ ठीक हो गया और अपने परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने लगा। हालांकि, एक बार फिर नियति ने उसके साथ अन्याय दी जब वर्ष 2013 में पता चला कि उनके अग्न्याशय (pancreas) में कैंसर हो गया है।
शिव का पांच बार कीमोथेरेपी और बायोप्सी किया गया जिसके कैंसर उनके पूरे शरीर में फैल गया और उनका दाहिना भाग पूरी तरह से लकवाग्रस्त हो गया। इलाज के दौरान, उन्हें कई लकवाग्रस्त हमलों का भी सामना करना पड़ा, जिससे उनका शरीर पूरी तरह से कमजोर हो गया और वह स्थायी रूप से व्हीलचेयर तक सीमित हो गए।
पत्नी ने लगाया घरेलू हिंसा का आरोप
स्वास्थ्य और शरीर के साथ अपनी लड़ाई के दौरान शिव को एक और आघात तब लगा, जब उनकी पत्नी ने उन पर घरेलू हिंसा का एक और मामला दर्ज करा दिया। अदालत ने उन्हें अपनी पत्नी को नौकरी या आय का कोई स्रोत नहीं होने के बावजूद 4,000 रुपये मासिक भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया। इससे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि अदालत के आदेश के अनुसार भुगतान नहीं कर पाने के कारण शिव को तीन बार दिल्ली की तिहाड़ जेल भी भेजा जा चुका है। आखिरी बार वह दिसंबर 2018 से फरवरी 2019 तक तिहाड़ में थे। पीड़ित पति शिव के वकील के अनुसार, अपनी पत्नी को भुगतान करने के लिए उन्हें अपने दोस्तों और अन्य लोगों से पैसे उधार लेने पड़े।
शिव ने क्राउडफंडिंग के जरिए जुटाया धन
एक अनसुने मामले में शिव कुमार को कम से कम वैवाहिक मोर्चे पर स्थायी शांति के साथ समझौता करने के लिए क्राउडफंडिंग विकल्प के माध्यम से धन जुटाना पड़ा। प्रसिद्ध पुरुषों के अधिकार कार्यकर्ता दीपिका भारद्वाज (Men’s Rights Activist Deepika Bhardwaj) ने मिलाप (Milaap) के माध्यम से एक क्राउडफंडिंग अभियान चलाया। इस क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म ने शिव को 5 लाख रुपये की राशि जुटाने में मदद की, जिसे गुजारा भत्ता के लिए अंतिम निपटान के रूप में भुगतान किया जा सके।
अगर हमारे आस-पास लालची लोग हों, तो समाज में भी दया की कोई कमी नहीं होती। शिव की कहानी पढ़ने वाले बहुत से लोग, उन्हें रोजगार की तलाश में मदद करने के इरादे से आगे आए, ताकि वे अपने जीवन को गरिमा के साथ फिर से जी सकें।
भीख मांगो, उधार लो या चोरी करो लेकिन अपनी पत्नी को भुगतान करो। इस मामले में न्यायपालिका का यही संदेश प्रतीत होता है। कोई यह तर्क दे सकता है कि दूसरी तरफ से तथ्य अज्ञात हैं, हालांकि, जो संदिग्ध है वह यह है कि हमारी अदालतों ने इस बात पर जोर क्यों नहीं दिया कि सक्षम पत्नी खुद ऐसा काम करे, ताकि वह शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति की दया पर निर्भर न रहे।
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ARTICLE IN ENGLISH:
Physically-challenged man raises money through crowdfunding for paying alimony to fully-abled wife
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