भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल (President Pratibha Patil) ने अपने पद पर रहते हुए (2007-2012) कठोर धारा 498-A कानून के दुरुपयोग का हवाला दिया था। दिसंबर 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति पाटिल ने दहेज उत्पीड़न से संबंधित IPC की धारा 498-A जैसे महिला समर्थक कानूनों के दुरुपयोग के प्रति आगाह किया था। उन्होंने खुले तौर पर जेंडर-न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए बेहतर कार्यान्वयन की मांग की थी।
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा था कि ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, जहां महिलाओं के लाभ के लिए सुरक्षात्मक कानूनी प्रावधानों को विकृत किया गया है और छोटे प्रतिशोध को खत्म करने और स्कोर का निपटान करने के लिए दुरुपयोग किया गया है।
कुछ सर्वे में पता चला है कि 6 से 10 फीसदी दहेज की शिकायतें झूठी हैं। प्राथमिक रूप से स्कोर निपटाने के लिए दर्ज की गई थीं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिलाओं की रक्षा के लिए बने कानूनों का उत्पीड़न के साधन के रूप में दुरुपयोग किया जाता है।
महाराष्ट्र के यवतमाल में महिलाओं के लिए न्याय पर महिला वकीलों और महिला टीचरों के राष्ट्रीय सम्मेलन में अपने भाषण का समापन करते हुए पाटिल ने तब कहा था कि महिलाओं को प्रताड़ना से बचाने के लिए बनाए गए कानून उत्पीड़न के साधन नहीं बनने चाहिए। मैं कानूनी बिरादरी से यह सुनिश्चित करने का आह्वान करता हूं कि महिलाओं के शोषण और दमन को रोकने के लिए बनाए गए प्रावधानों को “ईमानदारी से लागू” किया जाए।
प्रतिभा पाटिल के भतीजे पर धारा 498-A के तहत आरोप
दरअसल, प्रतिभा पाटिल के भतीजे राहुल पाटिल ने 2007 में प्राची सिंह से शादी की थी। शादी के दो साल बाद प्राची ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और क्रूरता का आरोप लगाते हुए धारा 498-A IPC के तहत शिकायत दर्ज कराई थी।
एक रिपोर्ट के अनुसार, बाद में 2010 में राहुल अपनी पत्नी प्राची के साथ सभी वैवाहिक विवादों को निपटाने के लिए आगे आए। जस्टिस बी श्रीनिवास गौड़ा ने तब दंपति को विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने की सलाह दी, जिस पर राहुल सहमत हो गए। कर्नाटक हाई कोर्ट ने मध्यस्थता के बाद दंपति को विवाद को सुलझाने के लिए अदालत के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया था।
मध्यस्थता केंद्र जाने से पहले प्राची ने समझौता मानने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने हमारी शादी तय की थी। उनकी मौजूदगी में हमने शादी कर ली। लेकिन अब, वह कोई जवाब नहीं दे रही हैं। हालांकि मैंने उससे कई बार संपर्क किया है। मैंने बहुत कुछ सहा है, मेरे पति और ससुराल वालों ने मेरे साथ बुरा व्यवहार किया और मुझे न्याय चाहिए।
दूसरी ओर, राहुल अदालत के निर्देशानुसार मामले को निपटाने के इच्छुक थे। साल 2014 में दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आपसी सहमति से तलाक के लिए अर्जी दी थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विवाह के विघटन की अनुमति दे दी थी।
पार्टियों के बीच हुए सौहार्दपूर्ण समझौते के मद्देनजर, उक्त कार्यवाही को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 B के तहत दायर किया गया माना जाता है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करके, हम विवाह की घोषणा करते हैं इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भंग किया जाए कि निपटान के लिए किए गए पर्याप्त प्रयास पिछले छह वर्षों से अधिक समय से विफल रहे हैं।
2008 | This Is What President Pratibha Patil Had Expressed On Misuse Of Section 498-A IPC
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