पुणे की दीवानी अदालत (Pune civil court) ने एक 29 वर्षीय महिला को इस आधार पर गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया कि वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करती है और अपना खर्चे चलाने में सक्षम है। सीनियर डिवीजन सिविल जज माधुरी खानवे (judge Madhuri Khanwe) ने कहा कि महिला के पास आय का एक स्वतंत्र स्रोत है और वह अपने पति से अंतरिम भरण पोषण की हकदार नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
इस कपल ने जनवरी 2017 में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में शादी की थी। महिला तब पुणे में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रही थी, जबकि उसका पति दिल्ली में तैनात था। महिला के अनुसार, इस बात पर आपसी सहमति बनी थी कि जब तक उसे दिल्ली में नौकरी नहीं मिल जाती, तब तक वह पुणे में काम करती रहेगी।
पत्नी का आरोप
पत्नी की अर्जी के मुताबिक शादी के दूसरे दिन से ही ससुराल वाले दहेज के लिए महिला से बदसलूकी करने लगे। महिला ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि उसके ससुर ने उसकी मां को उसे घर वापस ले जाने के लिए कहा था। साथ ही उसे कथित तौर पर उपवास रखने के लिए भी मजबूर किया गया था, जिससे उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ा। महिला का आरोप है कि परिवार के अन्य सदस्यों के सामने भी उसके साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार किया गया।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि महिला को उसके ससुराल वाले ही नहीं, बल्कि उसका पति भी मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा था। उसने आरोप लगाया कि वह उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करता था और भड़काऊ संदेश भेजता था। उसका आरोप है कि मार्च 2017 में उसका पति चाकू लेकर उसके घर आया और उसका शारीरिक शोषण किया। इसके बाद महिला ने छिंदवाड़ा में महिला सेल से संपर्क किया और उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
29 वर्षीय तकनीकी विशेषज्ञ अपने पति के खिलाफ भी मामला दर्ज कराई थी। उसने जुलाई 2018 में हिंजवाड़ी पुलिस स्टेशन में धारा 498-ए (एक महिला के पति या रिश्तेदार के साथ क्रूरता का व्यवहार) के तहत शिकायत भी दर्ज कराई थी।
पति का तर्क
याचिका के जवाब में पति ने पत्नी के सभी आरोपों को खारिज कर दिया। उसने एक स्क्रीनशॉट दिखाकर दावा किया कि शादी के महज चार दिन बाद, वह पुणे में शिफ्ट हो गई। इसके बाद उसने तुरंत छिंदवाड़ा पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसने उसे और उसके माता-पिता को धमकी दी थी।
फिर उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत छिंदवाड़ा अदालत में एक आवेदन भी दायर किया, जो वैवाहिक अधिकारों की बहाली से संबंधित है, लेकिन वह अदालत के समक्ष पेश नहीं हुई, जिसने तब एक पक्षीय आदेश पारित किया और उसे वापस पति के घर लौटने का निर्देश दिया।
पत्नी द्वारा भरण-पोषण और गुजारा भत्ता की मांग
खुद सॉफ्टवेयर इंजीनियर का काम करने वाली महिला ने सिविल कोर्ट के सीनियर डिवीजन में तलाक की अर्जी दाखिल की है। याचिका में उसने गुजारा भत्ता की भी मांग की थी। उसने केंद्रीय रिजर्व बल (CRF) में कार्यरत अपने पति से 25,000 रुपये प्रति माह के भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था। महिला ने अपनी याचिका में स्थायी गुजारा भत्ता के लिए 25 लाख रुपये की भी मांग की है। उसने दावा किया कि वह परिवार में एकमात्र कमाने वाली सदस्य थी।
उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील विपिन बिडकर ने पुणे मिरर को बताया कि मामले में महिलाओं के लिए बनाए गए कानूनों का पूरी तरह से दुरुपयोग किया गया है। मेरे मुवक्किल को महिला ने प्रताड़ित किया और प्रताड़ित किया। उसने उसके खिलाफ कई शिकायतें दर्ज कराईं। जबकि महज 4 दिन पति के साथ रहने के बाद वह पुणे चली गई।
जब उसने छिंदवाड़ा में महिला सेल में शिकायत दर्ज कराई, तो यह तय हुआ कि वह अपने पति के साथ जहां कहीं भी तैनात होगी, वहां रहेगी और उस स्थान पर नौकरी ढूंढेगी। हालांकि, वह उसे और उसके परिवार को परेशान करने के लिए झूठे मामले दर्ज कराती रही।
अब आप कल्पना कीजिए कि अगर पत्नियों को एक और #MaritalRape कानून के साथ सशक्त किया जाता है, तो इसका दुरुपयोग किस हद तक जा सकता है। यहां तक कि उपरोक्त मामले में भी कोर्ट ने महिला को भरण-पोषण देने से ही इनकार कर दिया है। हालांकि, पति और उसके परिवार के खिलाफ झूठे और तुच्छ आपराधिक मामले दर्ज करने के लिए कोई सजा का प्रावधान नहीं है।
कृपया सोशल मीडिया पर हैशटैग #MaritalRape का उपयोग करके ऐसे कठोर कानूनों के खिलाफ अभियान को व्यापक स्तर पर पहुंचाने में हमारी मदद करें।
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