उत्तराखंड हाई कोर्ट (Uttarakhand High Court) ने अपने एक हालिया फैसले में कहा है कि पार्टी को अपने पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से हिंदू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act) के तहत कार्यवाही में प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है। चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस आर.सी. खुल्बे की पीठ फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर विचार कर रही थी, जिस दौरान उन्होंने यह टिप्पणी की।
क्या है मामला?
लॉ ट्रेंड वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में पक्षकारों ने संयुक्त रूप से हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13B के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर की थी। अपीलकर्ता लेक्सिंगटन, स्टेट केंटकी, अमेरिका का निवासी है। नतीजतन, उन्होंने अपने पिता श्री मणि राम आर्य के पक्ष में दी गई पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से उक्त याचिका को प्राथमिकता दी।
फैमिली कोर्ट
फैमिली कोर्ट ने याचिका को केवल इस आधार पर खारिज कर दिया कि अपीलकर्ता को व्यक्तिगत रूप से याचिका को प्राथमिकता देनी चाहिए और अदालत में उपस्थित रहना चाहिए। इसके पक्षकारों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
हाई कोर्ट
पीठ के समक्ष मुद्दा यह था कि फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप की जरूरत है या नहीं? पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने अपीलकर्ता के पिता के माध्यम से याचिका पर अपनी पावर ऑफ अटॉर्नी के रूप में सुनवाई नहीं करने का एकमात्र कारण यह बताया कि उक्त पहलू पर इस न्यायालय द्वारा कोई मिसाल नहीं थी।
हाई कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट से अपेक्षा की जाती है कि वह इस न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा किए बिना, उसके समक्ष उठने वाले मुद्दों से निपटेगा। फैमिली कोर्ट के सामने न केवल कई उच्च न्यायालयों बल्कि सुप्रीम कोर्ट के भी पर्याप्त उदाहरण दिए गए थे, जो हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कार्यवाही में पक्षकार के प्रतिनिधित्व के अधिकार को उसके पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से मान्यता देते हैं। हम फैमिली कोर्ट का दृष्टिकोण पूरी तरह से विकृत और अप्रत्याशित पाते हैं।
उपरोक्त मामले के मद्देनजर, पीठ ने आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया और फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया कि वह अपने पिता की अपीलकर्ता की ओर से पेश किए गए पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर याचिका पर विचार करे।
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