कई मीडिया संस्थानों द्वारा हाल ही दावा किया गया था कि कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा है कि दूसरी पत्नी IPC की धारा 498-A के तहत क्रूरता के लिए पति और ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं कर सकती है। रिपोर्ट्स में कहा गया था कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि दूसरी पत्नी की पति और उसके ससुराल वालों के खिलाफ दायर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-A (क्रूरता) के तहत शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है। हालांकि, यह मामला काफी पेचीदा है। मीडिया संस्थानों का इस मामले में हेडलाइन क्लिकबेट और भ्रामक है। इस आदेश का पूरा तथ्य सामने नहीं आया है।
क्या है पूरा मामला?
शिकायतकर्ता महिला ने आरोपी याचिकाकर्ता की दूसरी पत्नी होने का दावा किया। शिकायतकर्ता के अनुसार, उसने याचिकाकर्ता से दूसरी पत्नी के रूप में शादी की और शुरू में वे पांच साल तक सौहार्दपूर्ण ढंग से साथ रहे। कपल का एक बेटा भी है। महिला की शिकायत पर व्यक्ति को दो निचली अदालतों द्वारा दोषी ठहराया गया था।
इसके बाद, शख्स ने दोनों अदालतों द्वारा दर्ज किए गए समवर्ती निष्कर्षों को रद्द करने के लिए कर्नाटक हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें उसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-A के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।
तुमकुरु में निचली अदालत ने सुनवाई के बाद 18 जनवरी, 2019 को एक फैसले में शख्स को दोषी करार दिया था। जबकि 4 अक्टूबर 2019 में एक सत्र न्यायालय ने भी सजा की पुष्टि की। इसके बाद शख्स ने 2019 में पुनरीक्षण याचिका के साथ हाई कोर्ट का रुख किया।
शिकायतकर्ता महिला का तर्क
महिला ने दावा किया कि शादी के कुछ साल बाद वह पक्षाघात के कारण प्रभावित हुई और याचिकाकर्ता ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया और क्रूरता और मानसिक यातना दी। उसने यह भी दावा किया कि उसे वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया गया और याचिकाकर्ता ने उसे आग लगाने की धमकी दी।
आरोपी व्यक्ति की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत ने सबूतों और कानून की ठीक से सराहना न करके गंभीर त्रुटि की है, इसलिए, इसे (निचली अदालतों के आदेश को) रद्द करने की आवश्यकता है। वकील का मुख्य तर्क यह था कि शिकायतकर्ता याचिकाकर्ता की दूसरी पत्नी है, इसलिए IPC की धारा 498-A के तहत अपराध नहीं किया जा सकता है और निचली दोनों अदालतों ने उस पहलू पर विचार न करके गलती की है।
हाई कोर्ट
शुरुआत में कर्नाटक हाई कोर्ट ने संबंधित पक्षों के विद्वान वकीलों को सुना और निचली अदालतों के निष्कर्षों के साथ दस्तावेजों का भी अवलोकन किया। इसके बाद जस्टिस एस रचैया की सिंगल बेंच ने कंथाराजू द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और उसकी दूसरी पत्नी की शिकायत पर दोषसिद्धि आदेश को रद्द कर दिया। जस्टिस रचैया ने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस पुनरीक्षण याचिका में जो प्वाइंट उठाया है, उस पर नजर डालना आवश्यक है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि यदि पति और पत्नी के बीच विवाह अमान्य है, तो IPC की धारा 498A के तहत अपराध बरकरार नहीं रखा जा सकता है।
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि दूसरी पत्नी द्वारा पति और ससुराल वालों के खिलाफ दायर की गई शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है। पीठ ने प्रावधान 498-A का जिक्र करते हुए कहा कि उक्त परिभाषा में महिला का मतलब कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है। PWs.1 (शिकायतकर्ता) और 2 के सबूत के अनुसार, यह एक स्वीकृत तथ्य है कि शिकायतकर्ता याचिकाकर्ता की दूसरी पत्नी थी। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों ने इस पहलू पर सिद्धांतों और कानून को लागू करने में त्रुटि की है। इसलिए, पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में इस न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप उचित है। इसके साथ ही कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया।
IPC की धारा 498-A क्या है?
IPC की धारा 498A के तहत कोई भी महिला द्वारा अपने पति या पति के रिश्तेदारों पर उसके साथ क्रूरता का आरोप लगाया जा सकता है। इसके तहत यदि पति या पति का रिश्तेदार महिला के साथ क्रूरता करता है, तो उसे कारावास के साथ दंडित किया जाएगा। इसकी अवधि तीन साल तक बढ़ सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर जैसे कोई भी जानबूझकर किया गया आचरण जो ऐसी प्रकृति का हो जिससे महिला को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया जा सके या महिला के जीवन, अंग या स्वास्थ्य (चाहे मानसिक या शारीरिक) को गंभीर चोट या खतरा हो।
वॉइस फॉर मेन इंडिया का टेक
– अदालतें कानून की किताब का सख्ती से पालन करेंगी और उपरोक्त मामले में यदि महिला अपनी शादी की वैधता स्थापित करने में असमर्थ है, तो निश्चित रूप से पुरुष पर IPC की धारा 498-A के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
– ऐसा कहने के बाद, दोनों निचली अदालतों ने निष्कर्ष निकाला कि इस मामले में आदमी द्वारा क्रूरता की गई थी।
– हालांकि, व्यक्ति ने स्पष्ट रूप से कानूनी खामियों का फायदा उठाया है और दोषसिद्धि से बचने की कोशिश की है।
– यदि उसने वास्तव में महिला के साथ पांच साल तक सहवास किया और कपल का एक बच्चा भी है, तो दोषी पाए जाने पर उसे जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
– वॉयस फॉर मेन इंडिया झूठे मामलों में फंसे आरोपी पुरुषों के लिए खड़ा है। हम भी मामलों को समग्रता से संबोधित करेंगे।
– यह आर्टिकल मुख्य रूप से उस भ्रामक हेडलाइन को स्पष्ट करने के लिए है जिससे गलत मैसेज जा सकता है कि “कानूनी रूप से विवाहित पत्नी अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ IPC की धारा 498-A के तहत क्रूरता का मामला दायर नहीं कर सकती है।”
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