अभिनेत्री से नेता बनीं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी (Smriti Irani) अपने शो ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ से तुलसी वीरानी के रूप में घर-घर में पहचानी जाने लगीं। हालांकि, स्मृति ईरानी ने बचपन से ही संघर्षों से भरा जीवन जिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ हाल ही में एक इंटरव्यू में स्मृति ने अपने जीवन के सबसे भावनात्मक चरणों में से एक का खुलासा किया जब उनके माता-पिता ने उनसे अलग होने का फैसला किया था। उस दौरान उन्होंने गुड़गांव में अपना घर सहित बहुत कुछ खो दिया था।
‘मैं अब काली दाल नहीं खाती’
स्मृति ईरानी ने कहा कि पहला घर जो गुड़गांव में था मुझे याद है, मेरे लिए एक अति-प्रभावशाली घर था। घर में झाडू लगाने का काम मेरा था। कुछ साल पहले मैंने उस जगह का दोबारा दौरा किया और महसूस किया कि यह इतना बड़ा घर नहीं था। उस जगह की मेरी आखिरी याद 7 साल की उम्र में थी और मेरे पास उस घर की सिर्फ एक तस्वीर है। मैंने सफेद फ्रॉक, पार्टी कैप और बिंदी पहन रखी थी। उसके बाद 40 साल की उम्र में मैंने अपना जन्मदिन मनाया। 1983 में वह उस घर में आखिरी दिन था। मैं और मेरी बहनें बैठकर काली दाल खा रहे थे। मेरे लिए वह एक फिल्मी सीन था। मेरी मां ने एक हाथ से रिक्शा रोका और कहा कि जल्दी से खाना खा लो, हम दिल्ली के लिए निकल रहे हैं। अब मैं काली दाल नहीं खाती।
कोई भी पैसा आपसे आपके दुखों को नहीं खरीद सकता
केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि मुझे याद है कि मैं अपनी मां के साथ घर के बाहर खड़ी थी और मैंने कहा था कि मैं एक दिन यह घर खरीदूंगी। मेरी मां ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। हम रिक्शा में बैठकर निकल गए। दशकों बाद जब मैं सांसद बनकर दिल्ली आई, तो मैं पुराने घर में गई और वहीं खड़ा हो गई। मैं 37 साल की थी। ईरानी साहब मेरे बगल में खड़े थे। मैंने अपने जीवन के उस पल का कभी खुलासा नहीं किया कि यह वही घर है जिसे हमने स्वेच्छा से नहीं छोड़ा, हमें छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। मैंने अपनी मां को फोन किया और उन्हें घर खरीदने के बारे में बताया। इस पर उसने कहा, “कोई भी पैसा तुम्हारे दुखों को वापस नहीं खरीद सकती।”
ईरानी ने आगे कहा कि मैंने मां से पूछा, ये घर नहीं तो कौन सा? पहली बार मेरी मां ने कहा, “हम अपनी बेटियों से कुछ नहीं ले सकते, लेकिन मैं अपनी इच्छा साझा कर सकती हूं कि अगर मैं मर जाऊं तो मैं अपने घर में मरना चाहती हूं।” मेरी मां ने अपना सारा जीवन किराए पर गुजारा है। 6 साल पहले मैंने एक घर खरीदा था। मेरी मां मुझे किराए के रूप में 1 रुपये देती हैं, ताकि उनका स्वाभिमान बरकरार रहे। लोग मुझसे पूछते हैं कि मुझे किस बात से तृप्ति होती है, मैं कहूंगी कि मेरी मां अपनी इच्छा पूरी होने के बाद शांति से मर सकती है, यह भावना मुझे संतुष्ट करती है।
‘मेरे पेरेंट्स के पास शादी के समय केवल 150 रुपये थे’
बीजेपी की वरिष्ठ नेता ने कहा कि मेरे पिता पंजाबी-खत्री थे और मेरी मां बंगाली-ब्राह्मण हैं। इसलिए उन्होंने मेरे दादा-दादी की मर्जी के खिलाफ शादी की। जब उनकी शादी हुई तो उनके पास केवल 150 रुपये थे। शुरुआत में वे एक गाय के बाड़े के ऊपर एक कमरे में रहते थे। मेरा जन्म लेडी हार्डिंग अस्पताल में हुआ था। बाद में वे गुड़गांव चले गए, क्योंकि यह सस्ती थी। बहुत कम कपल वित्त और सामाजिक घर्षण की बाधाओं से बचे रह पाते हैं। मेरी मां को कहा जाता था कि आगे बेटा होगा, तो वह हम बहनों को खींचती थीं और कहती थीं कि यह मेरे लिए काफी है।
‘मुझे यह कहने में 40 साल लग गए कि मेरे माता-पिता अलग हो गए’
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मुझे यह कहने में 40 साल लग गए कि मेरे माता-पिता अलग हो गए हैं। उन दिनों हमें हेय दृष्टि से देखा जाता था, लेकिन अब मुझे पता है कि जेब में सिर्फ 100 रुपये लेकर जिंदगी गुजारना और हम सबका ख्याल रखना उनके लिए कितना मुश्किल था। मेरे पापा एक आर्मी क्लब के बाहर किताबें बेचा करते थे। मैं उनके साथ बैठती थी और मेरी मां अलग-अलग घरों में जाकर मसाले बेचती थीं। मेरे पिताजी ने ज्यादा पढ़ाई नहीं की, जबकि मेरी मां ने ग्रेजएट की डिग्री प्राप्त की है, इसलिए वे संघर्ष भी हो सकते थे।
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