मलयालम फिल्म निर्माता और अभिनेता विजय बाबू (Vijay Babu) के हाई प्रोफाइल कथित बलात्कार मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कुछ संतुलित टिप्पणियां कीं। सुप्रीम कोर्ट ने रेप केस में फंसे विजय बाबू को दी गई अग्रिम जमानत में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। हालांकि कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि विजय बाबू अदालत की पूर्व अनुमति के बिना केरल राज्य नहीं छोड़ेंगे। उन्हें मामले के संबंध में सोशल मीडिया पोस्ट करने से भी रोक दिया गया है।
क्या है पूरा मामला?
विजय बाबू पर एक अभिनेत्री द्वारा बलात्कार का आरोप लगाया गया है। अभिनेता पर शादी का वादा कर महिला के साथ कथित तौर पर यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया गया है। आपको बता दें कि विजय बाबू एक विवाहित एक्टर हैं और शिकायतकर्ता को इसकी पूरी जानकारी थी।
केरल हाई कोर्ट से मिली जमानत
सुप्रीम कोर्ट केरल हाईकोर्ट द्वारा बाबू को अग्रिम जमानत देने के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिकाओं पर विचार कर रही थी। 22 जून को विजय बाबू को केरल हाई कोर्ट द्वारा उक्त मामले में जमानत दे दी गई थी। इस दौरान हाई कोर्ट ने कहा था कि यदि जांच अधिकारी, बाबू को गिरफ्तार करना चाहता है तो उन्हें उनके पांच लाख रुपये के बॉन्ड और इतनी ही राशि की दो जमानतों पर रिहा कर दिया जाएगा। अदालत ने बाबू को 31 मई को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण दिया था और तब से इसे समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा है। हाई कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में बाबू ने आरोप लगाया था कि उन्हें ब्लैकमेल करने के लिए उनके खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराया गया है।
महिला का तर्क
लाइवलॉ की रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता की ओर से पेश सीनियर वकील आर बसंत ने कहा कि वह 20 साल की है और उसने अभी फिल्म उद्योग में प्रवेश किया है। स्वाभाविक रूप से, वह एक शक्तिशाली व्यक्ति के खिलाफ ऐसे आरोप नहीं लगाएगी, जब तक कि वे सच न हों। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि विजय बाबू ने उस पर दबाव डालने के लिए फेसबुक लाइव पर उसकी पहचान का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि एक्टर जॉर्जिया भाग गए, जहां कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है।
बसंत ने आगे कहा कि अदालत उसे प्रारंभिक सुरक्षा दी। क्या कोई व्यक्ति FIR दर्ज करने के बाद किसी देश में भाग सकता है और फिर कह सकता है कि मुझे सुरक्षा दो? उन्होंने गुरुबख्श सिंह सिब्बिया बनाम पंजाब राज्य पर भरोसा किया। राज्य की ओर से पेश सीनियर वकील जयदीप गुप्ता ने कहा कि विजय बाबू फिल्म इंडस्ट्री में एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं और मामले से संबंधित गवाह और सबूत भी इसी इंडस्ट्री से संबंधित हैं।
उन्होंने आगे कहा कि एफआईआर का होना उसे आगे अपराध करने से नहीं रोकता है। वह फिल्म इंडस्ट्री में बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं और मामले से संबंधित गवाह और सबूत भी इसी इंडस्ट्री से संबंधित हैं। सबूत नष्ट करने की उनकी प्रवृत्ति इस मामले में बनाई गई है। उन्होंने 15 महत्वपूर्ण दिन के व्हाट्सएप मैसेज को डिलीट कर दिया। गुप्ता ने आगे कहा कि आक्षेपित आदेश ने 3 जुलाई तक जांच को प्रतिबंधित कर दिया और पूछताछ में लगने वाले समय को कम कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की अवकाश पीठ ने कहा कि जांच आगे बढ़ने पर प्रतिबंध बरकरार नहीं रह सकता और तदनुसार हाईकोर्ट के आदेश को संशोधित किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि हम यह स्पष्ट करते हैं कि यदि आवश्यक हुआ तो याचिकाकर्ता से 3 जुलाई, 2022 के बाद भी पूछताछ की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा या किसी भी गवाह के साथ हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं करेगा। साथ ही प्रतिवादी मुख्य प्रतिवादी (पीड़िता) को परेशान नहीं करेगा।
जमानत मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें नहीं लगता कि जमानत देना अनुचित है, लेकिन जांच के लिए समय सीमित करना अनुचित है। सबूतों से छेड़छाड़ के मुद्दे पर बेंच ने कहा कि चूंकि पुलिस के पास उसका मोबाइल है। इसलिए वे इसे पुनः प्राप्त कर सकते हैं। बेंच ने कहा कि दोनों (विजय बाबू और पीड़िता) ने आपसी समझ से मैसेजस को डिलीट किया था। गुप्ता ने तब तर्क दिया कि विजय बाबू ने बाद में मैसेजस को डिलीट किया था।
इस पर कोर्ट ने कहा कि पहले या बाद में मैसेजस डिलीट करने के लिए उसे कोई निर्देश नहीं था। लेकिन क्या किसी आरोपी को अपने खिलाफ सबूत देने के लिए मजबूर किया जा सकता है? गिरफ्तारी का उद्देश्य दबाव डालना है और यह केवल यह सुनिश्चित करना है कि वह कानून की प्रक्रिया से बचता नहीं है। जब व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाता है तो हम एक अलग दृष्टिकोण लेते हैं।
गुप्ता ने तब तर्क दिया कि मौजूदा मामले में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114A के तहत बलात्कार के अभियोगों में सहमति की अनुपस्थिति के रूप में अनुमान लागू होगा। अपनी असहमति व्यक्त करते हुए पीठ ने पूछा कि क्या यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जहां अंतरंग संबंध थे और शादी करने का वादा किया गया था, वहां प्रतिवादी पहले से ही एक विवाहित व्यक्ति था और वह शादी करने के लिए भी स्वतंत्र नहीं था?
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