मद्रास हाई कोर्ट (Madras high court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि ‘तमिलनाडु के सभी महिला पुलिस स्टेशन अब ‘बेशर्म कंगारू कोर्ट’ बन चुके हैं। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा और क्रूरता मामले में ऊंचे आदर्शों के साथ स्थापित महिला पुलिस स्टेशन पूरी तरीके से गैर जिम्मेदाराना रवैया अपना रहे हैं। अदालत ने राज्य भर में सभी महिला पुलिस स्टेशनों के कामकाज के तरीके की आलोचना करते हुए कहा कि तमिलनाडु में पुलिस थाने भ्रष्टाचार के अड्डे बनकर रह गए हैं, जहां अधिकारी शक्तिशाली पार्टियों का पक्ष लेते हैं। अदालत ने अफसोस जताया कि ये संस्थाएं जो समाज में योगदान देने के लिए शुरू की गई थीं, अब बेशर्म “कंगारू अदालतें” बनकर रह गई हैं।
क्या है पूरा मामला?
टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) के मुताबिक, हाई कोर्ट ने मदुरै के थिलागर थिडल ऑल वूमेन पुलिस स्टेशन की पुलिस इंस्पेक्टर विमला के खिलाफ के जनार्थन नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर अदालत की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए उपरोक्त टिप्पणी की। पीड़ित शख्स ने कहा कि उनकी पत्नी की शिकायत के बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए बिना किसी प्रारंभिक जांच के गिरफ्तार कर लिया गया।
जनार्थन नाम द्वारा दायर अवमानना याचिका में आरोप लगाया गया था कि ऑल वूमेन पुलिस स्टेशन (थिलागर थिडल), की इंस्पेक्टर विमला ने अर्नेश बनाम बिहार राज्य और ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन किए बिना उन्हें गिरफ्तार किया था।
लाइव लॉ के मुताबिक, इस दौरान कहा गया कि जनार्दन की पत्नी ने उक्त पुलिस स्टेशन में जनार्दन और उसके परिवार पर घरेलू हिंसा, दहेज की मांग और दुर्व्यवहार करने और इस प्रकार धारा 498 A, 406, 417, 420, 506 (1) IPC और तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम, 2002 की धारा 4 के तहत अपराध करने का आरोप लगाते हुए एक शिकायत दर्ज की थी।
जनार्दन ने अदालत को सूचित किया कि शिकायत 23 जून, 2022 को दायर की गई थी और अगले ही दिन विमला ने CrPC की धारा 41A के तहत नोटिस दिया और कार्रवाई की प्रतीक्षा किए बिना उसे गिरफ्तार कर लिया गया। प्रारंभिक पूछताछ और उसके बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
हाईकोर्ट
जस्टिस आर सुब्रमण्यन और जस्टिस एल विक्टोरिया गौरी की खंडपीठ ने राज्य के सभी 222 महिला पुलिस स्टेशनों के संबंध में DGP को कई निर्देश भी जारी किए। इन स्टेशनों का गठन 1992 में घरेलू हिंसा के पीड़ितों की रक्षा करने और महिलाओं पर हिंसा और क्रूरता के खिलाफ निगरानीकर्ता की भूमिका निभाने और दोषियों को पकड़ने के लिए किया गया था। पीठ ने कहा, ‘वाकई आज सभी महिला पुलिस स्टेशन भ्रष्टाचार के अड्डे बनकर रह गए हैं।’
TOI के मुताबिक, कोर्ट ने कहा, ‘कई बार पहले गिरफ्तारी और फिर बाकी की कार्रवाई करने के मामले में हीलाहवाली पाई गई। इसके साथ ही वैवाहिक विवादों में धन, बाहुबल के आधार पर किसी पक्ष को परेशान करने की चिंताजनक दर ज्यादा देखने को मिली है है। वे अधिकारी जो कि इस समाज को संवेदनशील बनाने के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें मजबूत पक्षों की ओर झुकते पाया गया है।’
जजों ने उत्पीड़न का शिकार किशोरियों और युवा महिलाओं की शिकायतों के मामले में स्पेशल सेल बनाने का आदेश दिया। प्रत्येक स्टेशन में एक फैमिली काउंसलिंग यूनिट होगी, जिसमें एक योग्य फैमिली काउंसलर, एक सामाजिक कार्यकर्ता, एक महिला वकील, एक महिला डॉक्टर के अलावा एक महिला मनोवैज्ञानिक शामिल होगी। इन स्टेशनों पर पहुंचने वाले सभी वैवाहिक विवादों को पहले फैमिली काउंसलिंग यूनिट के लिए भेजा जाना चाहिए और डिटेल्स के साथ एक रजिस्टर बनाए रखा जाना चाहिए।
अदालत ने सभी महिला पुलिस स्टेशनों पर मोबाइल काउंसलिंग यूनिट को फिर से शुरू करने और हफ्ते के आखिरी में महिला सशक्तिकरण शिविर आयोजित करने का आदेश दिया। इन पुलिस स्टेशनों में बच्चों के अनुकूल एक अलग जगह और किशोर संदिग्धों से पूछताछ के लिए एक कमरा होगा। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने पुलिस द्वारा की गई अनैतिक गिरफ्तारी पर नाराजगी व्यक्त की और इंस्पेक्टर को एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपने कर्तव्यों के निर्वहन में इस तरह के घृणित आचरण को नहीं दोहराने की चेतावनी दी।
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