तेलंगाना हाई कोर्ट (Telangana High Court) ने 14 जुलाई, 2022 को अपने एक आदेश में कहा कि सामान्य और सर्वव्यापी आरोपों के आधार पर वैवाहिक विवादों में पति के रिश्तेदारों के खिलाफ झूठे आरोप अगर अनियंत्रित छोड़ दिया जाता है तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
हालांकि यह पहली या आखिरी बार नहीं है जब अदलात ने ऐसी टिप्पणी की है। अदालतों ने बार-बार वैवाहिक विवादों में पति के रिश्तेदारों को झूठे फंसाने की प्रवृत्ति पर गंभीरता से विचार किया है। हालांकि सरकारें कोई भी संशोधन लाने में विफल रही हैं, जो झूठे मुकदमे दायर करने से पहले असंतुष्ट पत्नियों के बीच एक निवारक पैदा करेगा।
क्या है मामला?
पार्टियों ने 2005 में शादी की थी। पत्नी के मुताबिक उसके परिवार ने दहेज में 5 लाख रुपये नकद और 25 तुला सोना दिया था। उसने आरोप लगाया कि शादी के दिन से ही उसके ससुराल वाले उसे किसी न किसी बहाने प्रताड़ित करने लगे, साथ ही उसकी वफादारी पर भी शक किया। वर्ष 2013 में पत्नी ने अपनी सास, पति के भाई और उसकी पत्नी के खिलाफ धारा 498-A IPC और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत दहेज उत्पीड़न और क्रूरता का मामला दर्ज कराया।
इसके अलावा उसने अपने देवर पर भी छेड़छाड़ का आरोप लगाया। उसके खिलाफ उस पर आईपीसी की धारा 354 के तहत भी मामला दर्ज किया गया था। महिला ने आरोप लगाया कि उसने उसके प्रति सहानुभूति व्यक्त की और उसे जबरन गोद में ले लिया। इस दौरान उसे दुलारने की कोशिश की। जब उसने इसका विरोध किया और भागने की कोशिश की, तो आरोपी और उसकी पत्नी ने उसका मुंह बंद कर दिया और उसे बेरहमी से पीटा।
याचिकाकर्ताओं द्वारा बचाव
याचिकाकर्ताओं के विद्वान वरिष्ठ वकील का कहना है कि याचिकाकर्ता पति के रिश्तेदार हैं और वे सभी अलग-अलग जगहों पर रह रहे थे। बचाव पक्ष का कहना है कि महिला ने अपने पति के खिलाफ सभी आरोप लगाए, जबकि अन्य आरोप परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ लगाए गए थे। वकील ने कहा कि जबकि वह वर्ष 2007 में (जब आरोप लगाई थी) सिर्फ 2 महीने के लिए अपने ससुराल में रही थी। इस प्रकार, तीनों आरोपियों ने पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट का रुख किया।
तेलंगाना हाई कोर्ट
सबूतों और तर्कों को रिकॉर्ड में देखते हुए तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस ए. संतोष रेड्डी ने कहा कि परिवार के सदस्यों (पति की मां और भाभी) को सामान्य और सर्वव्यापी आरोपों के माध्यम से फंसाया गया था, क्योंकि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है।
पति के भाई के खिलाफ छेड़छाड़ के आरोपों के संबंध में अदालत ने कहा कि उसके खिलाफ एकमात्र आरोप यह था कि उसने शिकायतकर्ता के प्रति सहानुभूति व्यक्त की थी और उसका हाथ पकड़ लिया था। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह आरोप IPC की धारा 354 के तहत अपराध के आवश्यक तत्वों को नहीं बनाते या संतुष्ट नहीं करते हैं।
कोर्ट ने कहा कि उसने 28 फरवरी 2007 से पहले हुई कथित घटना का विरोध किया। यदि पत्नी के आरोपों में सच्चाई है तो जहां तक जीजाजी का संबंध है, वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर होने के कारण 12 फरवरी 2007 से जिस तारीख को आरोपित किया गया था, बिना कोई सहारा लिए चुप नहीं रहती। उसके बहनोई द्वारा प्रताड़ित किया गया।
हाई कोर्ट ने इस प्रकार नोट किया कि पति के सभी रिश्तेदारों (उसकी मां, भाई और भाई की पत्नी) को सर्वव्यापी आरोपों के आधार पर और कथित अपराधों में उनकी संलिप्तता के किसी विशेष उदाहरण के बिना फंसाया गया था। कोर्ट ने कहा कि मुकदमे की कठोरता से बचने के लिए आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने योग्य है।
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