इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में 17 वर्षीय एक लड़की से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि किसी बेगुनाह व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाने के लिए किसी महिला का यौन उत्पीड़न की शिकार होने की झूठी कहानी पेश करना असामान्य होगा। लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी 30 मई को की थी।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, अभियोजन पक्ष का आरोप है कि आरोपी ने 22 अगस्त, 2022 को नाबालिग लड़की को जबरदस्ती सुनसान जगह पर ले गया, जहां उसने उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए और उसके बाद अगले दिन उसने उसे उसके बाहरी इलाके में छोड़ दिया। गांव में शिकायत करने पर उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी।
मामले में 31 अगस्त, 2022 को SP (जन शिकायत सेल) संभल के हस्तक्षेप के बाद भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363, 366, 376, 506 और पॉक्सो एक्ट की 3/4 के तहत FIR दर्ज की गई। इसके बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया।
पक्षों का तर्क
अभियुक्त ने इस आधार पर जमानत की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था कि CrPC की धारा 164 के तहत दर्ज अपने बयान में पीड़िता ने केवल यह कहा कि आवेदक-आरोपी ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया है। उसने विशेष रूप से यह आरोप नहीं लगाया कि कोई पेनिट्रेशन हुआ है। इसलिए पीड़ित के खिलाफ कथित तौर पर किया गया कृत्य 375(C) IPC के दायरे में नहीं आता है।
पीड़िता की मेडिकल जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए आगे तर्क दिया गया था कि पीड़िता के प्राइवेट पार्ट पर कोई चोट नहीं थी और सप्लीमेंट्री रिपोर्ट में भी कोई स्पर्मेटोजोआ नहीं पाया गया और डॉक्टर की राय थी कि यौन शोषण के बारे में कोई सकारात्मक राय नहीं दी जा सकती। दूसरी ओर, लड़की की तरफ से राज्य के वकील ने तर्क दिया था कि CrPC की धारा 164 के तहत पीड़िता द्वारा अपने बयान में लगाए गए आरोपों के अनुसार, आवेदक के खिलाफ IPC की धारा 376 के तहत अपराध बनता है। इसलिए अपराध की गंभीरता को देखते हुए जमानत अर्जी खारिज की जानी चाहिए।
हाई कोर्ट का आदेश
शुरुआत में हाई कोर्ट ने CrPC की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयानों का अवलोकन किया, जिससे यह ध्यान दिया जा सके कि अभियुक्तों के वकील का यह कहना कि कोई पेनिट्रेशन नहीं हुआ था, पूरी तरह से गलत है। अदालत ने कहा कि यह पीड़िता का विशिष्ट आरोप है कि आवेदक उसे जबरन सुनसान जगह पर ले गया। फिर रात भर उसे एक कमरे में रखा और उसके साथ बलात्कार किया।
जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि हमारे देश में यौन उत्पीड़न की शिकार महिला किसी पर झूठा आरोप लगाने के बजाय चुपचाप सहती रहेगी, इसलिए जब तक वह वास्तव में यौन अपराध का शिकार नहीं होती, तब तक वह असली अपराधी के अलावा किसी और को दोष नहीं देगी। अदालत ने पक्षकारों की ओर से दी गई दलीलों, अपराध की गंभीरता, आवेदक की भूमिकाऔर सजा की गंभीरता को देखते हुए आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए उपरोक्त टिप्पणियां कीं।
अदालत ने कहा कि पीड़िता आवेदक के पास लगभग डेढ़ दिन तक कैद में रही और विशिष्ट आरोप थे कि उसने उसके साथ दुष्कर्म किया और जांच अधिकारी द्वारा पूछे जाने पर उसने बताया कि आवेदक ने पहले उसकी पजामा उतारा और उसके बाद खुद को निर्वस्त्र किया और उसके ऊपर लेट गया। इसके अलावा, पेनिट्रेशन की सीमा के बारे में अदालत ने कहा कि IPC की धारा 375 के तहत अभिव्यक्ति ‘पेनिट्रेशन’ पुरुष अंगों के महिला अंगों में प्रवेश को दर्शाता है।
कोर्ट ने कहा कि हालांकि, यह मामूली हो सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में यह माना कि महिला के अंगों में पुरुष अंगों का मामूली प्रवेश भी बलात्कार के बराबर है। इस संबंध में न्यायालय ने चीयरफुलसन स्नैतांग बनाम मेघालय राज्य 2022 लाइवलॉ (मेग) 6 के मामले में मेघालय हाईकोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया कि अंडरपैंट पहनने के बावजूद अभियोजिका की योनि या मूत्रमार्ग पर पुरुष अंग को रगड़ना अभी भी IPC की धारा 375(B) के तहत अपराध होगी।
जहां तक आरोपी-आवेदक के वकील के अंतिम तर्क का संबंध है कि आवेदक की मेडिकल जांच CrPC की धारा 53A के अनुसार नहीं की गई, अदालत ने कहा कि चूंकि आरोपी को घटना के 15 दिनों के बाद गिरफ्तार किया गया, इसलिए जांच अधिकारी का उससे जांच कराना अनावश्यक समझना उचित है।
इस पृष्ठभूमि में आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि अदालत को पीड़िता के साक्ष्य की सराहना करते हुए देश में विशेष रूप से ग्रामीण भारत में प्रचलित मूल्यों को ध्यान में रखना चाहिए। महिला के लिए किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार होने की झूठी कहानी बनाना असामान्य होगा।
अदालत ने अपने फैसले के आखिरी में कहा, “हमारे देश में यौन उत्पीड़न की शिकार महिला किसी को झूठा फंसाने के बजाय चुपचाप सहना पसंद करेगी। बलात्कार पीड़िता का कोई भी बयान महिला के लिए बेहद अपमानजनक अनुभव होता है और जब तक वह यौन अपराध का शिकार नहीं हो जाती, वह असली अपराधी के अलावा किसी और को दोष नहीं देगी।”
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