इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) पिछले साल एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसमें एक वैवाहिक विवाद मामले में उत्तर प्रदेश कंट्रोल ऑफ गुंडा एक्ट, 1970 (Uttar Pradesh Control of Goondas Act, 1970) के तहत एक व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। हाईकोर्ट ने इस कानून के ‘दुरुपयोग’ पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है। यह मामला सितंबर 2021 का है।
जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की पीठ शिव प्रसाद गुप्ता की आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनके खिलाफ IPC की धारा 498-A, धारा 354, धारा 323, धारा 504, धारा 506 और धारा 120-B के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसके अलावा उसकी पत्नी द्वारा दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत भी केस दर्ज करवाया गया था। इस आधार पर अपर जिला मजिस्ट्रेट, सोनभद्र द्वारा उत्तर प्रदेश कंट्रोल ऑफ गुंडा एक्ट, 1970 की धारा 3(1) के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।
इलाहाबाद हाई कोर्ट
यह देखते हुए कि एक्ट 1970 की धारा 2 (B) “गुंडा” शब्द को परिभाषित करती है, अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया, ऐसा प्रतीत होता है कि अधिनियम, 1970 की धारा 2(B) की कोई भी सामग्री आक्षेपित नोटिस में मौजूद नहीं है। इस प्रकार, प्रथम दृष्टया, नोटिस बिना अधिकार क्षेत्र के जारी किया गया प्रतीत होता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि हम यह देखने के लिए विवश हैं कि अब, अधिकारियों ने वैवाहिक विवाद से संबंधित मामलों में अधिनियम, 1970 के तहत नोटिस जारी करना शुरू कर दिया है, जो प्रथम दृष्टया अधिकारियों की ओर से एक शरारती कार्य प्रतीत होता है।
अदालत ने इस प्रकार प्रतिवादियों को अधिनियम, 1970 के प्रावधानों के तहत कार्यवाही शुरू करने के कारणों को बताते हुए अपने व्यक्तिगत हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया, जहां वैवाहिक विवाद से उत्पन्न होने वाली FIR दर्ज की गई है।
इसके अलावा, उत्तर प्रदेश राज्य को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश के जिला मजिस्ट्रेटों/अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेटों/पुलिस द्वारा यूपी कंट्रोल ऑफ गुंडा एक्ट, 1970 के इस तरह के दुरुपयोग की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए उठाए गए कदमों का संकेत दिया गया है। मामले को 9 सितंबर, 2021 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था।
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