कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने अपने एक हालिया फैसले में एक महिला को तलाक दे दिया है, जिसने अपने पति पर उसे ‘नकदी गाय और ATM (cash cow and ATM)’ के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। इससे पहले निचली अदालत ने महिला को तलाक देने से इनकार कर दिया था।
क्या है पूरा मामला?
समाचार एजेंसी आईएएनएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, तलाकशुदा कपल ने 1991 में शादी की थी और 2001 में उनकी एक बेटी हुई। पति का कारोबार था, जो ठप हो चुका था। उस पर काफी कर्ज था, जिसके चलते घर में आए दिन लड़ाई-झगड़े होते रहते थे। याचिकाकर्ता ने अपना और बच्चे का ख्याल रखने के लिए एक बैंक में नौकरी की। 2008 में पत्नी ने अपने पति की मदद करने के लिए कुछ पैसे दिए, जो उसने बिना कर्ज चुकाए इसे खर्च कर दिया।
आरोप है कि वह पैसे निकालने के लिए याचिकाकर्ता को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल कर रहा था। बाद में उसे पता चला कि उसके पैसे का दुरुपयोग किया जा रहा है। उससे 60 लाख रुपये लेने के बावजूद उसका पति कोई काम नहीं कर रहा है। पत्नी के अनुसार, उसने अपने पति को पैसे दुबई में सैलून खोलने के लिए दिए थे। इन सब से परेशान होकर पत्नी ने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की।
फैमिली कोर्ट
हालांकि, फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए पत्नी की याचिका खारिज कर दी थी कि इस मामले में कोई क्रूरता शामिल नहीं है।
कर्नाटक हाई कोर्ट
जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस जेएम खाजी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि पत्नी को बिना किसी भावनात्मक लगाव के नकदी गाय और एटीएम (cash cow and ATM) के तौर पर इस्तेमाल करना मानसिक प्रताड़ना के समान है। हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि पति ने बिजनेस शुरू करने के बहाने पत्नी से 60 लाख रुपये लिए थे। वह उसे एक एटीएम के रूप में मानता था। उसे अपनी पत्नी से कोई भावनात्मक लगाव नहीं है। पति के व्यवहार के कारण, पत्नी को मानसिक आघात पहुंचा है।
पीठ ने आगे कहा कि इस मामले में पति द्वारा पत्नी को दिया गए दर्द/तनाव को मानसिक उत्पीड़न माना जा सकता है। अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट इन सभी कारकों पर विचार करने में विफल रही है। इसके अलावा अदालत ने याचिकाकर्ता पत्नी को नहीं सुना और न ही उसका बयान दर्ज किया। हाई कोर्ट ने कहा कि पत्नी की दलीलों को ध्यान में रखते हुए उसकी तलाक की याचिका मंजूर की जाती है।
VFMI टेक
– परिवार एक संघ है और पति-पत्नी के बीच पैसे के आदान-प्रदान को एक दूसरे का उपयोग करने वाले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
– अगर जेंडर को उलट दें यानी यदि कोई पुरुष अपना कारोबार शुरू करने के लिए अपनी पत्नी को कुछ पैसे देता है और महिला उसे लौटाने में विफल हो जाती है तो क्या अदालत कभी इस स्थिति को क्रूरता मानेगी?
– अधिकांश मामलों में पति जीवन भर के लिए पत्नियों को आर्थिक रूप से सुरक्षा प्रदान करते हैं और उनका समर्थन करते हैं तो इसके रिवर्स के लिए समान नियम क्यों होना चाहिए?
– यदि पति सफल नहीं हो रहा है, तो पत्नी घर चलाने की जिम्मेदारी क्यों नहीं ले सकती?
– हम सबसे अधिक पाखंडी समय में रहते हैं, जहां एक तरफ हम महिला सशक्तिकरण के बारे में तो जोर-जोर से शोर मचाते हैं, लेकिन दूसरी तरफ पति को हर घर के लिए एकमात्र प्रोवाइडर घोषित कर दिया जाता है। अगर वह ऐसा करने में असमर्थ है, तो उसे लगभग बेमानी घोषित कर दिया जाता है।
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