मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में आईपीसी की धारा 498-ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत आरोपों से पति को बरी कर दिया। हाई कोर्ट ने पाया कि पत्नी ने यह जानने के बाद अपने पति के खिलाफ एफआईआर (FIR) दर्ज कराई थी कि वह दूसरी महिला से शादी करने जा रहा है।
जस्टिस संजय द्विवेदी (Justice Sanjay Dwivedi) की खंडपीठ ने कहा कि पत्नी ने उन घटनाओं का आरोप लगाया है, जो FIR दर्ज करने की तारीख से 2 साल पहले हुई थीं और पति द्वारा तलाक की डिक्री मांगने के लिए मुकदमा दायर करने के बाद यह मामला दर्ज किया गया था। अदालत ने कहा कि FIR कुछ और नहीं बल्कि तलाक की डिक्री मांगने के लिए पति द्वारा दायर मुकदमे पर जवाबी हमला है। कोर्ट ने कहा कि लगाए गए आरोप रद्द किए जाने योग्य हैं।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, कपल ने साल 2015 में शादी की थी। हालांकि, एक साल बाद 2016 से पत्नी अलग रहने लगी, क्योंकि कथित तौर पर उनके बीच विवादों के कारण संबंध सौहार्दपूर्ण नहीं थे और उनके बीच कुछ अन्य विवाद था। इसके बाद जब विवादों को सुलझाना लगभग असंभव हो गया, तो आवेदक संख्या 1 (पति) ने 2019 में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-ए के तहत तलाक की डिक्री की मांग करते हुए एक मुकदमा दायर किया।
जब पत्नी को नोटिस जारी किया गया तो उसने थाना कोतवाली, मंडला जिला मंडला में शिकायत दर्ज कराई और शिकायत की जांच के बाद पुलिस ने आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ IPC की धारा 498-ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत अपराध दर्ज किया।
कोर्ट के सामने पहुंचा मामला
जब मामला कोर्ट में पहुंचा तो आवेदकों के वकील ने उन्हें बरी करने के लिए Cr.P.C. की धारा 227 के तहत निचली अदालत के समक्ष एक आवेदन दिया, जिसे अंततः खारिज कर दिया गया। इस प्रकार, आवेदकों (पति और उनके रिश्तेदारों) ने आईपीसी की धारा 498-ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 एवं SC/ST (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत पति और रिश्तेदारों के खिलाफ आरोप तय करने के आदेश के खिलाफ आपराधिक संशोधन को प्राथमिकता दी।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट आदेश
मामले के रिकॉर्ड और तथ्यों को देखते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं आया है जो यह दर्शाता हो कि अलग रहने की तारीख से FIR दर्ज करने की डेट तक पत्नी द्वारा आवेदकों के खिलाफ किसी अधिकारी को कोई शिकायत की गई थी। अदालत ने आगे कहा कि पुलिस को ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली जिसमें उन्होंने कभी भी दहेज की मांग की या कोई कृत्य किया जो एससी/एसटी अधिनियम के प्रावधानों के तहत आता हो या दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत कोई अपराध किया गया था। हाई कोर्ट ने आगे पाया कि FIR से यह स्पष्ट है कि यह 9 जनवरी, 2020 को दायर की गई थी, जबकि पति/आवेदक संख्या 1 ने फैमिली कोर्ट के समक्ष 7 मई, 2019 को तलाक की डिक्री मांगने के लिए एक मुकदमा दायर किया था।
अदालत ने आगे कहा कि बयान से यह भी स्पष्ट है कि अनावेदक संख्या 2 (पत्नी) को यह पता चलने के बाद कि आवेदक संख्या 1 (पति) का विवाह …..नाम की एक महिला से होने वाला है, तभी उसने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई और दहेज और अत्याचार अधिनियम से संबंधित अपराधों के कई आरोप लगाए।
इसके अलावा, हाई कोर्ट ने यह भी नोट किया कि आरोप पत्र के साथ दायर किए गए उसके बयान से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि उसने पुलिस से संपर्क केवल इसलिए किया, क्योंकि आवेदक नंबर 1 किसी अन्य महिला से शादी करने जा रहा था। इसलिए अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि पत्नी ने केवल अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों को परेशान करने के लिए केस दर्ज कराई थी।
इसके साथ ही अदालत ने पति और उसके रिश्तेदारों को आईपीसी की धारा 498-ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 और एससी/एसटी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।
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ARTICLE IN ENGLISH:
READ ORDER | Wife Filed False Dowry Case After Learning That Husband Is Going To Marry Another Lady: Madhya Pradesh High Court
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