क्या भारतीय न्यायिक प्रणाली पूरी तरह से ध्वस्त हो गई हैं? सभी मामलों में तो नहीं कह सकते लेकिन वैवाहिक मामलों में तो पुरुषों के लिए हमारी न्यायिक प्रणाली पूरी तरह से अमानवीय है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति को तलाक का फरमान जारी किया है, जिसकी पत्नी शुभ मुहूर्त को लेकर शादी के 10 साल बाद तक ससुराल आने से इनकार करती रही और अपने पति से दूर रही। पति अपनी पत्नी के साथ शादी के बाद महज 11 दिन तक साथ रहा था। हाई कोर्ट ने 10 साल के अलगाव के बाद हिंदू मैरिज एक्ट के तहत इस विवाह को भंग कर दिया है।
क्या है पूरा मामला?
पति संतोष सिंह (Santosh Singh) की याचिका के अनुसार, उसकी शादी जुलाई 2010 में हुई थी। उसके बाद वह और उसकी पत्नी सिर्फ 11 दिन ही साथ रहे जिसके बाद उसके परिवार के सदस्य आए और उसे यह कहकर अपने साथ लेकर चले गए कि उन्हें कोई जरूरी काम है। पति ने उसे मायके से दो बार अपने घर वापस लेने की कोशिश की, लेकिन पत्नी ने ससुराल आने से इस आधार पर इनकार कर दिया यह ‘शुभ मुहूर्त’ नहीं है। सिंह ने इसके बाद दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए एक मुकदमा दायर किया, जिसे एकतरफा फैसला सुनाया गया।
पत्नी का तर्क
वहीं दूसरी तरफ याचिका के जवाब में पत्नी के वकील ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि दोनों पक्षोंके बीच प्रचलित प्रथा यह थी कि द्विरागमन (Duviragaman) के समारोह के दौरान पति को व्यक्तिगत रूप से आने की आवश्यकता थी। पत्नी ने तर्क दिया है कि वह पति के घर आने के लिए तैयार थी लेकिन शुभ समय शुरू होने पर वह उसे वापस लेने के लिए दोबारा नहीं आया, जो कि उनके रिवाज के अनुसार आवश्यक था। पत्नी ने अपने बचाव में यह भी कहा कि उसने अपने पति को नहीं छोड़ा है और वह अपने प्रचलित रिवाज के अनुसार उसे वापस लेने में विफल रहा है।
पति की प्रतिक्रिया
अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि जब पति उसे (पत्नी) उसके मायके से वापस लेने गया तो पंडित और परिवार के बुजुर्गों की सलाह के अनुसार ससुराल वालों की तरफ से यह कहा गया कि अभी शुभ समय नहीं है, और उसे सलाह दी गई थी कि वह उसे वापस लेने के लिए एक विशेष शुभ समय पर वापस आ जाए लेकिन वह आने में असफल रहा। पति ने कहा कि ससुराल पक्ष लगातार ‘शुभ मुहूर्त नहीं है’ कहकर पत्नी को भेजने से मना करते रहे।
फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती
हालांकि, सिंह के वकील ने हाई कोर्ट में कहा कि पत्नी जानती थी कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए डिक्री पारित हो चुकी है, लेकिन वह अभी भी अपने पति के साथ वैवाहिक जीवन में शामिल नहीं हुई है। अपीलकर्ता पति संतोष सिंह ने पहले तलाक के लिए फैमिली कोर्ट में याचिका लगाई थी, जिसने परित्याग के आधार पर तलाक के लिए उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद संतोष ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का रूख किया था।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की टिप्पणी
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, जस्टिस गौतम भादुड़ी (Justice Goutam Bhaduri) और जस्टिस रजनी दुबे (Justice Rajani Dubey) की खंडपीठ ने कहा कि शुभ समय एक परिवार के सुखी समय के लिए होता है। कोर्ट ने कहा कि इस तात्कालिक मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि शुभ मुहूर्त पत्नी के लिए अपने वैवाहिक घर शुरू करने के लिए एक बाधा के उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया गया है। हाई कोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट के तहत इस विवाह को भंग कर दिया है। साथ ही अदालत ने तलाक की डिक्री को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि तथ्यों के अनुसार पत्नी ने अपने पति को पूरी तरह छोड़ चुकी थी, इसलिए वह तलाक लेने का हकदार था।
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